क्रांति से ईश्वरों की गुहार

अश्विनी पंकज एक पॉलिटिकल प्रेम कवि हैं। जब वे पॉलिटिकल कविताएं लिखते हैं. मसलों पर अपने स्टैंड लेते हैं. मनुष्य के पक्ष में खडे होते हैं. नीचे, तलछट की छटपटाहट और बेचैनी की कविताएं तब उनके वाक्य बनती हैं. तब वे दुनिया के बीचों बीच खडे होकर ललकारते से प्रतीक होते हैं मनुष्य विरोधियों को. इसके विपरीत प्रेम कवि अश्विनी अपने एकांत में बरियातु पहाड के ऊपर शाम में डूबते सूरज की तरफ पीठ किए बैठा है. यादों में चलती रील के साथ बहता हुआ अश्विनी किसी बच्चे सा दिखाई देता है. उसकी सफेद दाडी की आवाज उस खरखराहट से मिलती है, जो किसी बढई के कलौचे से छिलती लकडी का रुदन होती है.
इसके अलावा पंकज का एक रूप पॉलिटिकल प्रेम कवि का है। मुझे इसी अश्विनी से मिलना अच्छा लगता है. यह वह सबसे अच्छा मनुष्य होता है. प्रेम से भरा पूरा. लोगों के मुखौटों के भीतर का हिस्सा उजागर करता. अपनी दुनिया का सबसे अंतिम आदमी जो पहला भी होता है यानी सब कुछ यहां बराबर होता है.
पिछले दिनों वह हैदराबाद गए थे। दलित कांफ्रेन्स में. लौटते वक्त बंगाल बंद के दौरान उनकी ट्रेन लेट हुई. अश्विनी खाली नहीं बैठ पाते. उन्होंने इस दरमयान कई कविताएं लिखीं जो मुझे पहले फोन पर सुनाईं और फिर मेल कीं. इनमें से एक कविता इसी पॉलिटिकल प्रेम कवि की थी. जहां उनकी प्रेयसी से गुहार है. ईश्वरत्व की यह गुहार असल में मनुष्यता को अपनी पूरी गरिमा पर प्रतिस्थापित करने की आदिम इच्छा है. क्या आप इसमें शामिल होंगे.

कारीगर की प्रार्थना

इस क्षण मैं ईश्वर होता
यदि तुम पास होतीं
मुझे नफरत है
उस मंदिर से
उस महंत से
घर परिवार
उस समाज से
जिसने ईश्वर होने की
कुछ खास शर्त गढ डाली हैं

तुम्हारी कोई शर्त नहीं

यही एक बात
तुम्हें उस सभी से
अलग कर देती है
जिनके पास ईश्वर नहीं है
जबकि तुम
मुझे ईश्वर बना सकती हो
रच सकती हो मेरे इंसान को
पुन: पुन:
अनकों बार

यहां कारीगरों की कद्र नहीं है
मंच बाजीगरों से भरा है

डरे हुए लोग
टीवी पर लाइव कवरेज में डूबे हैं
झारखंड दिल्ली इस्लामाबाद
फौज के कब्जे में हैं
गुजरात में मोदी
नई लीला रच रहा है
भगवान का बर्थ सर्टिफिकेट जारी कर रहे हैं पोंगापंथी
एडम ब्रिज पर बजरंगियों की रामधुन
शुरू हो चुकी है
नरमेध के लिए
तैयार हो रहे हैं रथी

वे इस आशंका से ही
भयभीत हैं
कि कहीं तुम आ न जाओ
उन्हें मालूम हैकी तुम्हारे आते ही
मैं हो जाउंगा ईश्वर

इसलिए वे पूरी ताकत से लगे हैं
हर तरफ बाडेबंदी है
कानूनों को उन्होंने
अपने अनुकूल बना लिया है
सुप्रीम कोर्ट बार बार
चीख रहा है
अभिव्यक्ति के अधिकार का
यह मतलब हरगिज नहीं
कि आप बार बार
सडकों पर उतरें
कि कोई भी नगर की दिनचर्या में खलल डाले
राज्य को निर्देश है
शांति व्यवस्था बनी रहे

मुझे मालूम है
तुम आओगी
तुम आ रही हो
दसों दिशाओं से
मठों को ध्वस्त करते
द्रौपदी के मिथक को
तार तार करती
अपने वक्ष में भरपूर दूध लिए
नख से शिख तक
कमनीय
रमणीय
मेरा ईश्वरत्व लिए

क्योंकि तुम्हें ही रचना है मुझे

प्रिय तुम ही रचोगी
यह नया ईश्वर
तुम ही प्रतिष्ठित करोगी
उन सभी देहों को
जिनमें मेहनत भरी है
अपनी सांस सांस से
जो रच रहे हैं
अन्न, औजार और हथियार
फूल, तितलियां और खिलौने

ओ प्रियतमा
क्रांति
आओ
और तौड डालो सारे फर्जी
ईश्वरों की मूर्तियां
गौरवांवित होने दो मुझे
कि मैं स्वयं ईश्वर हूं
आओ और प्रतिष्ठित करो
फिर से मुझे
हम सबको