यानी जो इस वक्त घट रहा है वह इसके बाद कभी वापस नहीं आयेगा। यह जो गुजर जाएगा, वह किसी ब्लैक होल में जमा होगा। हमारा दिमाग में इसकी एक याद तो रहेगी, लेकिन वह भी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म की पुरानी रील की तरह। जिसमें कई जगहों पर धब्बे होंगे।
जैसे अब जब बारिश को सोचते हैं तो यह भी याद आता है कि इन दिनों बारिश तेज नहीं होती बस जैसे एक काम है यह भी मौसम का। वह बरस जाता है। अक्सर देर सबेर और बेहद कम। कुछ लोग इसके लिए हमें ही जिम्मेदार ठहराते हैं। यहां में पर्यावरण की पेचीदा बहस में नहीं पडूंगा। क्योंकि यादों में ढूंढे जाने वाले पेड़ भी हम काट चुके हैं, जिनसे पहले जैसी बारिश होती। तेज बारिश के लिए जो घने पेड़ चाहिए उन्हें बचाने वाले लोग नहीं रहे तो बारिश भी अब धीमी रफ्तार से गिरती है। और शायद इसीलिए बूंदे मिट्टी में धंसती नहीं हैं, बस फैल जाती है। वगरना बूंदें, जब मिट्टी पर पड़ती थीं, तो धूल का एक बेहद छोटा गुबार उठता था और बूंद एक गड्डा बना देती थी। जहां सख्त जमीन के नीचे से पत्थर झांकने लगते थे। घरों की मुंडेर से टपकते उरवाती के रेले ऐसा तेजी से करते थे और उन जगहों पर सफेद चुन-कंकड़ों का अच्छा-खासा अंबार लग जाता था। लंबी रिमझिम के बीच जब खेत-खलिहान के काम ठप होते थे, गोटी खेलने वालों के लिए ये पत्थर जरूरी थे। प्रकृति और इंसान का रिश्ता पहली बार बेहद साफ-साफ शक्ल में यहीं देखा था। बारिश काम पर नहीं जाने देती और बारिश ही खेलने के लिए गोटियां उपलब्ध कराती है। अब बारिश में भी काम पर जाने वालों की संख्या अच्छी खासी है और उसी अनुपात में बारिश में बाहर आने वाले कंकड़ कम हो गये हैं।
मौसम विभाग के अनुसार भी बारिश में बदलाव आया है। हालांकि इस विभाग की रपटें उस बदलाव को देखने की अभ्यस्त नहीं हैं, जो हर जगह की बारिशों में देखा गया है। अब जबकि स्थायी सिर्फ ई-मेल, फेसबुक और ऑरकुट के अकाउंट माने जाने लगे हैं, तो बारिश से अपने दो दशक पुराने रूप में लौटने की जिद एक मासूम इच्छा भर हो सकती है। जिसे कभी पूरा नहीं होना है।
सचिन श्रीवास्तव
मूलत: घुमक्कड़। इतिहास, दर्शन, सामाजिक सैद्धांतिकी, तकनीक, सोशल मीडिया, कला, साहित्य, फिल्म और क्रिकेट के अध्ययन में गहरी दिलचस्पी। संविधान, न्याय, लोकतंत्र के साथ तकनीक की राजनीति की परतें खोलने की कोशिश। मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के ओंडेर गांव में जन्म। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मुंगावली और गंज बासौदा में। किशोरवय में भारतीय जन नाट्य मंच (इप्टा) से जुड़ाव। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि, भोपाल से स्नातक। जालंधर, रांची, मेरठ, कानपुर, लुधियाना, भोपाल, इंदौर, गाजियाबाद, मुंबई, नोएडा आदि शहरों में विभिन्न मीडिया संस्थानों में नौकरियां। डायरी से कविता और कहानी से रिपोर्ताज तक विभिन्न विधाओं में फुटकर लेखन। इन दिनों अपने शहर भोपाल में बतौर सामाजिक—राजनीतिक कार्यकर्ता उम्र को तुक देने की कोशिश... More