तेजाब से छिले चेहरे

"मुझे अब कोई स्वीकार करता है और कोई नहीं भी। मुझे बहुत बुरा लगता है. मैं चाहती हूँ कि जो कुछ मेरे साथ हुआ वैसा किसी और के साथ न हो."
यह शब्द दिल्ली में रहने वाली लक्ष्मी के हैं। तस्लीमा नसरीन पर हमले और हाल ही में देवबंद से जारी एक फतवे के साथ इस बयान को रखने पर जो दृश्य बनता है उसमें अर्ध सामंती देश की एक मूंछदार मर्दवादी तस्वीर उभरती है. इसमें महिलाएं महज एक जिंस की तरह हैं, और पुरुष खरीदार अपनी जरूरत के हिसाब से उसका इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है इस स्थिति को बदलने के फिलवक्त कोई आसार नजर नहीं आते.
दरअसल लक्ष्मी के इस बयान की कहानी साढे तीन साल पुरानी है। 22 अप्रैल 2004 को लक्ष्मी के चेहरे पर खान मार्केट में कुछ लडकों ने तेजाब फेंक दिया था. तेजाब की झुलस का दर्द तो लक्ष्मी ने सहन कर लिया, लेकिन उस दिन को याद करते हुए आज भी उसकी आंखों में पानी आ जाता है. लक्ष्मी के चेहरे की पाँच बार सर्जरी हो चुकी है और जिस पर लाखों रुपए ख़र्च हो चुके हैं. इसके बावजूद उसे अपना चेहरा छुपाना पडता है. लक्ष्मी पर तेजाब फेंकने वाले दोनों लडके जेल तो गए लेकिन ज़मानत पर रिहा भी हो गए. इस तरह के मामलों में दोषियों की जल्दी रिहाई के लिए भारतीय दंड संहिता भी जिम्मेदार है. दरअसल इस तरह के मामले धारा 320, 226 और 307 के तहत दर्ज होते हैं. इसलिए अभियुक्तों को कड़ी सज़ा नहीं मिल पाती और कई मामले विलंब के कारण बंद ही हो जाते हैं.
यूं देखा जाए तो आधिकारिक आंकडों के अनुसार भारत में 2004 में ऐसी क़रीब 280 घटनाएँ सामने आईं थीं। इस तरह की घटनाओं की सबसे ज्यादा शिकार राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और कर्नाटक की महिलाएं हैं.
बकौल राष्ट्रीय महिला आयोग अध्यक्ष गिरिजा व्यास - "ऐसी घटनाओं की ज़्यादातर शिकार 12 से 20 वर्ष के बीच की महिलाएँ होती हैं"। वे तीन महीनों के भीतर महिला और बाल कल्याण मंत्रालय को इस मसले पर एक प्रस्ताव भेजने वाली हैं जो अभियुक्तों को कडी सजा के साथ पीडिता के पुनर्वास पर भी ध्यान देगा.
और अंत में किश्वर नाहिद की यह कविता
हम गुनहगार औरतें
ये हम गुनहगार औरते हैं
जो मानती नहीं रौब चोंगाधारियों की शान का
जो बेचती नहीं अपने जिस्म
जो झुकाती नहीं अपने सिर
जो जोड़ती नहीं अपने हाथ...
...ये हम गुनहगार औरते हैं
जो निकलती हैं सत्य का झंडा उठाए
राजमार्गों पर झूठों के अवरोधों के खिलाफ
जिन्हे मिलती है अत्याचार की कहानियां
हरेक दहलीज़ पर ढेर की ढेर
जो देखती हैं कि सत्य बोल सकने वाली जबानें
दी गई हैं काट...