मैं, जो वोट नहीं कर सकता इन्हें

दोपहर में हरिओम राजोरिया से बात हो रही थी. फिर शाम में हुई और फिर अभी देर रात. एक बेचैन कवि से बातचीत करने से अमूमन बचता हूं, लेकिन हरिओम फिर फिर सामने आते हैं. अपनी असहमतियों, बेचैनियों और सवालों के साथ. जो हरिओम को जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि वे हमारे समय के उन विरले कवियों में से हैं, जिनके रचनाकर्म से उनके जीवन का अंदाजा लगाया जा सकता है. यानी उनकी रचना और जीवन में दूरी तकरीबन न के बराबर है. हरिओम की रचनाएं उनके जीवन पर चस्पां है और उनका जीवन, रचनाओं की जुबान है. हरिओम का जिक्र इसलिए कि आज उन्होंने एक कविता लिखी है. अपनी नागरिक जिम्मेदारी की पहली शर्त पर. यह एक नागरिक का मत है, जो बिना किसी लागलपेट के जानता है कि उसे किनको वोट नहीं देना है... तो लीजिए ये कविता...

एक नागरिक

कठोरता जिनके चेहरों से चूती है
जो कठोर और कड़े निर्णय लेते हैं हर हमेशा
रहते हैं कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच
पहनते हैं झक सफेद कपड़े
और एक परिंदा भी
बीट नहीं कर सकता जिनके कपड़ों पर
क्षमा करना मैं उन्हें वोट नहीं कर सकता

मैं चमचमाती सड़कें देखकर वोट नहीं करता
क्योंकि वे तो बनी ही हैं
हमारे पैसों और पसीने से
मैं लकदक अटारियां और अट्टालिकाएं देखकर वोट नहीं करता
क्योंकि हम जैसे लोग उनमें कहां रहते हैं
मैं त्रिशूल और तलवारें देखकर वोट नहीं करता
क्योंकि उनका अपना कोई धर्म नहीं होता
आपका नाम ही अगर विकास कुमार है
आप सचमुच मुझे क्षमा करना
मैं किन्हीं विकास कुमार को वोट नहीं करता

जो न हुआ अपनी जात का
क्या होगा वह अपने बाप का?
आप मुझे क्षमा करना
ऐसी कहावतें गढ़ने वालों को
मैं अपना वोट नहीं कर सकता!!!