चित्रकूट का सपना, सपने की किरचें


शुरुआत हमेशा से मुश्किल भरा काम रहा है। मेरे लिए। क्रिकेट के जानकार इसे कोई फार्मूला दे सकते हैं। पत्रकारों के पास तो इसके रेडीमेड जवाब होंगे ही। मुझे नहीं मिलता जवाब. शुरुआत को आसान करनs का नुस्खा भी नहीं और कोई रामबाण औषधि भी नहीं है. कई बार शुरुआत में चीजें गलत कर देता हूं. यशवंत जी के शब्दों में कहूं तो अपने 20 नंबर पहले ही काट लेता हूं फिर 80 के लिए जूझता हूं. और कमोबेश 1st डिवीजन पा लेता हूं. मेरा अकादमिक रिकार्ड पुष्टि करता है. बहरकैफ इतना काफी है शुरुआत के लिए. बोझिलपने के लिए मुआफी.
अब चलते हैं चित्रकूट
यहां अभी सुबह हुई है। रूपेश जागकर चाय मंगा चुके हैं और ट्रेन चल रही है. कर्वी पहुंचेगी अभी. अभी आएगा स्टेशन. वहां तय जीप होगी. ग्वालियर से आने वाले आशिष जी, भुवनेश जी, जयंत जी..... के साथ हम तीनों (रमेंद्र भी साथ हैं) होटल रामदरबार पहुंचेंगे. वहीं पहुंचकर हमें पता चलेगा कि भोपाल से आने वाली जंबो टीम दोपहर में पहुंचेगी. और अश्विनी पंकज जी और निराला जी वहां पहले ही मौजूद होंगे. यह सब होगा लेकिन अभी तो ट्रेन भाग रही है- धडगडम- धडगडम-धड- धड- धडगडम- धडगडम- धडगडम-धड- धड- धडगडम- धडगडम- धडगडम-धड- धड- धडगडम- यहां पटरियों के किनारे खेत हैं. लोग दिशा मैदान का जरूरी काम निबटा रहे हैं- पटरियों के किनारे और पगडंडी के बाद खेतों के बीच की जगह में, जो देश के 90 फीसदी किनारों का दृश्य है. वनस्पतियां हैं, जिनमें से 95 फीसदी के मैं नाम नहीं जानता और एक कुल जमा आसमान है, जिसका 100 फीसदी मेरे लिए शून्य है. फिलवक्त.
तो रूपेश ने चाय के साथ जगाया है, मैं मन में कुडता ऊपर से थेंक्यू का स्वर निकालता रात के सपने को सोच रहा हूं, जिसमें कृष्ण कल्पित थे। कहते हुए-
सबने लिक्खा वली दक्कनी
सबने लिक्खे - मृतकों के बयान
किसी ने नहीं लिखा
वहां पर थी शराब पीने पर पाबंदी
शराबियों से वहां
अपराधियों का सा सलूक किया जाता था।
मैंने कहा-
किसी मोहल्ले में नहीं
बैठकी की जगह
किसी कस्बे में नहीं बची चौपाल
किसी हिंदुस्तानी की डायरी में दर्ज नहीं है
बजार की सबसे पुरानी का जिक्र ही नहीं कहीं
कहीं नहीं है
रुक सकने लायक हवा
यह एक सपना था जाहिर है सपने के साथ जो अतार्किकता होती है इसमें भी थी। यानी यह अपनी शक्ल का भरपूर चकत्ता चिकनोटी सपना था। चिन्मय जी की दाडी सा सफेद नहीं न ही मेरे दिल की तरह काला. यह सपना था जो अब सच्चा था. इसे चलना था 8 अक्टूबर तक. दिल्ली के शोर का विस्फोट ही इसे तोड सकता था. मैंने इसी सपने के साथ ठंडी होने से पहले चाय सुडक ली. सपना तो सपना था. कोई दीक्षित जी की क्लास नहीं कि मेरा नंबर सबसे बाद में आए और बीजेएच के बाकी सुघड चेहरे आगे आ जाएं. कब वक्त 11 पर पहुंच गया पता ही नहीं चला. अब मैं अश्विनी के साथ गोल्ड फ्लैक के कस ले रहा था. रूपेश ने रमेंद्र और निराला के लिए पान का आर्डर देकर पांच चाय के लिए कह दिया था. चित्रकूट विश्वविद्यालय के बाहर की ओर सतना रोड पर हम इंतजार में वक्त काट रहे थे- बातों से. जिनके सहारे हमने विकास का अब तक का अरण्य पार किया था. जब काम से जी चुराते हुए अच्छे वर्कर बन कर हमने 25 गुणा 4 के विज्ञापन के लिए जगह छोडकर तीन पैकेज के साथ टाइट ले आउट बना कर खबरें भरवा दी थीं. धोनी को मिले पिछले एक साल के चैकों का टैक्स प्रतिशत था. शाहरुख की नई फिल्मों के कारोबार और अति आदर-णीय (कृपया इसे दयनीय न पढे) वाजपेयी "जी" के गुणगान का पूरा पैकेज था और कर्नाटक में सत्ता की बाजीगरी का तीन कॉलम 17 की हाइट में टंगा था. नंदीग्राम भी अपनी जगह पा चुका था. यानी एक भरा पूरा इंडिया था, जिसमें छतरपुर के बिसनू की पिछले साल मरी गाय का कोई जिक्र नहीं होना था सो नहीं हुआ. पूरन की मंझली बेटी के ब्याह में लिए कर्ज का ब्याज उसकी जमीन का तीन गुना हो गया था, जिसके कारणा वह पागलों की सी हरकतें करता था. इसे बॉटम नहीं बनाया जा सकता था. पहला कारणा रीडैबिलिटी है. दूसरे विज्ञापन हैं बॉटम की जगह कहा? फिर इससे तो अच्छा है कोई गिनीज बुक का पुराना रिकार्ड निकालकर उसका एंकर तैयार किया जाए. हां, अगर हैदरबाद विस्फोट में मारे गए लोगों के परिवार का या फिर छत्तीसगढ के नक्सली हमले के पीडित की कोई ह्यूमन एंगल स्टोरी हो तो वो ले सकते हैं- पर ध्यान रखना तीन चार मोटी मोटी बातें आ जाएं कि कैसे उग्रवाद ने जीवन नारकीय बना रखा है वहां. वहां विकास की कोई गंगा नहीं बह पा रही. विदेशी कंपनियों ने अपने पांव खींच लिए हैं. सबसे जरूरी वह बाक्स लेना जिसमें अब तक हुए नक्सली हमलों में जान और माल की क्षति का "तथ्यात्मक" न्यूमेरिक टेबिल है. यस सर. पेज पास. लंबी तानो सो जाओ.
(दूसरी किस्त जल्द)
पुनश्च:
मैंने चित्रकूट यात्रा का शुरुआती खाका ठीक नहीं खींचा है। यह मैं जानता हूं। या वो जानते होंगे जो इस अनुभव में हमारे सहभागी थे. मैंने कोशिश की थी. इसलिए कि यात्रा का स्केच तैयार करना- किसी जगह का पूरा पूरा चित्र खींच देना तकरीबन नामुमकिन है. कई जगह रंग छूट जाते हैं. कई जगह लाल ज्याद हो जाता है या फिर हरा बिखर जाता है. या फिर केसरिया अपनी जगह से ज्यादा टांगें पसार लेता है. और सभी को गडबडा देता है. मैंने महज इतना किया है कि वहां पहुंचे लोगों को उकसाऊं कि वे अपनी यादों की गठरी खोलें, जिस वजह से चित्रकूट गए थे उसे निकालें. उसमें झांकें जरूरत पडे तो फिर वहीं पहूंचे. कुछ निकालें मुट्ठी बंद कर लाएं और बाहर निकलकर यूं खोल दें कि- यह रहा कमाल का दिखनौटा.
कोशिशें हर बार असफल ही रहती हैं क्या?
सचिन श्रीवास्तव, लुधियाना
09780418417