मिशन भोपाल- 2
बडी झील पार्ट एकआज छुट्टी का दिन है, तो बड़ी झील चलते हैं। बाहर से कोई दोस्त आया है उसे बड़ी झील घुमा देते हैं। प्रेमिका के साथ वक्त गुजारना है तो बड़ी झील का एकांत, और दोस्तों से गप्पबाजी करनी हो तो सबसे मुफीद जगह बड़ी झील। तो कभी उदासी को पानी में बहाने और कभी मस्ती को बड़ाने के लिए बड़ी झील। कितनी-कितनी तरह से अपने पास बुलाती है यह झील। हर रोज अलग-अलग बहाने ओढ़कर बड़ी झील के किनारों पर टहलते भोपाली हों या किसी और शहर से आएखूबसूरती के मुरीद, सभी के लिए यह 31 वर्गमील में फैली सबसे बड़ी मानवनिमिüत झील एक बेहतरीन दोस्त साबित होती है। बीते एक हजार साल में जितने भी लोग बड़ी झील के पास पहुंचे हैं सबके कानों में इसने अपनी कुछ सच्चाइयां बहा दी हैं। असल में भोपाल की बतोलेबाजी में इस झील का भी बड़ा हिस्सा रहा है। भोपाली गप्पबाजी में झील की रंगत कई बार झलकती है। वैसे भी परमार वंश के राजा भोज का चर्म रोग तो इसमें एक बार नहाकर ही ठीक हो गया था। आपको याद ही होगा कि जब राजा भोज को चर्मरोग हुआ था तो कैसे सारे कामकाज ठप्प पड़ गए थे और पूरी रियासत का एकमात्र काम नए-नए वैद्यों को राजा की तीमारदारी में लगाना रह गया गया था। लेकिन हर कहानी की तरह हमारी कहानी के राजा की बीमार भी वैद्यों के सहारे न तो ठीक होनी थी और न हुई। हर बीमारी का इलाज चूंकि महात्माओं को ही पता होता है। सो राजा भोज को भी एक महात्मा जी ने इलाज बताया। इलाज था, राजा किसी ऐसी जगह नहाए जहां 365 नाले आकर मिलते हों, तो उनका रोग ठीक हो जाएगा। अब पता नहीं महात्मा जी ने जान छुड़ाने के लिए यह उपाय बताया था, या सचमुच उन्होंने साल के दिनों से मिलाकर ये आंकड़ा बताया। जो भी हो राजा को रोग से छुटकारा दिलाना ही था, सो गौंड कमांडर कालिया ने बेतवा नदी के पास झील का निर्माण शुरू कराया, इसमें आसपास की सभी बहती, सूखी और गुमनाम नदियों को मिलाया गया। कई नालों का मुंह झील की ओर मोड़ा गया और 365 की संख्या पूरी होते-होते यह रंग बदलने वाली झील तैयार हो गई। आप जानते ही हैं कि झील की रंगत कभी नीली होती है, तो कभी हरी हो जाती है और कभी यह भूरे रंग का मुलम्मा ओढ़ लेती है। 31 वर्ग किलोमीटर में फैली इस झील के बीच में एक टापू पर बाजार बसाया गया था, जो अब मंडीदीप हो गया है। बाद में इसके आसपास आबादी बसती गई, तो झील ने खुद को समेटना शुरू कर दिया, ताकि लोगों को रहने की जगह मिलती जाए।