क्या अविनाश और यशवंत में सवालों का सामना करने की हिम्मत है?

जो कुछ भी अभी हो रहा है... उसे खत्म करने की में बिल्कुल भी वकालत नहीं करूंगा.. चीजों पर बात किए बिना न तो ढंग से समझ आ सकती है न मुद्दे की पहचान हो सकती है... मेरी एक राय है.. मैथिली जी इसे और आगे बढा सकते हैं... अविनाश जी और यशवंत जी भी इस मुद्दे पर ध्यान दें... इस पूरे मुद्दे में एक पक्ष यशवंत हैं... वे सही हैं या गलत यह या वे खुद जानते हैं या फिर उनके बारे में लिखने वाले... मसला जो भी हो... यशवंत जी मैं आपको एक सलाह देता हूं बिन मांगे की... भडास पर आप एक पोस्ट लिखिए जिसमें आप अपने ऑनलाइन होने का वक्त मुकर्रर कर लें... उस दौरान जिन साथियों को यशवंत से जो जो कुछ जिस जिस भाषा में पूछना हो वे पूछ लें... वह कमेंट की तरह हो जाए तो और अच्छा ताकि बाकी लोग देखते रहें और सवालों का रिपीटेशन न हो... यही प्रक्रिया मोहल्ले पर अविनाश जी अपनाएं... मुझे लगता है मनीषा जी जिस चैट को लेकर परेशान हैं उस बातचीत पर वे भी खुद सीधे बात करें और अविनाश जी को भोंपू बनाना छोडकर अपनी लडाई खुद लडें... हम उनका साथ भर दे सकते हैं और यह लडाई इतनी बडी नहीं है कि फौज फाटे के साथ लडी जाए छोटी सी तकरार है यारो निपट लो... बात इतनी ही है... मैथिली जी, अनूप शुक्ला जी बुजुर्गियत का कुछ ख्याल कीजिए... गालियां हम भी खूब देते हैं पर बुजुर्गों की डांट पडते ही घरों का या फिर नदिया की पारिया का रास्ता नाप लेते हैं... बच्चों को थोडा सोंटा दिखाइये.... बडे बड्डे भापा जी बनते हैं... उठाइये जरा कलम लिखिए जरा खरी खरी... वो ब्लॉगिंग की दाद खाज पंगेबाज मियां किधर हैं... पंगे लेने की खबेदी कहां बिला गई हुजूर...
मेरा ऑनलाइन वाला ख्याल अगर सिरे चढे तो बता दीजिए अविनाश जी, यशवंत जी... बहुत सवाल है अपने पास भी...