2011 कई मायनों में खास रहा। अन्ना का आंदोलन हो या फिर बंगाल में वाम दुर्ग का ढहना या फिर विश्व कप में भारत की जीत। इन घटनाओं के साथ कुछ चेहरे जुड़े थे, जो लगातार सुर्खियों में रहे। इसके अलावा कुछ सितारे बुलंदी से लुढ़ककर धरातल पर नजर आए तो कुछ लोगों के लिए 2011 सफलता का नया अध्याय लेकर आया। इसके अलावा पूरे साल में कुछ कहा-सुनी भी हुई, जो कभी माहौल में गर्माहट लाती दिखी तो कभी विवादों को बढ़ावा देने वाली साबित हुई। कुल मिलाकर पूरे साल मशहूर हस्तियों के चेहरों के बीच कुछ चेहरे लगातार चमकते रहे। इन्हीं के बीच कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो हमेशा के लिए अलविदा कहकर खामोशी के अंधेरे में चले गए। आजकल का यह अंक 2011 के ऐसे ही चेहरों के नाम, जो याद रहे और यादें छोड़ गए।
चेहरे जो छाए रहे 2011 में
अन्ना हजारे : जनता के लिए, जनता का चेहरा
अगर 2011 को निर्विवाद रूप से अन्ना हजारे का साल कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भारतीय राजनीति में यह साल अन्ना की धमक के लिए याद किया जाएगा, तो सामाजिक क्षेत्र में उनके अनूठे आंदोलन और अनशन के कौशल के लिए। पूरे देश में भ्रष्टाचार से त्रस्त जनमानस की नब्ज पर हाथ रखते हुए अन्ना ने उस सपने को परवाज दी, जहां से उम्मीद को पंख लगते हैं। वे लगातार चर्चा में ही नहीं रहे, बल्कि उन्होंने चर्चाओं को दिशा भी दी। रामलीला मैदान में मानसून सत्र के दौरान जब अन्ना अपने ऐतिहासिक अनशन पर बैठे, तब तक उनका नाम आंदोलन का पर्याय बन चुका था। लोग उनसे सहमत हो सकते है, असहमत हो सकते हैं, लेकिन उन्हें खारिज नहीं किया जा सकता। अन्ना जिद्दी हैं, वे जो ठान लेते हैं, उसे पाने की हर कीमत पर कोशिश करते हैं। इस बार उन्होंने भ्रष्टाचार मुक्त देश का सपना देखा है। इसके रास्ते में कितने ही रोड़े हों, लेकिन अन्ना ने लोगों में यह विश्वास जताया है कि उम्मीद की किरण अभी क्षीण नहीं हुई है। टीम अन्ना के अन्य चेहरे अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण, किरण बेदी, शांति भूषण, मनीष सिसौदिया और कुमार विश्वास भी पूरे साल सुर्खियों में रहे। इसी बीच अग्निवेश और बाबा रामदेव भी फासले ही सही टीम अन्ना के साथ लगातार चर्चा में रहे।
ममता बनर्जी : ऐतिहासिक जीत
राजनीतिक मैदान में सत्ता के चेहरे हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। साल 2011 में भी ऐसा ही हुआ। कपिल सिब्बल अपने अन्ना विरोध के लिए चर्चा में रहे, तो दिग्विजय सिंह अपने विवादास्पद बयानों के कारण सुर्खियों में रहे। इसी बीच पश्चिम बंगाल के चुनाव हुए और ममता बनर्जी ने ऐतिहासिक जीत हासिल कर साबित कर दिया कि क्यों उन्हें बंगाल में विशिष्टता प्राप्त है। 34 साल के वाम शासन को अप्रत्याशित ढंग से सत्ता से बेदखल करते हुए ममता बनर्जी ने इतिहास रचा। यह सिर्फ एक लंबे समय से चले आ रहे शासन की परिणिति ही नहीं थी, बल्कि नई जमीन पर पलते बंगाल का स्वप्न भी था। दिलचस्प यह कि वाम शासन को ममता ने उसी के हथियारों से मात दी। वही नीतियां, वही वायदे और वही तेवर। आने वाला साल भले ही ममता बनर्जी के लिए मुश्किलों लेकर आए, लेकिन 2011 उनके लिए ऐतिहासिक सफलता वाला रहा और वे साल का सबसे बड़ा राजनीतिक चेहरा बनकर उभरीं। यह सिर्फ चर्चाओं के कारण नहीं, बल्कि उस कारनामे के कारण जिसकी तीन दशकों से बाट जोही जा रही थी।
महेंद्र सिंह धौनी : दबाव में धैर्य की परख
1983 में कपिल देव की टीम ने क्रिकेट विश्वकप जीता था, तो वे रातों-रात हर भारतीय दिल की धड़कन बन गए थे। 2011 की विश्व कप विजेता के साथ दिक्कत यही थी कि वे पहले से ही लोगों के दिलों पर राज कर रहे थे, और अपनी ही जमीन पर उनसे खिताबी जीत से कम की उम्मीद किसी को नहीं थी। इस दबाव के बीच धौनी और उनकी टीम इंडिया ने दिखाया कि क्यों उन्हें विश्व स्तर पर सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। पहले इंग्लैंड, आॅस्ट्रेलिया और पाकिस्तान को पछाड़कर जब धौनी की टीम फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ भिड़ी, तब सभी जीत के प्रति आश्वस्त थे। धौनी और उनकी टीम जानती थी कि एक गलती सब कुछ बिगाड़ सकती है। नाजुक समय पर धौनी ने अपना संयम बनाए रखा और देश को 28 साल बाद खिताबी जश्न से सराबोर कर दिया। इस साल के खेल के चेहरों में सबसे बड़ा चेहरा महेंद्र सिंह धौनी का ही रहा। हालांकि बड़ी उम्र में बेमिसाल पारी खेलते सचिन तेंदुलकर के अलावा साल के अंत में वनडे क्रिकेट में दोहरा शतक और सबसे बड़ा स्कोर बनाने वाले वीरेंद्र सहवाग भी लगातार चर्चाओं में रहे।
सलमान खान : अव्वल खान
इस साल बॉलीवुड के कई चेहरों ने कामयाबी और बुलंदी को छुआ। फिल्में हिट हुर्इं, कई करार हुए और कई बड़े प्रोजेक्ट की नींव 2011 में पड़ी। लेकिन एक चेहरा हमेशा चर्चा में रहा, वह है सलमान खान का। पिछले साल आई दबंग की कामयाबी को रेडी के सहारे आगे ले जाने वाले सलमान ने बॉडीगार्ड के साथ इतिहास रचा और कम से कम 2011 में तो दोनों अन्य खान शाहरुख और आमिर को पीछे छोड़ दिया। शाहरुख की रा-वन पूरे साल चर्चा में रही, लेकिन बॉक्स आॅफिस पर वह जादू नहीं बिखेर पाई, जिसकी उम्मीद थी। फिल्मों के अलावा छोटे परदे पर भी सलमान का जादू कामयाबी से चलता रहा। बतौर बिग बॉस होस्ट उन्होंने अपनी अदाओं से लोगों को दीवाना बनाए रखा। पांचवें सीजन में भी उनकी कमी लगातार महसूस की जा रही है। सलमान ने पूरे साल साबित किया कि क्यों उन्हें नंबर वन इंटरटेनर कहा जाता है। परदे के अलावा भी सलमान का जादू लगातार चलता रहा। सलमान ने 2011 में अपनी बेड ब्वाय की छवि से भी निजात पाई है। उन्होंने इसी साल बच्चों के लिए चिल्लर पार्टी बनाकर अपना दूसरा पक्ष भी सामने रखा।
राहुल गांधी : अपनी जमीन पर हमलों के बीच
वे यात्रा कर रहे हैं। लोगों से मिल रहे हैं। विरोधियों के खिलाफ हमले बोल रहे हैं और सबसे बड़ी बात कि लोगों के करीब पहुंच रहे हैं। राहुल गांधी पूरे साल सुर्खियों में रहे। पक्ष और विपक्ष की राजनीति उनके कदमों से दिशा पाती रही। कांग्रेस ने उनके कार्यक्रमों से अपनी राजनीतिक बढ़त कायम रखने की कोशिश की तो विपक्षियों ने उनके बयानों पर जवाबी हमले करने की रणनीति अख्तियार की। यानी कुल मिलाकर वे राजनीति का केंद्र बने रहे। अगले साल उत्तरप्रदेश समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और कोई दल भारतीय राजनीति के सबसे बड़े परिवार की विरासत को अपने नुकसान के साथ नहीं जोड़ना चाहता। राहुल गांधी ने अपने एक दशक के सार्वजनिक जीवन में लगातार हमले झेले हैं और अब वे इसके आदी हो चुके हैं। 2011 में यह बात साफ तौर पर दिखाई दी। इसीलिए हमलों से बेपरवाह राहुल अपनी जमीन तैयार करने में जुटे रहे। इस जमीन पर उगने वाली फसल तो 2012 में दिखाई देगी, लेकिन उन्होंने जो मेहनत की उसकी वजह से 2011 में वे लगातार सुर्खियां पाते रहे। राहुल भी हैं 2011 के चेहरे जो पूरे साल खबरों और चर्चाओं में छाए रहे।