एनीमेशन+आस्था= माई फ्रेंड गणेशा

अजय ब्रह्मत्मज जी से आप सभी परिचत होंगे। शुक्रवारा रिलीज के बारे में दू टूक कहने के अलावा वे फिल्मों के बारे में कुछ मौजू और दिलचस्प जानकारी भी हमें देते हैं. हमने उनसे नई ईबारतें पर आने का आग्रह किया और वे आदत के मुताबिक इनकार नहीं कर सके. अजय जी की ईबारतों को आप यहां लगातार पाते रहेंगे

अजय ब्रह्मात्मज
लाइव और एनीमेशन कैरेक्टर के मेल से दर्शकों का मनोरंजन करने की तकनीक हाल ही में भारत पहुंची है। भारतीय दर्शक अब एनीमेशन कैरेक्टर और फिल्में पसंद करने लगे हैं। नतीजा है कि एनीमेशन फिल्मों का तेजी से विस्तार हो रहा है लेकिन बढ़ती जरूरत के अनुपात में कल्पनाशीलता के अभाव में विषय के लिहाज से लचर फिल्में आ रही हैं। ताजा उदाहरण है 'माई फ्रेंड गणेशा'। इस फिल्म में आस्था और एनीमेशन का मिश्रण किया गया है।
आशु अपने परिवार का अकेला लड़का है। हालांकि वह अपने माता-पिता, बुआ और बाई गंगूताई के साथ रहता है लेकिन अकेलापन महसूस करता है। स्कूल में उसका कोई दोस्त नहीं है और घर में किसी को फुर्सत नहीं है। ले-देकर एक गंगूताई है, जिससे वह अपने मन की बातें करता है। मुंबई की बारिश में डूब रहे चूहे को वह बचाता है। गंगूताई इस नेक काम के लिए उसकी तारीफ करती है और उसे गोश और मूषकराज की कहानी सुनाती है। वह बताती है कि गणेश उससे खुश हुए होंगे और अगर घर में गणेश पूजा के समय उनकी मूर्ति की स्थापना की जाए तो वे उसके दोस्त भी बन सकते हैं। घर में मूर्ति लाई जाती है और आशु की मनोकामना भी पूरी हो जाती है। गणेश उसके साथ खेलते हैं और उसका आत्मविश्वास जगाते हैं। 11 दिनों में आशु के घर की मुश्किलें भी खत्म कर देते हैं। विसर्जन के दिन आशु रोता है कि उसके सखा गणेश चले जाएंगे तो गंगूताई समझाती है कि वे अगले साल भी आयेंगे। बाल गणेश की कल्पना रोचक है,लेकिन उनके साथ अविश्वसनीय संयोगों को जोड़ कर लेखक और निर्देशक ने अपनी कल्पनाशीलता की सीमा जाहिर कर दी है। यह गलत संदेश जाता है कि घर में सिर्फ गणेश की मूर्ति लाने से सारी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। आस्था का यह दुरुपयोग बाल मन को नकारात्मक ढंग से प्रभावित कर सकता है। भारतीय फीचर फिल्मों की तरह एनीमेशन फिल्में भी अपने आरंभिक दौर में धार्मिक और मिथकीय चरित्रों का उपयोग कर रही हैं लेकिन उसके पीछे वैज्ञानिक सोच रहना चाहिए। बाल कलाकार एहसास चानना ने अच्छा काम किया है। उसके माता-पिता कहानी में पूरक मात्र हैं। गंगूताई की भूमिका में उपासना सिंह लाउड हैं और उन्होंने अनावश्यक रूप से अपना सुर ऊंचा रखा है। फिल्म में इतने सारे गीतकार और संगीतकार थे। उनका क्या उपयोग हुआ है? गणेश को गणेशा कह कर संबोधित करना उचित नहीं लगता। लगता है यह फिल्म शहरों के बच्चों को ध्यान में रख कर बनायी गई है। अपनी सीमाओं के बावजूद 2डी एनीमेशन में बनी यह फिल्म सराहनीय है क्योंकि इससे एनीमेशन फिल्मों के दर्शक बढेंगे।