अलविदा लुधियाना, नहीं रहे सचिन लुधियानवी

अलविदा साथियो,
यह सचिन लुधियानवी के अंतिम शब्द हैं. अब मुझमें बुंदेलखंडी बसता है. जो लुधियायानवी था वह फारिग हो चुका है. पता नहीं कभी वापस आएगा या नहीं.
जो बुंदेलखंडी को जानते हैं वे चहक सकते हैं लेकिन मेरे लिए यह यह एक विक्षोभ है. अरण्य का विक्षोभ. किसी हिस्से का खुद से टूटना हो सकता है पेंचदार दुनिया में चलता हो हमें बुरा लगता है यानी जो पढ रहे हैं उन्हें बुरा लगता हैं.
मित्रो, जब आप यह पोस्ट पढ रहे हैं... मैं लुधियाना में नहीं हूं... यानी मैंने लुधियाना छोड दिया है... और इस समय मैं कई चीजें याद कर रहा हूं... जब मैं पहली बार पत्रकारिता के लिए घर से बाहर निकला था घर यानी मध्यप्रदेश यानी भोपाल.. पुष्य मित्र ने गुजरात भूंकप के बाद भुज चलने का प्रस्ताव रखा था... कई साथी वहां जाने को तैयार थे.. क्या करने? इसका जवाब किसी के पास नहीं था.. मैंने घर पर बता दिया था कि मैं अपने 1st सेमिस्टर के एग्जाम छोडकर भूंकप क्षेत्र में जा रहा हूं.. एक मित्र ने पूछा कि अगर वहां तुम्हें कुछ हो गया तो किसे सूचित किया जाए.. मैं इस बात से चकित था कि क्या ऐसा होना संभव है.. बाद में मैंने जाना कि यह सच था... (पत्रकारिता अगर वह सचमुच पत्रकारिता है तो) में या तो जीत मिलती है या मौत... क्रांति की तरह... हम हर एक स्टोरी के साथ जीतते हैं हर बार पिछडने पर हारते हैं मरते हैं... मेरी अब तक की यानी लुधियाना से चलने तक की जीत-हार में कई साथी "शहीद" हो गए हैं किसी दिन मुझे भी होना है... आज उन बातों को जो चायखानों में हमने जीवन संवारने के बजाए बदलाव के लिए की थीं, को कम नाटकीय ढंग से बताया जाता है, क्योंकि हम परिपक्व हो चुके हैं... लेकिन मेरी स्थिति वही की वही है.... शौक की दीवानगी तय कर गई कितने मकाम/ अक्ल जिस मंजिल पे थी अब तक उसी मंजिल पे है..
इसलिए अब मैं आपसे, साथियों से, आपके साथियों और उनके भी साथियों से विदा लेता हूं... मैं सचिन श्रीवास्तव लुधियाना की नागरिकता को भरे मन से छोडता हूं... आधिकारिक रूप से अब मेरा लुधियाना से कोई संबंध नहीं है... जो संबंध है वह अन्य प्रकार का है जिसे पदों की भांति छोडा नहीं जा सकता....
जब मैं बीते जीवन पर नजर डालता हूं तो महसूस करता हूं कि मैंने जहां भी काम किया पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ काम किया... कई बार मैंने अपनी जल्दबाजी और फक्कड मिजाजी के साथ काम करते हुए सौ प्रतिशत नहीं दिया लेकिन उसके लिए माफी के अलावा मेरे पास कोई शब्द नहीं है.... पिछले सात सालों में मेरी गंभीर गलती यह थी कि मैं पहले दिन से अपने साथियों पर अधिक विश्वास नहीं रख पाया.. जितना करना चाहिए उतना विश्वास नहीं कर सका... और एक पत्रकार,दोस्त और अच्छे इंसान के रूप में आप लोगों के गुणों को शीघ्रता ने नहीं समझ सका....
मैंने लुधियाना में अब तक बहुत शानदार दिन गुजारे हैं और आप लोगों के साथ रहकर मैंने गौरवपूर्ण और बेहद खुशमिजाज समय में अपने करीबियों के साथ बेहतर से बेहतरीन पत्रकारीय गुणों को सीखा है... इसका मुझे गर्व है... एक डेस्क जर्नलिस्ट के रूप में मेरे गुण उतने कभी नहीं निखरे थे जितने कि इस समय में... मैंने बिना हिचकिचाहट के साथ खुद को जोडा और खबरों को देखने, सोचने व आगे की ओर जाने के ढंग से खुद को एकाकार किया...
दोस्तो, अब मेरी विनम्र सेवाओं की दूसरी जगह आवश्यकता है.. मैं वह कर सकता हूं जो आप लोग लगातार एक ही जगह रहकर करेंगे क्योंकि अंततः हमारी जिम्मेदारी जहां है वहां सबसे बेहतर होती है... इसलिए साथियो अब लुधियाना की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर... अब मेरे विदा होने का समय आ गया है...
मैं यह जता देना चाहता हूं कि मैं खुशी और विषाद दोनों का अनुभव करते हुए ऐसा कर रहा हूं... एक प्रियजन और हंसौड साथी के रूप में मैं अपने पीछे उज्ज्वल आशाएं छोडे जा रहा हूं... मैं उन लोगों से विदा ले रहा हूं जिन्होंने अपने करीबी के रूप में मुझे स्वीकार किया... इससे मेरी आंखें नम हो रही हैं लेकिन शायद यह जरूरी है.... मैं एक नए मोर्चे पर अपने साथ वह विश्वास लेकर जा रहा हूं जो आप लोगों ने जाग्रत किया है... मैं अपने लोगों की बेहतर करने की भावना और सबसे अहम खबरों को पाठक तक पहुंचाने की परिकल्पना को खुद के भीतर समेटकर ले जा रहा हूं जो यह है कि- कोई कहीं भी हो उसे पत्रकारिता के लिए अपने मूल्यों की रक्षा करते हुए पाठक को अपना सर्वश्रेष्ठ देना है. यह संकल्प ही मुझे सुकून देता है और इस पर खरा उतरने की प्रक्रिया ऊर्जा से भर देती है..
मैं इस बात को दोहराता हूं कि मैं अब लुधियाना को छोड रहा हूं... और इस शहर के साथ बने अपने भावुक रिश्ते को याद करते हुए मैं लुधियाना से इतना ही कहूंगा कि -"अगर मैं फिर कभी तुम्हारी हवाओं में सांसे न ले सका तो भी जो कुछ तुमने सिखाया है उसके लिए हर उस वक्त तुम्हारा शुक्रिया अदा करूंगा जब मैं कहीं भी प्यार और अपनापन दूसरों को दूंगा..."
मैं और भी बहुत सी बातें आपसे कहना चाहता हूं लेकिन उन्हें शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है और मैं आपका वक्त जाया नहीं करना चाहता.....
हमेशा आपके साथ पत्रकारिता के लिए
सचिन श्रीवास्तव
09977296039