जवां है बड़ी झील

मिशन भोपाल- 3
बडी झील अंतिम किस्त
कमला पार्क से बड़ी झील की ओर जाओ, दस बार जाओ। हर बार बड़ी झील हमारी शक्ल भूल जाती है। तो क्या बड़ी झील बूढ़ी हो गई है और इसकी आंखों में मोतियाबिंद उतर आया है? बड़ी झील से पूछो तो वह उम्र नहीं बताती। इस गफलत में न रहिए कि सबेरे-सबेरे चलने वाली हवा इसके बदन पर झुर्रियां दे जाती है, इसलिए यह उम्रदराज हो गई— लहरों की शक्ल में। उम्रदराज तो अपनी बड़ी आपा भी हैं और वे कैसे गा-गाकर बताती हैं कि `मेरी उमर हो गई बचपन पार, लाड़ो ब्याह दो छोड़ घर चार...।´

बड़ी झील ने खुद को राजा भोज के भोजकुंड से जोड़कर अपनी उम्र में हजार साल यूं ही कम कर लिए। असल में राजा भोज का जो भोज कुंड है वह तो भीमबैठका से लेकर औबेदुल्लागंज और बरखेड़ी से लेकर मंडीदीप तक की पहाडि़यों तक फैला हुआ है। आप जानते ही हैं कि इन कस्बों के बीच की दूरी उतनी ही है जो राजा भोज के कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए बनवाए गए कुंड की थी- यानी 16.8 किलोमीटर। असल में राजा भोज को यह बताया गया था कि उन्हें जो कुष्ठ रोग हुआ था, वह 12 नदियों और 99 नालों के पानी से बनने वाले जलकुंड में नहाने के बाद ठीक होना था।
यह आपकी उस संन्यासी की कहानी से मेल नहीं खाता जिसमें 365 नाले हैं। लेकिन है सच यही कि राजा भोज का दायां हाथ सेनापति कल्याण सिंह 12 नदियों और 99 नालों का पानी जुटाने की टोह में था। यह वही कल्याण सिंह है, जिसे आप कालिया कहते हैं और जिसकी बनाई एक नहर को एक अरसे तक कालिया की सोत कहा जाता रहा। तो मसला कुछ यूं है मियां कि कल्याण सिंह ने भीमबैठका से लेकर औबेदुल्लागंज के बीच 11 नदियां तो खोज लीं, लेकिन जिंसी चौराहे पर, जो तब का औबेदुल्लागंज नाका हुआ करता था, बैठा वह सोच रहा था कि राजा की बीमारी ठीक कैसे हो। तब एक दरवेश ने उसे बताया कि अगर बड़ी झील से एक नाला बनाकर भोज कुंड में मिला दिया जाए तो भोज कुंड पूरा यानी 12 नदियों का हो जाएगा, और 99 नाले लाना तो कोई बड़ा काम है नहीं। सो बनी कलिया की सोत, जिसे भदभदा से होते हुए भोज कुंड से मिलाया गया। ये तो हुआ इतिहास। अब सुनिए असल बात। बड़ी झील का पानी था पुराना। यह आज से हजार साल पहले की बात है और तब बड़ी झील का पानी एक हजार साल का हुआ करता था। मगरमच्छ से लेकर तमाम तरह के घडि़याल यहां हुआ करते थे और वे इस सोच से बेजार थे कि उनका एक हिस्सा, यानी पानी, किसी राजा की बीमारी ठीक करने के लिए किसी दड़बेनुमा कुंड में मिलाया जा रहा है। उसी वक्त पानी ने जो बगावत की, वो है अपनी छोटी झील। बगावत का कुछ सिरा मोतिया तालाब से लेकर नूरमहल तक बिखरा और यह नाइंसाफी इतिहास में दर्ज हो गई। जिसे न कभी लिखा जा सका और न कभी महसूस किया जा सका।
हालांकि बाद में कुंड का पानी बांध तोड़कर बाहर निकला। तब नवाब साहब के कोई विदेशी दोस्त भोजकुंड में नाव चला रहे थे। लहरों ने अपना गुस्सा दिखाया और वह विदेशी मेहमान नाव समेत कुंड की चक्करदार गहराइयों में समा गया। नवाब साहब ने घोषणा की कि किसी भी तरह उनके दोस्त की लाश निकाली जाए। तब हजार फीट और तीन सौ फीट के बांधों को तोड़ा गया। इलाके में बिखरे अलंगे अपनी कहानी आप हैं। बांध टूटा तो पानी का एक रेला भी निकला, जिसने अपनी भीतर छुपाई हुई वनस्पति को भीमबैठका से लेकर औबेदुल्लागंज तक बिखेर दिया। सैकड़ों साल पानी में भीगती रही यह वनस्पति अब हकीमों के काम आती है।
बात यकीनन सच्ची है। जिन्हें शक-शुबहा रहा उन्होंने कई किस्म से ताकीद भी की। आपको यकीन न हो तो झील के बोट क्लब वाले हिस्से से तैरना शुरू कीजिए। ’यादा नहीं, बस गौहर महल के सामने जो परी घाट है न, जहां से बाबे सिकंदरी दिखाई देता है, वहां तक आइए। अगर आप अच्छे तैराक हैं, तो आपको कुल जमा 45 मिनट लगेंगे- अगस्त की हवाओं में। उस पर भी यह जून का झुलसाऊ गर्मी का दौर हुआ तो आप 35 मिनट में परी घाट पर होंगे। यहां थोड़ी-सी तकलीफ जरूर होगी। बस, आपको 1819 के उस दौर से गुजरना होगा जब कुदसिया बेगम ने गौहर महल को बनवाने का जिम्मा लिया था।
बाबे सिकंदरी, जो 1840 से लगातार बड़ी झील की तमतमाई लहरों को किनारों से टकराता देख रहा है, उससे भी पूछ सकते हैं। पहली बार बड़ी झील ने अपनी तकलीफ बाबे सिकंदरी से ही जाहिर की थी। इस जनाना दरवाजे ने अपने पड़ोसी शौकत महल और जरा-सी दूरी पर खड़े बुतनुमा सदर को भी इस हकीकत से अनजान रखा है। हकीकत यह कि बड़ी झील का घटता पानी उसकी खुशी है, क्योंकि बड़ी झील जब-जब अपने राजाई रोग को ठीक करने की कीमियागीरी पर रोई है, उसका पानी बढ़ता गया है- यह उसका खारा पानी था जो आंसुओं से बना था। आधे भोपाल की प्यास में पानी का लौंदा बनकर उतरी बड़ी झील यकीनन सूखे के दिनों में सबसे ज्यादा खुश होती है- उन दिनों इसकी आंखें सूखी होती हैं। आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन है सौ फीसदी सच कि अपने भोजकुंडीय इस्तेमाल पर आंसू बहाती बड़ी झील इन दिनों भरी-भरी सी है- जरा चखिए इसका पानी। कही इसमें आंसुओं का नमक तो नहीं।