चित्रकूट की चित्रावली एक

हम छह और सात अक्तूबर को चित्रकूट में थे. पिछली पोस्ट में थोडा सा खाका खींचा था. उसके जवाब में राजू नीरा जी ने उन यादों के चित्र भेजे हैं दूसरी किस्त से पहले यह फोटो कुछ बातें साफ कर देंगे. जिनका जिक्र मैं कर नहीं पाउंगा उन हिस्सों को भी सामने लाएंगे यह चित्र.

हाल के भीतर यह शुरुआत से पहले की हंसी ठिठोली है. दांयी और अग्रभाग में सोच की मुद्रा में राकेश मालवीय हैं, जो इन्होंने सायास अर्जित की है. उधर सबसे पीछे दीवार के पास जो कम बालों का शख्स है वह प्रसून नाम का जीव है जो जयपुर की पत्रकारिता में चोटी लहरा रहा है. बाकी साथियों में से कई के नाम मुझे याद नहीं जो याद हैं वे इतने अनूठे दिखाई दे रहे हैं कि आपको खुद ही नजर आ जाएंगे. मसलन खंबे के पास अपने सिराज कैसर साहब. पीएनएन वाले


दूसरे दिन अश्विनी पंकज ने अपनी बात रखी और जोरदार ढंग से रही. चिन्मय जी किंचित गंभीर मुद्रा में हैं समय बीत रहा है और संचालक महोदय को चिंता थी कि बाकी वक्ताओं का समय न दबाओ यार. इस बात पर अश्विनी ने एक बार अपने बेहद मासूम अंदाज में कह भी दिया था - "तो ठीक है ले लीजिए माइक. हम तो ये टाइम के तौर तरीके जानते नहीं." कुछ इस अंदाज में कि बोला दिये तो ठीक न तो इ चले संभालो अपनी धर्मशाला. यह चित्र ठीक उसी के बाद का है और हारकर चिन्मय जी इंदौर की गलियों में भटकते हुए अपना छुटपन याद कर रहे थे. सबसे दाएं वाले सज्जन पुरुष अपने हरिशंकर मिश्र जी हैं. जी हां इलाहाबाद जागरण के संपादक वही. शायद कल की स्टोरी प्लान करने के सूत्र तलाश रहे हैं.



यह तो हम ही हैं. सौ फीसदी हम ही हूं. और यही एक टी शर्ट बची थी धुली धुलाई. पहले सोचे थे खडे होकर बोलेंगे घूम घूमकर. सबसे इनट्रेक्ट करते हुए विष्णु खरे की तरह लेकिन क्या करें टांगों ने साथ नहीं दिया. बहुत घूमे थे चित्रकूट की पहाडियों पर सो बैठकर ही बक बका दिये जो मन में रहा. वेदव्रत गिरि साहब तो हत्थे से उखड गये थे. सिराज कैसर जी से भी आते वक्त मामला सुलझ पाया. पीछे तो देख ही रहे हैं दडियल अश्विनी कैसे दीदें फाडकर हंस रहा है. और बगल में विकास परिहार है. इससे हमारी मुलाकात पूरे 17 साल बाद हुई है. जी हां 90 में गांव में इसके पिताजी यानी हमरे चाचा थे. फिर वे गये तो ये भी साथे साथ चल दिया.




उसी समय का यह चित्र है बोलने से पहले का है या बाद का कुछ याद नहीं. अश्विनी को कोई फोन आया था और सहिया के सर्कुलेशन की चिंता में गुरु गंभीर हो गया था.