सचिन श्रीवास्तव
अब तक माना जाता था कि गरीबी गांवों की समस्या है और शहरीकरण से इस पर काबू पाया जा सकता है, लेकिन हाल ही में आई रिपोट्र्स ने इस पारंपरिक सोच को सिरे से खारिज किया है। इसी सप्ताह आई ग्लोबल फूड पॉलिसी रिपोर्ट भी बताती है कि आने वाले दिनों में गरीबी पूरी तरह से शहरों की समस्या रह जाएगी। इसकी बड़ी वजह रोजगार के लिए शहरों की ओर हो रहा पलायन है। पलायन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या कम हो रही हैं,
और इसी अनुपात में यह शहरों में बढ़ रही है। शहरों में गरीबी कम होने की दर रोजगार की तलाश में आ रहे समुदाय से काफी कम है, इस कारण समस्या गंभीर होती जा रही है।
17 प्रतिशत शहरी आबादी भारत में झुग्गी-झोंपड़ी में करती है गुजर बसर
6.5 करोड़ है शहरी गरीबों की संख्या देश में
50 प्रतिशत शहरी गरीब बीमारियों से पीडि़त हैं
10 प्रतिशत आय शहरी गरीब की खर्च हो जाती है इलाज पर
गांवों से शहरों की ओर
विकासशील देशों में शहरों की ओर पलायन आम बात है। पूरी दुनिया में रोजगार, बेहतर जीवन और भविष्य की उम्मीदों के लिए गांवों से आकर लोग शहरों में बसते हैं। इस पलायन में गांवों की कुछ मूलभूत समस्याएं भी शहरों में आती हैं, इन्हीं में से एक गरीबी है। इससे गरीबी गांवों से कम हो रही है और शहरों में बढ़ रही है।
गांवों से अधिक भयावह है शहरी गरीबी
रिपोर्ट बताती है कि गांवों में गरीबी का आकार भले ही बढ़ा हो, लेकिन यह शहरों के मुकाबले कम भयावह है। गांवों में सामाजिक सुरक्षा का स्तर बेहतर है, इसलिए गरीबी के बावजूद संकट गहरा नहीं होता है। दूसरी ओर शहरों में सामाजिक सुरक्षा का खोल बेहद कमजोर और कई मामलों में है ही नहीं। इस कारण से शहरों में गरीबी जानलेवा साबित होती है।
अफ्रीका और एशिया की समस्या ज्यादा बड़ी
यूं तो पूरी दुनिया में शहरी आबादी बढ़ रही है, लेकिन ताजा रिपोर्ट के आकलन के मुताबिक कुल शहरी आबादी की बढ़ोतरी में अफ्रीका और एशिया की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत होगी। रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक चीन, भारत और नाइजीरिया में अकेले ही 90 करोड़ शहरी आबादी बढ़ जाएगी। यह आंकड़े तीनों विकासशील देशों में गरीबी और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों को कई गुना बढ़ाते हैं।
खाने पर सबसे ज्यादा खर्च
शहरी गरीबों का सबसे ज्यादा खर्च खाने पर होता है। दिक्कत यह है कि यह मौटे तौर पर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जहां आमदनी का स्रोत निश्चित नहीं होता है। पक्के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की कमी के कारण शहरी गरीब के हालात बदतर होते चले जाते हैं।
78 प्रतिशत शहरी कामकाजी आबादी देश में सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के दायरे से है बाहर
बीमारियों से हैं परेशान
देश का हर पांचवा शहरी गरीब है और वह झुग्गी-झोंपड़ी में रहता है। इस कारण से उसे बीमारियां भी जल्दी घेरती हैं। यही वजह है कि आधी शहरी गरीब आबादी बीमार रहती है और अपनी कुल आय का 10 प्रतिशत हिस्सा इलाज पर खर्च करती है। इसके बावजूद वह बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाता है। हालांकि 66 प्रतिशत शहरी गरीब परिवार अत्याधिक वसायुक्त नाश्ता करते हैं, जिससे उनकी सेहत पर विपरीत असर पड़ता है।
विरोधाभासी हालात हैं शहरों में
फूड पॉलिसी रिपोर्ट कहती है कि भारत में शहरी गरीबी के कारण विरोधाभासी हालात पैदा हो गए हैं। एक तरफ जहां देश में आर्थिक वृद्धि दर खासी अच्छी है, वहीं कुपोषण की समस्या भी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। यह हालात तब हैं, जबकि सरकार की ओर से खाने पर सब्सिडी, मिड डे मील जैसी योजनाओं के साथ रसोई गैस पर सब्सिडी दी जा रही है।
बिना योजना के शहरीकरण
रिपोर्ट में इस बात पर खासा जोर दिया गया है कि भारत में शहरीकरण की कोई व्यापक योजना नहीं है। छोटे शहरों के आसपास के इलाके तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें जरूरी नागरिक सुविधाओं की बेहद कमी है। हालांकि सरकार की नई योजनाओं से यह उम्मीद जगी है कि शहरीकरण व्यवस्थित होगा।
स्मार्ट सिटी योजना को सराहा
रिपोर्ट में भारत सरकार की स्मार्ट सिटी योजना को सराहा गया है और उम्मीद जताई गई है कि इससे बेतरतीब फैलते शहरों पर लगाम लगेगी। साथ ही नियोजित और सर्वांगीण विकास देखने को मिलेगा। रिपोर्ट में नागरिक हितैषी विकास और शहरों की वकालत की गई है।
गांवों से रुके पलायन
रिपोर्ट में आने वाले दिनों में शहरों में बढ़ती समस्याओं के लिए रोजगार की तलाश को सबसे अहम कारण माना गया है। इसके निदान के लिए गांवों से पलायन कम करने और छोटे शहरों में रोजगार उपलब्ध कराने के सुझाव दिए गए हैं। इसे हासिल करने के लिए छोटे शहरों का नियोजित शहरीकरण जैसे उपाय सुझाय गए हैं।
अब तक माना जाता था कि गरीबी गांवों की समस्या है और शहरीकरण से इस पर काबू पाया जा सकता है, लेकिन हाल ही में आई रिपोट्र्स ने इस पारंपरिक सोच को सिरे से खारिज किया है। इसी सप्ताह आई ग्लोबल फूड पॉलिसी रिपोर्ट भी बताती है कि आने वाले दिनों में गरीबी पूरी तरह से शहरों की समस्या रह जाएगी। इसकी बड़ी वजह रोजगार के लिए शहरों की ओर हो रहा पलायन है। पलायन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या कम हो रही हैं,
और इसी अनुपात में यह शहरों में बढ़ रही है। शहरों में गरीबी कम होने की दर रोजगार की तलाश में आ रहे समुदाय से काफी कम है, इस कारण समस्या गंभीर होती जा रही है।
17 प्रतिशत शहरी आबादी भारत में झुग्गी-झोंपड़ी में करती है गुजर बसर
6.5 करोड़ है शहरी गरीबों की संख्या देश में
50 प्रतिशत शहरी गरीब बीमारियों से पीडि़त हैं
10 प्रतिशत आय शहरी गरीब की खर्च हो जाती है इलाज पर
गांवों से शहरों की ओर
विकासशील देशों में शहरों की ओर पलायन आम बात है। पूरी दुनिया में रोजगार, बेहतर जीवन और भविष्य की उम्मीदों के लिए गांवों से आकर लोग शहरों में बसते हैं। इस पलायन में गांवों की कुछ मूलभूत समस्याएं भी शहरों में आती हैं, इन्हीं में से एक गरीबी है। इससे गरीबी गांवों से कम हो रही है और शहरों में बढ़ रही है।
गांवों से अधिक भयावह है शहरी गरीबी
रिपोर्ट बताती है कि गांवों में गरीबी का आकार भले ही बढ़ा हो, लेकिन यह शहरों के मुकाबले कम भयावह है। गांवों में सामाजिक सुरक्षा का स्तर बेहतर है, इसलिए गरीबी के बावजूद संकट गहरा नहीं होता है। दूसरी ओर शहरों में सामाजिक सुरक्षा का खोल बेहद कमजोर और कई मामलों में है ही नहीं। इस कारण से शहरों में गरीबी जानलेवा साबित होती है।
अफ्रीका और एशिया की समस्या ज्यादा बड़ी
यूं तो पूरी दुनिया में शहरी आबादी बढ़ रही है, लेकिन ताजा रिपोर्ट के आकलन के मुताबिक कुल शहरी आबादी की बढ़ोतरी में अफ्रीका और एशिया की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत होगी। रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक चीन, भारत और नाइजीरिया में अकेले ही 90 करोड़ शहरी आबादी बढ़ जाएगी। यह आंकड़े तीनों विकासशील देशों में गरीबी और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों को कई गुना बढ़ाते हैं।
खाने पर सबसे ज्यादा खर्च
शहरी गरीबों का सबसे ज्यादा खर्च खाने पर होता है। दिक्कत यह है कि यह मौटे तौर पर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जहां आमदनी का स्रोत निश्चित नहीं होता है। पक्के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की कमी के कारण शहरी गरीब के हालात बदतर होते चले जाते हैं।
78 प्रतिशत शहरी कामकाजी आबादी देश में सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के दायरे से है बाहर
बीमारियों से हैं परेशान
देश का हर पांचवा शहरी गरीब है और वह झुग्गी-झोंपड़ी में रहता है। इस कारण से उसे बीमारियां भी जल्दी घेरती हैं। यही वजह है कि आधी शहरी गरीब आबादी बीमार रहती है और अपनी कुल आय का 10 प्रतिशत हिस्सा इलाज पर खर्च करती है। इसके बावजूद वह बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाता है। हालांकि 66 प्रतिशत शहरी गरीब परिवार अत्याधिक वसायुक्त नाश्ता करते हैं, जिससे उनकी सेहत पर विपरीत असर पड़ता है।
विरोधाभासी हालात हैं शहरों में
फूड पॉलिसी रिपोर्ट कहती है कि भारत में शहरी गरीबी के कारण विरोधाभासी हालात पैदा हो गए हैं। एक तरफ जहां देश में आर्थिक वृद्धि दर खासी अच्छी है, वहीं कुपोषण की समस्या भी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। यह हालात तब हैं, जबकि सरकार की ओर से खाने पर सब्सिडी, मिड डे मील जैसी योजनाओं के साथ रसोई गैस पर सब्सिडी दी जा रही है।
बिना योजना के शहरीकरण
रिपोर्ट में इस बात पर खासा जोर दिया गया है कि भारत में शहरीकरण की कोई व्यापक योजना नहीं है। छोटे शहरों के आसपास के इलाके तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें जरूरी नागरिक सुविधाओं की बेहद कमी है। हालांकि सरकार की नई योजनाओं से यह उम्मीद जगी है कि शहरीकरण व्यवस्थित होगा।
स्मार्ट सिटी योजना को सराहा
रिपोर्ट में भारत सरकार की स्मार्ट सिटी योजना को सराहा गया है और उम्मीद जताई गई है कि इससे बेतरतीब फैलते शहरों पर लगाम लगेगी। साथ ही नियोजित और सर्वांगीण विकास देखने को मिलेगा। रिपोर्ट में नागरिक हितैषी विकास और शहरों की वकालत की गई है।
गांवों से रुके पलायन
रिपोर्ट में आने वाले दिनों में शहरों में बढ़ती समस्याओं के लिए रोजगार की तलाश को सबसे अहम कारण माना गया है। इसके निदान के लिए गांवों से पलायन कम करने और छोटे शहरों में रोजगार उपलब्ध कराने के सुझाव दिए गए हैं। इसे हासिल करने के लिए छोटे शहरों का नियोजित शहरीकरण जैसे उपाय सुझाय गए हैं।