क्या ब्लॉगवाणी भी चला नारद की राह

आज पूरे दिन ब्लॉगवाणी पर भडास दिखाई नहीं दिया. क्या इस बहुचर्चित ब्लॉग को बैन कर दिया है? बहुचर्चित इसलिए कि सारे दिन एग्रीगेटर पर पोस्ट न आने के बावजूद भडास को पूरे दिन में साढे तीन सौ से ज्यादा लोगों ने पढा. यह बात पहले भी उठ चुकी है कि कोई ब्लॉग कितना चर्चित है इसमें एग्रीगेटर का कोई खास रोल नहीं होता. खैर जुदा मसला है... आज में भडास पर गया था तो उसमें कोई आपत्तिजनक भाषा कम से कम पिछली सात आठ पोस्ट में तो नहीं ही थी. यानी जब भडासी सुधरने लगे तो उन पर बैन का कोडा चला दिया गया. अगर ऐसा है तो शर्म है. जिस शोर के साथ ब्लॉगवाणी शुरू हुआ था वह जज्बा खतम हो गया क्या. चलो अच्छा हुआ एक भ्रम और टूटा कि बोलने की आजादी ब्लॉग पर है... किस ढंग से बात कही जाए इसे मिलबैठकर समझाया जा सकता था.. लेकिन नहीं यहां तो मुंह बंद करने की सलाहियत ही है.. क्या बात है!!!! ब्लॉगवाणी की लोकतांत्रिक आवाजें कहां गई? कहां गए बजार पर बैन के विरोधी? सो गए क्या? चलिए अपन भी सोते हैं.... साली निकल गई अपनी भडास
तो संजीदा सोज बशारत मंजिल में बैठे सोचते होंगे कि क्या अगडम बगडम आंय बांय बक रहा हूं.... तो सोज साहब यह हमारे समय का सबसे नया खिलौना है जिससे हम मन बहलाव के लिए खेलते हैं... बशारत मंजिल से निकलकर बताशों वाली गली से होते हुए चावडी बाजार की तरफ आएं तो कल मुझे बुला लीजिएगा... कल इस खिलौने के कुछ और मजेदार किस्से सुनाउंगा....