जन्माष्टिमी पर विशेष: कृष्ण का जीवन. . . 5 सहस्त्राब्दी 5 सबक

25 अगस्त 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित
सचिन श्रीवास्तव
भारतीय दर्शन परंपरा में राम और कृष्ण के ईश्वरीय रूप दो किनारों पर हैं। एक ओर राम हैं, जो साधन की पवित्रता पर यकीन करते हैं। यानी लक्ष्य हासिल करने के लिए अपनाया गया रास्ता सही होना चाहिए, चाहे अंतिम परिणाम कुछ भी हो। वहीं कृष्ण येन-केन-प्रकरेण लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कोई भी रास्ता अपनाने से परहेज नहीं करते। दिलचस्प यह है कि लक्ष्य हासिल करने में रास्ते के चयन की नैतिक बाधाओं को कृष्ण अपने अकाट्य तर्कों से नेस्तनाबूद कर देते हैं। मिथकीय साहित्य में कृष्ण का जन्म पांच हजार साल पहले माना गया है। तो आइए जानते हैं पांच सहस्त्राब्दी पहले जिये गए कृष्ण के जीवन के वे पांच सबक, जो आज भी उतने ही जरूरी हैं, जितने सदियों पहले थे...

संगीत:
खूबसूरत ध्वनियों का साथ
कृष्ण का जिक्र आने पर ज्यादातर मौकों पर जो तस्वीर जेहन में आती है, वह उनकी बांसुरी वाली छवि ही है। वे संगीत के जानकार थे और बांसुरी की स्वरलहरियों से किसी को भी मदहोश करने की क्षमता रखते थे। 
सबक: म्यूजिक कृष्ण का पहला और सबसे गंभीर सबक है। अगर आपकी जिंदगी में संगीत नहीं, तो आप सूनेपन से बच नहीं सकते। संगीत जीवन की उलझनों और काम के बोझ के बीच वह खूबसूरत लय है, जो हमेशा आपको प्रकृति के करीब रखती है।
आज क्यों जरूरी: आज के दौर में कर्कश आवाजें ज्यादा हैं। ऐसे में खूबसूरत ध्वनियों की एक सिंफनी आपकी सबसे बड़ी जरूरत है। 

राजनीत:
परखो, समझो, कार्रवाई करो
कृष्ण ने किशोरवास्था में मथुरा आने के बाद से अपना पूरा जीवन राजनीतिक हालात सुधारने में लगाया। वे कभी खुद राजा नहीं बने, लेकिन उन्होंने तत्कालीन विश्व राजनीति पर अपना प्रभाव डाला। मिथिकीय इतिहास इस बात का गवाह है कि उन्होंने द्वारका में भी खुद सीधे शासन नहीं किया। 
सबक: अपनी भूमिका निर्धारित करो और हालात के मुताबिक कार्रवाई तय करो। महाभारत युद्ध में दर्शक रहते हुए भी वे खुद हर रणनीति बनाते और आगे की कार्रवाई तय करते थे। 
आज क्यों जरूरी: पदों के पीछे भागने की दौड़ में राजनीति अपने मूल उद्देश्य को भूल रही है। ऐसे में कृष्ण की राजनीतिक शिक्षा रोशनी देती है।

प्रेम:
 
जिसे चाहो, पूरी तरह चाहो
वृंदावन में गोपियों के साथ रास रचाने वाले कृष्ण को पशुओं और प्रकृति से बेहद लगाव था। उनका बचपन गायों और ग्रामीण जीवों के ईर्द-गिर्द बीता। ध्यान दीजिए जब मौका आया तो उन्होंने अपने नगर के लिए समुद्र के करीब का इलाका चुना। पहाड़, पशु, पेड़, नदी, समुद्र कृष्ण की पूरी कहानी का जरूरी हिस्सा हैं। 
सबक: कृष्ण ने जिसे चाहा, टूटकर चाहा और अपने प्रिय के लिए वे किसी भी हद से गुजरे। साथ ही अपने काम को भी नहीं भूले। वे अपने सबसे प्रिय लोगों को किशोरवय में छोड़कर मथुरा आए, काम की खातिर।
आज क्यों जरूरी: प्रेम और काम के बीच उलझे हमारे दौर में कृष्ण वह राह सुझाते हैं जहां दोनों के बीच तार्किक संतुलन है।

दोस्ती: सुदामा से अर्जुन तक
बतौर दोस्त कृष्ण के दो रूप दिखाई देते हैं। एक सुदामा के दोस्त हैं और दूसरे अर्जुन के। तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों में उन्हें अर्जुन जैसे दोस्त की दरकार थी। लेकिन वे सुदामा के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी नहीं भूलते हैं। यह कृष्ण की दोस्ती का फलसफा है।
सबक: दोस्त को जरूरत से ज्यादा खुद पर निर्भर मत बनाओ। अर्जुन को कृष्ण सलाह देते हैं। वे अपने दोस्त को लडऩे लायक बनाते हैं, उसके लिए खुद नहीं लड़ते। सुदामा को भी आर्थिक मदद ही करते हैं।
आज क्यों जरूरी: दोस्ती की छीजती सलाहियत के बीच कृ़ष्ण दोस्त की पहचान पर जोर देते हैं।

समाज सेवा: कोई काम छोटा नहीं
ध्यान दीजिए सारथी भी बनते हैं और ग्वाले भी हैं। वे सुदामा के पैर धोते हैं और युधिष्ठिर से पैर धुलवाते हैं। समाज सेवा करते हुए कृष्ण लगातार यह दिखाते हैं कि कोई काम छोटा बड़ा नहीं है। कर्म प्रधानता का पूरा शास्त्र गीता इसका बड़ा उदाहरण है। 
सबक: काम करो। बस काम। जो भी सामने हो, जैसा भी काम हो। कृष्ण अकर्मण्यता के खिलाफ हैं।
आज क्यों जरूरी: शार्टकट्स और पहले रिजल्ट जानने की जिद के दौर में कृष्ण के सबक ज्यादा अहम हो जाते हैं। वे रिजल्ट की परवाह के पक्ष में नहीं हैं। 

-----------------------
स्रोत: आप ही बनिये कृष्ण (गिरीश पी जखोटिया), अंतहीन यात्रा (स्वामी परमानंद), अंतराल-महासमर-5 (नरेंद्र कोहली), कृष्ण, द सुप्रीम पर्सनालिटी ऑफ गॉडहेड (स्वामी प्रभुपदा), कृष्ण: अ सोर्सबुक और कृष्ण: द ब्यूटीफुल लीजेंड ऑफ गॉड (एडविन फ्रांसिस ब्रायन्ट), एन आइडेंटी कार्ड ऑफ कृष्णा (देवदत्त पटनायक)