सचिन श्रीवास्तव
हाल ही में भारत की एक बड़ी फूड चैन के एप का डाटा लीक हुआ है। साइबर सिक्योरिटी फर्म के मुताबिक इसमें कस्टमर के नाम, ईमेल एड्रेस, फोन नंबर, घर का पता के अलावा उनकी सोशल मीडिया प्रोफाइल की लिंक भी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि करीब 22 लाख ग्राहकों की जानकारी लीक हुई है। ऐसी खबरें पहले भी आती रही हैं और आगे भी इनमें कमी आने की कोई गुंजाइश नहीं है। क्योंकि ग्राहकों की जानकारी यानी डाटा का बाजार बहुत बड़ा है और दुनियाभर की कंपनियों की नजर इस जानकारी पर होती है।
कैसे लीक होता है डाटा
जब हम किसी रेस्टोरेंट, स्टोर या किसी अन्य सेवा को अपनी जानकारी देते हैं, तो यह उसके सर्वर पर रिकॉर्ड हो जाती है। कंपनियां अपने लगभग हर ग्राहक की जानकारी रखती हैं, ताकि उनसे संपर्क किया जा सके। यह जानकारी जिस कंप्यूटर या सिस्टम में होती है, उसके जरिये चोरों तक इसकी पहुंच बन जाती है। संबंधित सेवा के एप को लॉगिन करते वक्त अगर हम सोशल मीडिया एकाउंट का इस्तेमाल करते हैं, तो वह जानकारी भी इसमें जुड़ जाती है।
बड़ा बाजार और चोरों की निगाहें
साइबर चोर बड़ी कंपनियों से लेकर एप और स्टोर तक के डेटा पर निगाह रखते हैं। किसी भी सिस्टम में सेंध लगाने की जरा सी भी गुंजाइश होने पर वे अपने काम में लग जाते हैं। दिक्कत यह है कि ऐसी चोरी कई बार निगाह में भी नहीं आ पाती है, क्योंकि जानकारी को कॉपी करने के बाद चोर वर्चुअल दुनिया में खो जाते हैं।
भारतीय डेटा पर है ज्यादा नजरें
चूंकि भारत एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है इसलिए भारतीय ग्राहकों की जानकारी में दुनिया के कई बड़े दिग्गजों की रुचि है। इसके लिए वे अपनी तरफ से चोरों की टीम भी तैयार करते हैं, तो दूसरे चोरों से सौदेबाजी भी करते हैं। यह जानकारी शहरों, गांवों, समुदाय विशेष और खरीदारी के आंकड़ों से संबंधित होती है। इससे कंपनियों को अपनी नितियां बनान में आसानी होती है।
अरबों का है बाजार
डेटा चोरी का बाजार कितना बड़ा है इसका ठीक-ठीक अनुमान लगाना कठिन है। क्योंकि ज्यादातर सौदेबाजी परदे के पीछे होती है। साइबर चोरी के विशेषज्ञों के मुताबिक यह बाजार अरबों रुपए का है। 2015 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि यूरोप में एक टीबी डेटा की कीमत 10 मिलियन डॉलर (60 से 70 करोड़ रुपए) तक हो सकती है। जानकारी की कीमत उसकी सत्यता के आधार पर बढ़ती-घटती रहती है।
ली जा रही सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मददसाइबर चोरों से हलकान कंपनियां अब अपने ग्राहकों की जानकारी को सुरक्षित रखने के लिए सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मदद ले रही हैं। साथ ही समय-समय पर डेटा माइनिंग के जरिये भी जानकारी को लीक होने से बचाया जा रहा है। इसके बावजूद चोर नित नए तरीकों से सेंधमारी कर रहे हैं।
बढ़ रहा है डेटा वेयरहाउस का चलनरोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले कंप्यूटर में जानकारी एकत्रित करने से उसके चोरी होने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए अब कंपनियां डेटा वेयरहाउस के विकल्पों को तेजी से अपना रही हैं। यह एक ऐसा स्टोर होता है, जहां आप काम न आने वाली अपनी जरूरी जानकारी को सुरक्षित रख सकते हैं। यह किसी भी डेटा चोर की नजर से बाहर होती है। जरूरत होने पर इस वेयरहाउस से डेटा लिया जा सकता है।
खुले बाजार में भी बिकता है डेटा
अमूमन चोरी का डेटा परदे के पीछे बिकता है, लेकिन इसकी कई बार ऑनलाइन बिक्री भी की जाती है। हाल ही में वेब ब्राउजर प्रोग्राम से हटाए गए चोरी के लाखों अकाउंट्स को ऑनलाइन बिक्री के लिए रखा था। हालांकि संबंधित सोशल साइट ने ऐसी किसी लीक से इनकार किया था। उधर, लीक डेटा से संबंधित एक सर्च इंजन के मुताबिक हर रोज दुनियाभर में डेटा बिक्री के सैकड़ों सौदे होते हैं। इनमें छोटे-मोटे उत्पादों की जानकारी से लेकर ग्राहकों की जानकारियां तक शामिल होती हैं।
कंज्यूमर डेटा की मांग सबसे ज्यादा
दुनियाभर में सबसे ज्यादा मांग कंज्यूमर डेटा की है। यानी उन लोगों की जानकारी जो लगातार खरीदारी करते हैं। इसके लिए डेटा चोर स्टोर्स, फूड चैन और क्रेडिट कार्ड कंपनियों पर नजर रखते हैं। हाल ही के दिनों में इस तरह की डेटा चोरी की कई घटनाएं सामने आई हैं। ज्यादातर साइबर डेटा चोर अमरीका और चीन से संबंधित होते हैं, जिनके निशाने पर भारत और यूरोपीय देश हैं।
डेटा एकत्रित करने की भी हैं कई तरकीबें
कई कंपनियां फोन नंबर, ईमेल आईडी आदि के जरिये डेटा इकट्ठा भी करती हैं। इसके लिए लुभावने विज्ञापन, बंपर ईनाम या भावुक मैसेज के जरिये ग्राहक को फांसा जाता है। इसके तहत कुछ जरूरी जानकारियां ली जाती हैं और काफी डेटा इकट्ठा होने पर उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दाम पर बेच दिया जाता है।
हाल ही में भारत की एक बड़ी फूड चैन के एप का डाटा लीक हुआ है। साइबर सिक्योरिटी फर्म के मुताबिक इसमें कस्टमर के नाम, ईमेल एड्रेस, फोन नंबर, घर का पता के अलावा उनकी सोशल मीडिया प्रोफाइल की लिंक भी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि करीब 22 लाख ग्राहकों की जानकारी लीक हुई है। ऐसी खबरें पहले भी आती रही हैं और आगे भी इनमें कमी आने की कोई गुंजाइश नहीं है। क्योंकि ग्राहकों की जानकारी यानी डाटा का बाजार बहुत बड़ा है और दुनियाभर की कंपनियों की नजर इस जानकारी पर होती है।
कैसे लीक होता है डाटा
जब हम किसी रेस्टोरेंट, स्टोर या किसी अन्य सेवा को अपनी जानकारी देते हैं, तो यह उसके सर्वर पर रिकॉर्ड हो जाती है। कंपनियां अपने लगभग हर ग्राहक की जानकारी रखती हैं, ताकि उनसे संपर्क किया जा सके। यह जानकारी जिस कंप्यूटर या सिस्टम में होती है, उसके जरिये चोरों तक इसकी पहुंच बन जाती है। संबंधित सेवा के एप को लॉगिन करते वक्त अगर हम सोशल मीडिया एकाउंट का इस्तेमाल करते हैं, तो वह जानकारी भी इसमें जुड़ जाती है।
बड़ा बाजार और चोरों की निगाहें
साइबर चोर बड़ी कंपनियों से लेकर एप और स्टोर तक के डेटा पर निगाह रखते हैं। किसी भी सिस्टम में सेंध लगाने की जरा सी भी गुंजाइश होने पर वे अपने काम में लग जाते हैं। दिक्कत यह है कि ऐसी चोरी कई बार निगाह में भी नहीं आ पाती है, क्योंकि जानकारी को कॉपी करने के बाद चोर वर्चुअल दुनिया में खो जाते हैं।
भारतीय डेटा पर है ज्यादा नजरें
चूंकि भारत एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है इसलिए भारतीय ग्राहकों की जानकारी में दुनिया के कई बड़े दिग्गजों की रुचि है। इसके लिए वे अपनी तरफ से चोरों की टीम भी तैयार करते हैं, तो दूसरे चोरों से सौदेबाजी भी करते हैं। यह जानकारी शहरों, गांवों, समुदाय विशेष और खरीदारी के आंकड़ों से संबंधित होती है। इससे कंपनियों को अपनी नितियां बनान में आसानी होती है।
अरबों का है बाजार
डेटा चोरी का बाजार कितना बड़ा है इसका ठीक-ठीक अनुमान लगाना कठिन है। क्योंकि ज्यादातर सौदेबाजी परदे के पीछे होती है। साइबर चोरी के विशेषज्ञों के मुताबिक यह बाजार अरबों रुपए का है। 2015 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि यूरोप में एक टीबी डेटा की कीमत 10 मिलियन डॉलर (60 से 70 करोड़ रुपए) तक हो सकती है। जानकारी की कीमत उसकी सत्यता के आधार पर बढ़ती-घटती रहती है।
ली जा रही सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मददसाइबर चोरों से हलकान कंपनियां अब अपने ग्राहकों की जानकारी को सुरक्षित रखने के लिए सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मदद ले रही हैं। साथ ही समय-समय पर डेटा माइनिंग के जरिये भी जानकारी को लीक होने से बचाया जा रहा है। इसके बावजूद चोर नित नए तरीकों से सेंधमारी कर रहे हैं।
बढ़ रहा है डेटा वेयरहाउस का चलनरोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले कंप्यूटर में जानकारी एकत्रित करने से उसके चोरी होने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए अब कंपनियां डेटा वेयरहाउस के विकल्पों को तेजी से अपना रही हैं। यह एक ऐसा स्टोर होता है, जहां आप काम न आने वाली अपनी जरूरी जानकारी को सुरक्षित रख सकते हैं। यह किसी भी डेटा चोर की नजर से बाहर होती है। जरूरत होने पर इस वेयरहाउस से डेटा लिया जा सकता है।
खुले बाजार में भी बिकता है डेटा
अमूमन चोरी का डेटा परदे के पीछे बिकता है, लेकिन इसकी कई बार ऑनलाइन बिक्री भी की जाती है। हाल ही में वेब ब्राउजर प्रोग्राम से हटाए गए चोरी के लाखों अकाउंट्स को ऑनलाइन बिक्री के लिए रखा था। हालांकि संबंधित सोशल साइट ने ऐसी किसी लीक से इनकार किया था। उधर, लीक डेटा से संबंधित एक सर्च इंजन के मुताबिक हर रोज दुनियाभर में डेटा बिक्री के सैकड़ों सौदे होते हैं। इनमें छोटे-मोटे उत्पादों की जानकारी से लेकर ग्राहकों की जानकारियां तक शामिल होती हैं।
कंज्यूमर डेटा की मांग सबसे ज्यादा
दुनियाभर में सबसे ज्यादा मांग कंज्यूमर डेटा की है। यानी उन लोगों की जानकारी जो लगातार खरीदारी करते हैं। इसके लिए डेटा चोर स्टोर्स, फूड चैन और क्रेडिट कार्ड कंपनियों पर नजर रखते हैं। हाल ही के दिनों में इस तरह की डेटा चोरी की कई घटनाएं सामने आई हैं। ज्यादातर साइबर डेटा चोर अमरीका और चीन से संबंधित होते हैं, जिनके निशाने पर भारत और यूरोपीय देश हैं।
डेटा एकत्रित करने की भी हैं कई तरकीबें
कई कंपनियां फोन नंबर, ईमेल आईडी आदि के जरिये डेटा इकट्ठा भी करती हैं। इसके लिए लुभावने विज्ञापन, बंपर ईनाम या भावुक मैसेज के जरिये ग्राहक को फांसा जाता है। इसके तहत कुछ जरूरी जानकारियां ली जाती हैं और काफी डेटा इकट्ठा होने पर उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दाम पर बेच दिया जाता है।