अरुंधति बंद करो इस तरह लिखना

सचिन श्रीवास्तव

"परमाणु बम मानव निर्मित अब तक की सबसे अधिक लोकतंत्रविरोधी, राष्ट्रविरोधी, मानवविरोधी, पूरी तरह अनिष्टकारी चीज है.
अगर आप धार्मिक हैं तो याद रखिये कि यह बम मानव जाति की ओर से ईश्वर को चुनौती है. उसका मजमून बिल्कुल साफ है: हमारे पास उन सभी चीजों को तबाह करने की क्षमता है, जिसे (तुमने ईश्वर) ने बनाया है.
अगर आप धार्मिक नहीं हैं तो इसे इस नजरिये से देखिये. हमारी यह दुनिया 460 करोड साल पुरानी है. यह सूरज ढलने और शाम होने के दौरान ही खत्म हो सकती है."

अरुंधती
राय
(तीसरी दुनिया की उन चंद लेखकों में से एक, जिनका लिखा बेचैन करता है.)
पोखरण के बाद लिखे गये अरुंधति के लेख का यह आखिरी हिस्सा है. इसकी शुरुआत में दो हुकूमतों की एक दूसरों से की गई धमाकेदार बातचीत के सबसे जोर से बोले गये हिस्से हैं. जिन्हे लिखने में दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र और उसके कंधे पर बैठे पडौसी की टनों स्याही और सैकडों रिम कागज के अलावा दोनों देशों के लेखकों के कई रचनात्मक घंटे बरबाद हो गये.
"रेगिस्तान थर्रा उठा", भारत सरकार ने हमें (अपनी जनता को) बताया. "पूरी पहाडी सफेद हो गई", पाकिस्तानी हुकूमत ने जवाब दिया.
अरुंधति का परमाणु परीक्षण पर लेख कल्पनाशीलता का अंत मुझे निराशा के गर्त में धकेलता है. असल में वह जिन सच्चाइयों को उनकी पूरी खुरदुरी शक्ल में सामने रखती हैं, वे इतनी कडवी हैं कि हम लगातार आंख चुराते है और निहायत ही भोली शक्ल बनाकर या तो घरों के सबसे अंधेरे हिस्से में पहुंच जाते हैं या नजर नीची करके अपने आसपास अनजान बने रहने का खोल चढा लेते हैं. असल में हमें खुशी चाहिए होती है. पढकर भी और देखकर भी. इसलिए हम पढतें हैं सुरेंद्र मोहन पाठक, वेदप्रकाश शर्मा, या अधिक से अधिक छायावादी कायरता का भगोडा श्रंगार रस.
और इसीलिये मैं मना कर रहा हूं. अरुधंति प्जीज इस तरह मत लिखो. हमें जितना जीवन मिला है सुख से जी लेने दो. हमारे हिस्से की चालीस साला दुनिया में सिर्फ इस प्रार्थना के कि - हुकूमतें एक दूसरे के चाकू की चमक से डरती रहें और हम अपना जीवन एक सुरक्षित भय के साथ ही जी लें, क्या है?
अरुंधति मैं इस एक अरब की आबादी वाले देश के 40 करोड निरक्षरों के बीच अपनी लिख पढ सकने की विद्रुपता में लिथडा सिर्फ हंस सकता हूं कि हमारे 60 करोड लोग बुनियादी साफ सफाई की सुविधा से वंचित हैं और इस सच्चाई पर कि 20 करोड लोग साफ पानी नहीं पी पाते. क्या मिल गया तुम्हे यह बताकर कि देश के 60 प्रतिशत लोग आज भी नहीं जानते कि दुनिया के नक्शे में भारत नाम का वह हिंदू संस्कृति से ओतप्रोत देश कहां है, जहां हर सौ कोस पर बोली बदल जाती है. कुछ नहीं मिला तुम्हे पर हमने सुकून खोया है. कि बुंदेलखंड की रामवती के लिए छोटा नागपुर और नकोदर की हरजिंदर के लिए तुमुकूर किसी दूसरे ही देश के हिस्से हैं, जिनके बारे में उन्हे सिर्फ तस्वीरों के जरिये सबसे तेज चैनलों के जांबाज ही दिखा-बता सकते हैं.
हां है भारत सिर्फ एक नारा है. और इसे नारा बने देने रहने में ही भलाई है. "मेरा भारत महान" क्षेत्रीय वेशभूषा में सजे लोगों का मोंटाज ही है. तुम अच्छी तरह जानती हो अरुंधति कि जो लोग भारत को महज एक नारा बने रहने देना चाहते हैं. वे 40 करोड लोगों की आंखों पर अंगूठे की छाप की पट्टी चढाकर दिल्ली की गोलाई पर हाथ फिराते हुए अपने जन्म को सफल कर रहे हैं. ये बहुत ताकतवर हैं. हम पिछले 60 सालों में इनका कुछ भी नहीं बिगाड उखाड पाए हैं. जो आखिरी कोशिश हुई थी उसे तीस से ज्यादा साल बीत चुके हैं और उसका जवाब भी उन बेहद ताकतवर हो चुके लोगों ने एक राष्टीय स्मारक की गुंबद पर चढकर दे दिया है. और हम उनकी ताकत को नजरअंदाज न कर दें इसका उदाहरण उन्होंने पांच साल पहले ही देश के सबसे उन्नत औद्योगिक प्रदेश में उन्माद फैलाकर दे दिया है.
अरुंधति अभी अभी इस महान दुनिया के महानतम देश के सर्वकालिक श्रेष्ठतम राष्ट्रपति ने दो प्रचीन सभ्यताएं नेस्तनाबूद कर दी हैं. और ऐसे में तुम इस पूरे गंठजोड से आदिवासी जमीन की बात करती हो. होगा कभी हक आदिवासियों का इस देश की जमीन पर, लेकिन अब उन्हे विनयशील होना चाहिए. आखिर दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों की खुशी के लिए सबसे कमजोर लोगों को अपने हक ही नहीं अपना जीवन भी त्याग देना चाहिए.
अरुंधति जब तुम जानती ही हो कि भाजपा नाम का प्रेत इंदिरा गांधी और कांग्रेस ने खडा किया है. जहां कांग्रेस की कान्वेंटी भाषा नहीं पहुंची वहां भाजपा की देसज युक्तियों ने आग लगाई है और 60 साल में जता दिया है कि क्यों राजनीति सर्वोपरि है.
हां गांधी ने उस जादूई चिराग की ताकत का सकारात्मक इस्तेमाल किया था, लेकिन गांधी को अपने किए के सिंहावलोकन का समय नहीं मिला और तुम जानती हो उसके बाद ही दिक्कतें शुरू हुई थीं, जो छठे दशक के आखिर से दिखाई भी देने लगीं थीं. इन बातों को सामने मत लाओ. सबके चेहरे की खाल उतर जाएगी और तुम जानती हो वे चाहकर भी माफी नहीं मांग पाएंगे. आखिर घुटने मुडने में दर्द बहुत होता है उम्र के इस पडाव पर. और जब इनका ऑपरेशन हो चुका हो तब तो दर्द की रेखाएं चेहरे पर भी दिखाई देती हैं.