लालकृष्ण आडवाणी, एबी बर्धन और प्रकाश करात की गुप्त मंत्रणा

कांग्रेस को भारतीय राजनीति से अलग करने का महाअभियान
खबर पक्की है। कोई झोल नहीं। पहली बार में विश्वास नहीं होता लेकिन तथ्यों को फिर परखने पर मामला साफ हो गया। आज सुबह 11 बजे मीटिंग हुई। अजय भवन में। एबी बर्धन की सदारत में। लालकृष्ण आडवाणी अपनी पारंपरिक पोशाक में थे। जबकि प्रकाश करात कुछ हटकर यानी छोटे कुर्ते और जींस में थे। सूत्र बताते हैं कि दोनों करीब 15 मिनिट के फासले से अजय भवन पहुंचे। पहले आडवाणी, फिर प्रकाश करात। एबी बर्धन तीन दिन से अजय भवन में ही जमे थे। वे इस मीटिंग के एजेंडे को अंतिम रूप दे रहे थे। मुलायम सिंह स्वास्थ संबंधी कारणों से नहीं आ सके और लालू प्रसाद ने अगले दौर की बातचीत में आने की हामी भरी है। यह मैराथन मीटिंग करीब चार घंटे चली।

अब आते हैं मुद्दे की बात पर। इस मीटिंग की तैयारी करीब तीन महीने से चल रही थी। ताज्जुब है कि अलां फलां लोगों की जरा सी छींक पर हंगामा करने वाला मीडिया इस तैयारी से अनभिज्ञ रहा। शुरुआत हुई दीपांकर भट्टाचार्य के बयान से जिसमें उन्होंने कहा था कि- भारतीय राजनीति के पतन के पीछे कांग्रेस है और जब तक कांग्रेस को नेस्तनाबूद नहीं किया जाएगा तब तक भारतीय राजनीति के सुखद समय की कल्पना दूर की कौडी है।

सीताराम येचुरी ने इस पर दीपांकर की हां में हां मिलाते हुए कई योरोपिय उदाहरण दिये और बेबीलोनियन लॉ के साथ इस बात को पुख्ता किया। आडवाणी ने देखा की भाजपा की दुश्मन नंबर एक के खिलाफ कम्यूनिस्ट महारथी एक सुर में बोल रहे हैं, तो उन्होंने आनन-फानन में कांग्रेस से छिटके पडे मुलायम सिंह और लालू प्रसाद से संपर्क किया। अमर सिंह के गम में दोबाला मुलायम सिंह को इस लाइन पर नई राजनीतिक संभावनाएं दिखाई दीं और उन्होंने लालू प्रसाद यादव से कहा कि बाकी झगडे-टंटे बाद में देखे जाएंगे। पहले कांग्रेस की नाव में छेद कर दिया जाए और फिर भी न डूबे तो बाल्टी भर-भर के पानी डालते रहें। लालू यादव को बात जंची और उन्होंने चंद्रबाबू नायडू का नाम सुझाया इस अभियान के अलगे साथी के रूप में।

आगे जो कुछ हुआ वह और ज्यादा दिलचस्प है। इस मामले में सबसे आखिर में एबी बर्धन को याद किया गया और वे ही इस कांग्रेस भगाओ समूह के संयोजक बने। उन्होंने एजेंडा तय करने और सभी की मीटिंग कॉल करने की जिम्मेदारी भी दी गई। दीपांकर भट्टाचार्य को बर्धन साहब की मदद के लिए नियुक्त किया गया। बात यहीं फंस गई थी। जनवरी के शुरुआती सप्ताह में दीपांकर ओवरकोट पहने हुए बर्धन साहब के पास पहुंचे। बर्धन साहब लाल फुलोवर पहने ईपीडब्ल्यू का नया अंक पढ रहे थे, जिसमें निर्मल कुमार चंद्र का लेख इन्क्लूसिव ग्रोथ इन नियोलिब्रल इंडिया छपा था।

आम आदमी की कडवी सच्चाइयों पर दोनों कॉमरेड भिड गये। बर्धन साहब जहां किसानों के बडे आंदोलन और मध्यवर्गीय लुंपैनी पर तल्ख हो रहे थे, वहीं दीपांकर इसके लिए सीपीआई की कमजोरियों को निशाना बना रहे थे। लेफ्ट के एक न होने को कांग्रेस बीजेपी की कामयाबी से जोडते हुए दीपांकर ने बुजुर्गवार को खूब लपेटा। ट्रेड यूनियन राजनीति की पक्की सडक पर चलकर भारतीय कम्यूनिस्ट राजनीति के पुरोधा बने बर्धन को यह बात नागवार गुजरी और इसे दीपांकर की निजी खुन्नस का नतीजा बताते हुए फिर से समाजवादी इतिहास के पन्ने पलटने की सलाह दे डाली।

दीपांकर इस बात पर बिगड गये और उन्होंने करात को कह दिया कि आइंदा उनसे किसी किस्म की उम्मीद न करें। वे अपनी राह पर अभी भले अकेले हों, लेकिन अगर उनकी पार्टी और विचारधारा में सच्चाई है, तो अंतत: वे भारतीय राजनीति को दिशा देंगे।

दीपांकर ने इस बारे में किसी अन्य से बातचीत नहीं की। मुलायम सिंह को उन्होंने बस इतना कहा कि वे खुद को इस समूह से अलग कर रहे हैं। लालू ने जब पूछा तो कह दिया कि वह निजी मामले हैं, इन्हें सार्वजनिक नहीं करना चाहते। लालू ने पूछा कि काहे का निजी। राजनीति कब से निजी हो गई, तो दीपांकर ने कहा कि वे कम्यूनिस्ट पार्टी के निजी मामलात की बात कर रहे हैं। इस बयान पर मुलायम भडक गये और लालू को अपनी तरफ खींचते हुए इस भाजपा कम्यूनिस्ट गठजोड से अलग रहने की सलाह दे डाली। हालांकि लालू मुलायम ने पूरी तरह खुद को अलग नहीं किया है, लेकिन वे फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। अब बचे करात आडवाणी और बर्धन ने इस एजेंडे पर आगे की बात की है।

विश्लेषकों का कहना है कि यह खाकी निक्कर और हंसिए का गठजोड भारतीय राजनीति को नया मोड देगा, अच्छा या बुरा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। मीटिंग की बातचीत का पता नहीं चला है। जैसे ही जानकारी मिलेगी हम बताएंगे। इस महीने की तीस तारीख को आडवाणी, बर्धन और करात के साथ मुलायम और लालू के रहने की भी उम्मीद जताई जा रही है, तब तक के लिए विदा।

(बुरा ही मानो होली है)