अंधविश्वास : कुछ फुटकर नोट्स और टॉप के अंधविश्वासियों पर एक नजर

अंधविश्वास : कुछ फुटकर नोट और टॉप के अंधविश्वासियों पर एक नजर: भाग एक
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सुबह-सुबह एक मित्र का फोन आया। सवाल के अंदाज में। पूछने लगे: अगर मरने की तारीख पता चल जाये तो क्या करोगे? मैंने अपनी मौत के बारे में ऐसा कुछ सोचा नहीं है और निकट भविष्य में मरने की सहूलियत भी नहीं है। सो पूछ बैठा क्यों क्या हुआ? उन्होंने बताया कि 21 दिसंबर 2012 को दुनिया खत्म हो जाएगी।

बीते 15 सालों से इस तरह की तारीखें खूब आती रही हैं। पर दुनिया खत्म नहीं हुई। पता नहीं कब मिटेगी। पाप भी खूब बढ़ रहे हैं, लेकिन पापों का घड़ा है कि भरने का नाम नहीं लेता। बहरकैफ। यह पूरा मसला अंधविश्वास से जुड़ा है। कुछ संगठन और समूह ऐसे अंधविश्वासों को बढ़ाने में लगे रहते हैं। इंटरनेट पर हम इन्हें 'षडय़ंत्र सिद्धांतवादी' के रूप में जानते हैं। इनकी वेब-बोट तकनीक बताती है कि 21 दिसंबर 2012, को एक बड़ी विनाशलीला होगी और पूरी दुनिया खत्म हो जाएगी। भला हो उन्होंने दो साल का वक्त दे दिया है। बिखरे हुए काम समेटने का।

यूं तो इंटरनेट के पढ़े-लिखे समाज में दुनिया के खात्मे की इस तारीख में विश्वास करने वाले गिने-चुने ही होंगे, लेकिन फिर भी उनकी संख्या को नगण्य भी नहीं माना जा सकता। इन अंधविश्वासी समूहों का कहना है कि इसी इंटरनेट की स्वचालित बोट ने 11 सितम्बर के हमलों तथा 2004 की सूनामी का पूर्वानुमान लगा लिया था और बाद में ये घटनाएं हुईं भी। इसलिए वे आगाह कर रहे हैं किसी बड़ी दुर्घटना के लिए।

बात
को धुएं में उड़ाने का जी चाहता है, लेकिन फिर भी चलिए भविष्यवाणी पर थोड़ा गंभीर ही हुआ जाए। तब सवाल है कि आखिर ऐसी कौन सी विनाशलीला होगी जो दुनिया को खत्म कर देगी। 'द टेलिग्राफ' की मानें तो दुनिया के चुंबकीय क्षेत्रों का बदलाव एक संभावित वजह हो सकती है। इस दिन तक दुनिया का चुंबकीय क्षेत्र परिवर्तित होगा जिससे कई प्राकृतिक आपदाएं आएंगी।

इस भविष्यवाणी को खंगालने पर पता चलता है कि 1990 में विकसित इंटरनेट बोट ज्योतिष और सर्च इंजिन का मिला-जुला रूप है। यह कई सारे वेब पन्नों की सूची तैयार करके उनकी इंडेक्सिंग करता है। उन पन्नों में मौजूद सामग्री को खंगालता है। इस सामग्री के सहारे लोगों के भविष्य तथा उनके अनुमानों का आकलन किया जाता है। शुरुआत में इसका इस्तेमाल शेयर मार्केट की गति भांपने में किया जाता था, लेकिन बाद में इसने अपना दायरा बढ़ाया और अब हर तरह के पूर्वानुमानों के लिए इस 'तकनीक' का इस्तेमाल होता है। यह एक अजीब तरीका है। लेकिन कई लाख लोग इस सिस्टम में यकीन रखते हैं और इन्हीं की वजह से दुनिया के खात्मे से लेकर चुनावों व खेलों में जीत-हार से लेकर फिल्मों के हिट-फ्लॉप की अफवाहें फैलती हैं। कोई भी सोचने-समझने वाला व्यक्ति इस तरह के सिस्टम को सुचारू नहीं मान सकता, ना ही इस पर यकीन की कोई ठोस वजह है, लेकिन इंटरनेट बोट के समर्थक इससे उलट सोचते हैं।

हम जानते हैं कि विज्ञान के विकसित होने के पूर्व हमें दुनिया की घटनाओं और क्रियाओं की वजहें निर्धारित करने में कुछ अनुमानों का सहारा लेना पड़ता था। ठोस आधार के अभाव में अदृश्य शक्ति की अवधारणा बनी और बारिश, बिजली, रोग, भूकंप जैसी कई घटनाओं की जिम्मेदारी देव, भूत, प्रेत और पिशाचों पर डालकर हम दिल बहला लेते थे। लेकिन आज जब इन घटनाओं के वैज्ञानिक आधार हैं, सूचनाएं और गणितीय तर्क सर्वसुलभ तब भी 'अंधविश्वास' की काली सुरंग में कूपमंडूक की तरह बैठे रहना महज सच्चाई से आंख चुराना ही है।

अंधविश्वासों की गिनती और प्रकार बताना संभव नहीं है। इन्हें परिभाषित करना तो और भी मुश्किल। बिल्ली के रोने की आवाज को परेशानी की सूचना, काम पर जाते समय छींक को काम न बनने की ताकीद, पूजा करते समय दीपक बुझने को अपशगुन मानना, खाने में बाल आना किसी परेशानी में द्योतक है, तो रोटी का बार-बार मुडऩा किसी अपने की याद का सूचक, इसी तरह छत पर कौवे का बोलना मेहमान की आमद बताता है, ये कुछ अंधविश्वास हैं, जो हर कोई किसी न किसी तरह से किसी न किसी वक्त पर मानता है। पृथ्वी के शेषनाग के फन पर रखे होने, बारिश और बिजली का कड़कना इंद्र के कारण है, भूकंप की मालिक एक देवी है, बीमारियों के कारण प्रेत और पिशाच हैं, इस तरह के अंधविश्वासों को प्राग्वैज्ञानिक या धार्मिक अंधविश्वास कहा जा सकता है। अंधविश्वासों का दूसरा बड़ा वर्ग है मंत्र-तंत्र। इसमें रोग निवारण, वशीकरण, उच्चाटन, मारण आदि शामिल हैं। जादू, टोना, शकुन, मुहूर्त, मणि, ताबीज आदि अंधविश्वास की संतानें हैं। इन सबके मूल में कुछ धार्मिक भाव हैं, लेकिन इनका विश्लेषण नहीं हो सकता।
(अगली पोस्ट में पढिय़ों खेलों की दुनिया के अंधविश्वासियों के बारे में)