भोपाल के अखबारों में नहीं थी प्रभाष जी के निधन की खबर!!

वासु पिछले दिनों ही दिल की बीमारी से उबरे हैं। अभी साल भी पूरा नहीं हुआ उनके हार्ट अटैक को. जिस आदमी के दिल का 40 फीसदी हिस्सा ही काम का हो उसके लिए अतिरिक्त तवज्जोह देना लाजिमी है। सो नई इबारतें की नये मंच पर पहली बात उनकी। वासु मित्र पत्रकारिता के बेहद पुराने छात्र हैं, स्टेट रिसोर्स सेंटर में लोगों के दुख का लेखा जोखा तैयार करते हैं, अपने दुखों को भूलने का यह उनका पुराना तरीका है। यात्राएं और गप्पबाजी पसंद वासु प्रभाष जोशी जी के मंच से चले जाने से दुखी तो हैं ही उनके साथ किये गये अखबारी मजाक से भी नाखुश हैं। उनकी बात।
पत्रकारिता के पुरोधा को भी न मिल पायी चार कॉलम की जगह
-वासु मित्रा
देश के जाने माने और हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी नहीं रहे। पत्रकारिता जगत के लिये यह एक बहुत बड़ी दुख:द खबर है। एक वरिष्ठ पत्रकार जिसने अपनी कलम से पत्रकारिता जगत को न सिर्फ एक नया आयाम दिया 12 वर्षों तक जनसत्ता का संपादन करते हुए उनकी लेखन शैली से नए युग के हिंदी के पत्रकारों में एक नयी सोच पैदा हुई। अपनी विलक्षण प्रतिभा एवं लेखन शैली से उन्होंने जनसत्ता जैसे समाचार पत्र को व्यावसाकयिकता के इस दौर में भी उन्होंने न र्सिफ पत्रकारिता की मूल भावना को जिंदा रखा बल्कि हिंदी पाठकों के बीच समाचार पत्र की विश्वसनीयता बनाये रखा। यह बड़ी विडंबना है कि प्रभाष जोशी जी के निधन पर भोपाल के किसी भी समाचार पत्र (राजस्थान पत्रिका को छोड़)। जो अपने आप को भारत का सबसे बड़ा समाचार समूह, विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला अखबार घोषित करते है। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता के इस पुरोधा के देहावसान भी खबर प्रकाशित करने की कोई जरूरत नहीं समझी, आज के समय में जहां हिन्दी न सिर्फ अपनी राष्ट्रभाषा के महत्व को बचाने में संघर्षरत है वहीं एक वरिष्ठ हिन्दी भाषी पत्रकार जो देश के प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक समाचार पत्र के वरिष्ठ संपादक के साथ-साथ गांधीवादी चिंतक के देहावसन भी खबर छापने की जरूरत किसी भी मीडिया हाऊस ने नहीं समझी। । प्रभाष जोशी एक गंभीर पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी सारी जिन्दगी पत्रकारिता के लिये लगा दिया था। उनकी भाषा शैली में हिन्दी पत्रकारिता के लिये एक नया मार्ग तैयार किया था। भोपाल के सभी मीडिया हाउस लिये यह शर्म की बात है जिन्होने पत्रकारिता जगत के इस बड़ी खबर को अपने अखबार में श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिये चार कॉलम तो दूर अपितु चार लाइन की खबर नहीं छाप सकी समझा। भोपाल के मीडिया हाउसों के पत्रकारिता सिद्धांत और उनकी विश्वनीयता पर भी प्रश्न चिन्ह है जिन्होंने पत्रकारिता जगत के इस पुरोधा के देहावसान जैसी खबर को उनको सुधी पाठकों तक नहीं पहुँचाया।