"और भाई आजकल कहीं दिखाई ही नहीं देते कहां चले गए थे?"
"अरे कहीं नहीं हम तो यहीं थे बस मजा ले रहे हैं."
"कैसा मजा?"
"अरे तुम्हें नहीं पता, कहां रहते हो, भोपाल गए थे. वहां खबरें नहीं पहुंचती क्या?"
"अरे यार पहेलिया न बुझाओ? क्या चल रहा है सो बताओ?"
"पहेली फहेली कुछ नहीं. अभी अभी अल्ली पार वाले बांके ने एक मुद्दा उछाला है. मुद्दा क्या है पूरा पैकेज है. स्त्री है, भाषा है, वाद है, संवाद है, मूल्य है, मेल है, मिलाप है, कुछ नई अभिव्यक्ति का घोंट है कुछ पुरानी नैतिकता का छौंक है. कुल मिलाकर खूब लत्तम जुत्तम है. अभी तो कुल जमा जुबानी खर्च ही चल रहा है. यार किसी का सिर फिर फूटे तो मजा आ जाए. इस किसम की सिर फुट्टौव्वल बहुत दिनों से नहीं देखी..."
"यार क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा. कोई सिरा तो पकडाओ... हम भी कहीं इस में न पिस जाएं... कोई विवाद से हम यदि इसी समाज में हैं तो अछूते नहीं रह सकते."
"साले, सठियाओ न. इन विवादों में तुम क्या खाकर कूदोगे. अल्ली पार के बांके की अपनी जमात है और पल्ली पार का बांके तो शुरू से ही उजड्ड है. वैसे उजड्ड पना तो अल्ली पार के बांके में भी है लेकिन उसने कुछ हद तक अपनी एक ग्रेविटी मेंटेंने की है. ये वाला पढता लिखता खूब है सो चीजों को अपने हक में करने की कूटनीतिक समझ भी उसे खूब है.. हां पल्ली पार वाला जब नंगई पे उतरता है तो वो समझता है कोई वाद का विवाद खडा कर रहा है जबकि होता उलट है... वैसे अभी भी जो लोग इस तू तू मैं मैं में शामिल हैं वे दूध के धुले नहीं है... बजार पर खूब गाली गलौच की थी इन्होंने... सब साले एक ही थैली के हैं..."
"अबे तुम चुप भी करो ऐसा कहीं होता है. तुम तो सबको एक ही तराजू में तौल रहे हो.. यार कोई मसला होता है तो एक पक्ष गलत या कुछ हद तक गलत जरूर होता है. सभी चीजों को एक साथ रखकर नहीं देखना चाहिए... मैं तो कहता हूं थोडा रुककर तेल देखो और तेल की धार.... और प्लीज ये सिर फुट्टौव्वल के लिए मत मरे जाओ... इससे तुम्हारा तो असली चेहरा दिखता ही है... ये भी तो हो सकता है कि इस बहस कोई किसी सिरे पर पहुंचने की सच्ची कोशिश कर रहा हो... मुझे तो यही लगता है... अभी देखता हूं कि मैं इस बाजार में किस जगह खडा हूं...."