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लंबी खामोशी है, तोडोगे तुम
अजनबी शहर में पहला दिन : कुछ बेतरतीब जुमले
ख्वाब मरते नहीं
तुम नहीं थे वहां मैं भी नहीं था यहां
मैंने सीख लिया, आप सीखे कि नहीं
वो चांद को नहला रहा था जिसमें नदी डूब गई
कागज पर लिख्खा एक नाम
मौत के पहलू में गुनगुनाई गई एक लय
सुबह तक चांद से बातें करते हुए
मैं अभी यहीं हूं कहीं नहीं जाउंगा आखिरी चीख के पहले
चार इमली से खुलता है शहर की किस्मत का दरवाजा
ये किसके पसीने की हरियाली है भेल में
पुरखों के घर, घरों के सपने और सपनों की लय
न्यू मार्केट : एन ओल्ड सरप्राइज
गौर से देखोगे तो बोल उठेगा गौहर महल
लाल मिट्टी कहती है सतरंगा इतिहास
जवां है बड़ी झील
कितने बहाने आते हैं बड़ी झील को
वहां पत्थर भी गुनगुनाते हैं
हमसे पूछो न दोस्ती का सिला
नमस्कार, सर
अलविदा लुधियाना, नहीं रहे सचिन लुधियानवी
भास्कर का टैलेंट पूल: जिम्मदारी की तैयारी
फिर भोपाल
एक शब्द का प्रिय होना
एक अपील भरोसेमंद
मकान जो कहीं नहीं है
अधूरी कविता जिसे पूरा नहीं होना---- कभी भी
ये तो डिलीट हो लिए..
"मस्तराम" नहीं रहे
वहां बदलाव की लय सुनी जा सकती है
क्या ब्लॉगवाणी भी चला नारद की राह
आज बस इतना ही
मोहल्ले और भडास की असली औकात या यूं कहें कि "ताकत"
क्या अविनाश और यशवंत में सवालों का सामना करने की हिम्मत है?