हल्की सर्दी और भारी गर्मी से भरी
जब मैं एक अजनबी शहर में
शामिल कर रहा हूं खुद को
बिना इस शहर की इजाजत के
यह पहली बार है
कि किसी शहर के अपनी तरह के अनूठे जीवन में प्रवेश करते हुए
मुझे ख्याल आया है
मुझे ख्याल आया है
कि जरूरी है शहरों से पूछना
"क्या मैं आपको देख सकता हूं?"
या कि
"क्या मैं आपकी गलियों में घूम सकता हूं अपनी अजनबीयत के साथ?"
(भीतर बैठा शातिर कहता है-
अच्छा ही हुआ धडधडाते हुए चले आए
मना कर देता तो नाहक उल्टे पांव लौटना पडता
या फिर बेकार की बकझक करनी होती)
अजीब है कि हम शहरों में घुसे चले जाते हैं
बिना यह सोचे कि
वे उस समय उदास हैं,
या किसी मौज में बहे जा रहे हैं
या फिर अपने अकेलेपन में गुनगुना रहे हैं
कोई पुरानी लय
ठीक उसी वक्त को
उस शहर का
सबसे जरूरी चेहरा मानकर
हम उसके बारे में राय बनाते हैं
जो अपने तमाम प्यारे प्यारे अनुभवों के बावजूद
नहीं जाती
चिपककर बैठी रहती है
हर देखे गए शहर के साथ
होने को क्या नहीं हो सकता
अब शहर हैं तो उसका दिल भी होगा
जो कहीं न कहीं धडकता होगा
उदाहरण से बात करें तो मुंबई को ही देखो
जब धडकता है उसका दिल
तो देश के किसी भी कोने में सुनी जा सकती हैं आवाज
हालांकि मुंबई ने
अपने प्रिय दोस्त कोलकाता से
चेन्नई के साथ
एक रात गप्पबाजी में कहा था कि उसका दिल हमेशा
दिल्ली के लिए धडकता है
इतना कहकर मुंबई के चेहरे पर उदासी छा गई
जिसमें अरब सागर का खारापन था
फिर उस रात तीनों दोस्त देर तक बातें करते रहे
आप माने या न मानें
कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि
उसी रात के बाद मुंबई के आंसू सूखे नहीं है
अब उस रात बहे आंसुओं को हम अरब सागर कहते हैं
और ठीक उसी वक्त ढांढस बंधाने के दौरान गीली हुई कोलकाता और चेन्नई की आंखें
बंगाल की खाडी को भर गईं
अपनी विदेशी सहेलियों और ताकतवर दोस्तों में उलझी दिल्ली तक
यह बात न पहुंची
न पहुंचाने की कोशिश की गई
अब बात निकल आई है तो जिक्र करना जरूरी है
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई एक जमाने में दोस्त थे
जैसे और दोस्त होते हैं
एक दूसरे पर जान छिडकने वाले
धीरे धीरे सबके अपने अपने काम धंधे, व्यापार, रोजगार और जिम्मेदारियों के दरख्त बढते गए
और सब एक दूसरे से मिलने जुलने भी कम ही आ पाते हैं
जरूरतें जरूर इन्हें मिलाती हैं
लेकिन ये मिलना वैसा नहीं होता
जब ये चारों दोस्त अपनी अपनी अलमस्त शरारतों के साथ धमाचौकडी मचाते थे
और इनकी आवाज चांद तक पर सुनी जाती थी
अब आप खुद ही जानते हैं
दिल्ली को किस कदर चाहता है मुंबई
और खुद दिल्ली के बारे में कहते हैं उसे जानने वाले
कि दिल्ली के हर कदम में मुंबई की चाल का संगीत होता है
तो फिर ये दिल्ली का दिल पसीजता क्यों नहीं???
पर पसीज गया तो!!!
अरब सागर या बंगाल की खाडी?
नहीं दिल्ली
तुम दिल कडा किए रहना
तुम रोईं तो सबको रुला दोगी!!!!
"क्या मैं आपको देख सकता हूं?"
या कि
"क्या मैं आपकी गलियों में घूम सकता हूं अपनी अजनबीयत के साथ?"
(भीतर बैठा शातिर कहता है-
अच्छा ही हुआ धडधडाते हुए चले आए
मना कर देता तो नाहक उल्टे पांव लौटना पडता
या फिर बेकार की बकझक करनी होती)
अजीब है कि हम शहरों में घुसे चले जाते हैं
बिना यह सोचे कि
वे उस समय उदास हैं,
या किसी मौज में बहे जा रहे हैं
या फिर अपने अकेलेपन में गुनगुना रहे हैं
कोई पुरानी लय
ठीक उसी वक्त को
उस शहर का
सबसे जरूरी चेहरा मानकर
हम उसके बारे में राय बनाते हैं
जो अपने तमाम प्यारे प्यारे अनुभवों के बावजूद
नहीं जाती
चिपककर बैठी रहती है
हर देखे गए शहर के साथ
होने को क्या नहीं हो सकता
अब शहर हैं तो उसका दिल भी होगा
जो कहीं न कहीं धडकता होगा
उदाहरण से बात करें तो मुंबई को ही देखो
जब धडकता है उसका दिल
तो देश के किसी भी कोने में सुनी जा सकती हैं आवाज
हालांकि मुंबई ने
अपने प्रिय दोस्त कोलकाता से
चेन्नई के साथ
एक रात गप्पबाजी में कहा था कि उसका दिल हमेशा
दिल्ली के लिए धडकता है
इतना कहकर मुंबई के चेहरे पर उदासी छा गई
जिसमें अरब सागर का खारापन था
फिर उस रात तीनों दोस्त देर तक बातें करते रहे
आप माने या न मानें
कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि
उसी रात के बाद मुंबई के आंसू सूखे नहीं है
अब उस रात बहे आंसुओं को हम अरब सागर कहते हैं
और ठीक उसी वक्त ढांढस बंधाने के दौरान गीली हुई कोलकाता और चेन्नई की आंखें
बंगाल की खाडी को भर गईं
अपनी विदेशी सहेलियों और ताकतवर दोस्तों में उलझी दिल्ली तक
यह बात न पहुंची
न पहुंचाने की कोशिश की गई
अब बात निकल आई है तो जिक्र करना जरूरी है
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई एक जमाने में दोस्त थे
जैसे और दोस्त होते हैं
एक दूसरे पर जान छिडकने वाले
धीरे धीरे सबके अपने अपने काम धंधे, व्यापार, रोजगार और जिम्मेदारियों के दरख्त बढते गए
और सब एक दूसरे से मिलने जुलने भी कम ही आ पाते हैं
जरूरतें जरूर इन्हें मिलाती हैं
लेकिन ये मिलना वैसा नहीं होता
जब ये चारों दोस्त अपनी अपनी अलमस्त शरारतों के साथ धमाचौकडी मचाते थे
और इनकी आवाज चांद तक पर सुनी जाती थी
अब आप खुद ही जानते हैं
दिल्ली को किस कदर चाहता है मुंबई
और खुद दिल्ली के बारे में कहते हैं उसे जानने वाले
कि दिल्ली के हर कदम में मुंबई की चाल का संगीत होता है
तो फिर ये दिल्ली का दिल पसीजता क्यों नहीं???
पर पसीज गया तो!!!
अरब सागर या बंगाल की खाडी?
नहीं दिल्ली
तुम दिल कडा किए रहना
तुम रोईं तो सबको रुला दोगी!!!!