मनीष की एक कविता

मनीष दिल्ली में पाये जाते हैं । इनका एक दिमाग, दो हाथ, दो पांव, एक नाक एक ......... और दिल के बारे में पता चलना बाकी हैं वैसे संभवतः किसी को दे चुके हैं । नाटकों की दुनिया में इनका मन रमता हैं और अर्थशास्त्र की शास्त्रीय और लोक दोनों ही समझ रखते हैं । बजाहिर आदमी और मन से कवि ही हैं । अमेरिका में कुछ वक़्त गुज़ारा हैं इस वज़ह से या फिर पढाई के चलते, पता नहीं- आजकल अंग्रेज़ी में ही ज्यादा हाथ चला रहे हैं यूं अन्दर की बात ये है कि सपने हिंदी में ही देखते हैं । फिलहाल आख़िरी बात, मनीष अच्छे बांसुरीवादक भी हैं ।

हद्द हो गई

एक ही पेड पर इक्कीस रंग के गुलाब
खिला चुका हूं जनाब
बागवानी में मेरा नाम यूं ही नहीं है
दुनिया जानती है भरतपुर नर्सरी के पप्पू खान को
आप चाहें तो देख सकते हैं मेरा पुरस्कार
फतेहपुर सीकरी के मेरे घर में
रखा है अभी तक अलमारी में

मेरे चेहरे पर ना जाएं
पैंतालीस पूरे कर चुका हूं
इक्कीस घाट का पानी पीया है मैंने
और आप जितना तो बेटा है मेरा
मेरे फन ने मुझे दुनिया घुमाई है
कोने कोने से बुलाते हैं लोग मुझे
हर कोई चाहता है
इक्कीस फूल खिलें उसके आंगन में

फन की हर जगह पूछ होती है साहब
मेरे भाई अमरुद्दीन 'एक्टर'
अपने फन की बदौलत ही घूमे हैं संसार में
रसूलपुर की रामलीला कंपनी का नाम है उनकी वजह से
गांव गांव से लोग बुलाते हैं उन्हें
वे खेलते हैं राम का पार्ट
और देखने वाले देखते रहते हैं उन्हें आंखें फाडे

लोग जानते हैं उन्हें मुन्ने उस्ताद के नाम से
कोई नहीं जानता उनका असल नाम अमरुद्दीन खान
बदल रखा है उन्होंने अपना नाम
नहीं तो दुनिया क्या कहेगी
रामलीला में राम का पार्ट खेले एक मुसलमान
ये तो हद्द हो गई ।