करुणा और बाजार एक साथ नहीं चल सकते. बाजार, मुनाफा चाहता है. इस देश के गरीब मुनाफा कमाने के रा मैटेरियल बनेंगे, तो देश अशांत होगा.
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर

मैं चंद्रशेखर जी को नहीं जानता था. उसी तरह जैसे मैं लातेहार के बस स्टैंड पर दातून बेचने वाले रामेश्वर को नहीं जानता. आप कहेंगे दोनों को न जानना अलग अलग किस्म की अज्ञानता है. हां है, लेकिन साम्य भी है. चंद्रशेखर के वक्तव्यों में रामेश्वर का जिक्र आता था. वे उसे जानते रहे होंगे. मैं दोनों को नहीं जानता था. लेकिन चंद्रशेखर को सुनता था. उनका बोलना ऐसा लगता था जैसे किसी ने अपनी बात कही हो संसद में अब अपनी बात बोलने वाले कितने हैं पता नहीं लेकिन बोलता अब कोई नहीं है- आज इतना ही