बढ़ती आबादी और 5 बड़े सवाल

सचिन श्रीवास्तव
बीते एक साल में दुनिया की आबादी में 83 लाख का इजाफा हुआ है। यानी जर्मनी के बराबर का एक और नया देश दुनिया में जुड़ गया है। बीते करीब तीन दशकों से जनसंख्या वृद्धि का मुद्दा वैश्विक चिंता में शुमार रहा है। इसकी वजह यह है कि आबादी से अन्य सारी समस्याएं भी जुड़ी हैं। आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार से परिवहन और प्रदूषण तक हर समस्या का दीर्घकालिक हल आबादी के सटीक अनुमान के बिना किसी काम का नहीं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया की आबादी 21वीं सदी के अंत तक 16.6 अरब से ज्यादा नहीं हो सकती, लेकिन यह 7.3 अरब भी हो सकती है। ऐसे में आबादी से जुड़े कुछ मुश्किल सवालों पर एक नजर....

पहली मुश्किल: कितनी होगी सदी के अंत में आबादी?

संयुक्त राष्ट्र के ज्यादातर अनुमानों की मानें तो सदी के अंत यानी सन 2100 में पूरी दुनिया की आबादी करीब 11.20 अरब होगी। लेकिन यह महज अनुमान हैं, हकीकत इससे कहीं जुदा हो सकती है। हालांकि इसके बावजूद कहीं से भी संभावना
नहीं है कि विश्व की आबादी सदी के अंत में 16.6 अरब से ज्यादा हो। साथ ही यह भी हो सकता है कि यह मौजूदा जनसंख्या से भी कम यानी 7.3 अरब  रह जाए।
2050 तक हर हाल में आबादी बढ़ती रहेगी। इसके बाद हैं कमी के आसार
7.5 अरब लोग रहते हैं फिलहाल पूरी दुनिया में

दूसरी मुश्किल: बढ़ रही है औसत उम्र?

इंसान की आयु सीमा बढ़ गई है और हमारे बच्चों की संख्या पिछली सदी के मुकाबले कम है। नतीजतन औसत उम्र में बढ़ोत्तरी हुई है। 1950 के आसपास दुनिया के कई हिस्सों में लोग अपना 50वां जन्मदिन भी बमुश्किल मना पाते थे। जबकि आज वैश्विक औसत जीवन प्रत्याशा उम्र बढ़कर 72 हो गई है। उम्मीद है कि 2100 में यह बढ़कर 83 साल हो जाएगी। ज्यादा उम्र का मतलब है बुजुर्गों की ज्यादा संख्या और बच्चे पैदा करने वालों की संख्या में कमी। इससे जनसंख्या का पिरामिड उल्टा होना शुरू हो जाएगा।
24 साल थी 1950 में दुनिया की औसत उम्र
30 साल है फिलहाल औसत उम्र विश्व की
42 हो जाएगी 2100 में दुनिया की औसत उम्र

50 गुना ज्यादा बुजुर्ग
5 लाख है फिलहाल 100 साल की उम्र के लोगों की संख्या
2.6 करोड़ लोगों की उम्र होगी 100 साल 2100 में

तीसरी मुश्किल: हम कहां रहेंगे?
2030 तक बड़े शहरों की संख्या 41 हो जाएगी, यानी जिनकी जनसंख्या 1 करोड़ से ज्यादा होगी। अनुमान यह भी है कि 2050 तक दुनिया की दो तिहाई आबादी शहरी इलाकों में रहेगी। उस वक्त शहरों पर भारी दबाव होगा। तब शहरों को घनत्व बहुत ज्यादा होगा। जैसे पूरी इंग्लैंड की आबादी को सिर्फ मुंबई शहर में समा दिया जाए। दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में जनसंख्या कम हो जाएगी। शहरों के आसपास के क्षेत्र भी लगातार आबादी के भारी दबाव में होंगे।
आबादी        अभी        2050 में
ग्रामीण        3.5 अरब         3.4 अरब
शहरी        4.1 अरब        6.3 अरब

चौथी मुश्किल: ऊर्जा और ईंधन की जरूरत?
आज हम जो ईंधन इस्तेमाल करते हैं, उसका 86 प्रतिशत हिस्सा जीवाश्म ईंधन से आता है। रीन्यूएबल एनर्जी की कुल खपत में महज 10 प्रतिशत हिस्सेदारी है। हालांकि यह हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक सौर ऊर्जा खपत ही 2010 से 2015 के बीच करीब साढ़ सात गुना बढ़ चुकी है। यानी भविष्य में रीन्यूएबल एनर्जी का बोलबाला होगा। जिन देशों के पास जमीन ज्यादा है, वे पनबिजली और सोलर पैनल के जरिये बेहतर हालात में होंगे।
664 प्रतिशत बढ़ी है दुनिया में 2010 के मुकाबले ऊर्जा की खपत

फिलहाल ऊर्जा खपत में हिस्सेदारी
33 प्रतिशत    तेल (जीवाश्म ईंधन)
29 प्रतिशत    कोयला (जीवाश्म ईंधन)
24 प्रतिशत    गैस (जीवाश्म ईंधन)
10 प्रतिशत     रीन्यूएबल एनर्जी
04 प्रतिशत    परमाणु ऊर्जा

पांचवीं मुश्किल: नौकरी के हालात?
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक आनी वाली दुनिया में अभी के लगभग आधे से ज्यादा काम रोबोट या कंप्यूटर के जरिये होने लगेंगे। कुछ नौकरियों में यह प्रक्रिया ज्यादा तेजी से होने वाली है। जैसे टेलीमार्केटर्स, अकाउंटेंट और टैक्सी ड्राइवर जैसे कामों को अगले एक से दो दशकों में ही रोबोट या कंप्यूटर काफी हद तक खत्म कर देंगे। हालांकि जिन जॉब्स में रचनात्मकता, मानवीय निपुणता और सहानुभूति की दरकार है, उनकी संख्या बढ़ेगी। यानी इंसान को भविष्य के कामकाजी बाजार के अनुकूल बनना होगा।

सबसे अधिक खतरा
जॉब        खतरा

टेलीमार्केटर्स    99 प्रतिशत
अकाउंटेंट        94 प्रतिशत
टैक्सी ड्राइवर    89 प्रतिशत
बारटेंडर        77 प्रतिशत

सबसे कम खतरा
जॉब        खतरा

फायरफाइटर              17 प्रतिशत
हेयरड्रेसर                    11 प्रतिशत
ग्राफिक डिजाइनर       08 प्रतिशत
वकील                        04 प्रतिशत