जनसत्ता : तीन बराबर हिस्सों में बंटे विवादित भूमिहिंदुस्तान : मूर्तियां नहीं हटेंगी, जमीन बंटेगीहिंदुस्तान टाइम्स : डिस्प्यूटेड साइट इज राम बर्थ प्लेस : हाई कोर्टनवभारत टाइम्स : किसी एक की नहीं अयोध्यानई दुनिया : वहीं रहेंगे राम ललापंजाब केसरी : जहां रामलला विराजमान वही राम स्थानराष्ट्रीय सहारा : तीन हिस्सों में बंटेगी विवादित भूमिटाइम्स ऑफ इंडिया : टू पार्ट्स टू हिंदूज, वन पार्ट टू मुस्लिम्सदैनिक जागरण : रामलला रहेंगे विराजमानअमर उजाला : रामलला विराजमान रहेंगेयह वे सुर्खियां हैं जो आज अखबारों के पहले पन्ने पर आठ कॉलम के बैनर में छपी हैं। सारे पेज पर एक ही खबर को अलग अलग एंगल से लिए गया है। नेताओं की राय, जनता की धडकन और कानून के जानकारों की टिप्पणियों और आने वाले समय में क्या हो सकता है के कयासों से भरे पडे अखबारों ने अदालत के फैसले पर टिप्पणी करने से गुरेज किया है। न्यायपालिका की पवित्रता यूं भी किसी से छिपी नहीं है। दूसरे फैसला इतना लंबा है कि बहानेबाजी के साथा ऊपर से छूकर निकल लिया गया है। उधर बीते दो दिनों से टीवी चैनलों में उत्सवी माहौल था। है। कल सुबह से ही टीवी चैनल अपने विशेष इंतिजामात के साथ उन कभी न भूलने वाले पलों को कैमरे में कैद करने के लिए उतावले थे, जिनसे इस देश का भविष्य तय होना था। इसे सबसे बड़े, ऐतिहासिक, न भूतो न भविष्यति फैसले की सबसे उम्दा, सबसे रोचक और चौतरफा रिपोर्टिंग की पूरी व्यवस्था थी। चैनलों से लेकर अखबारों तक में शांति व्यवस्था और न्यायालय की मानहानि का डर इतना गहरा था कि ज्यादातर मीडिया चैनल अपनी और से कुछ भी कहने से बचते रहे। जबकि अन्य मौकों पर तथ्यों और विचारों का घालमेल खूब चलता है। अखबारों ने तो फैसले के तर्जुमा को ही तरजीह दी और बाकी काम बयानों व हालात की व्याख्या से चला लिया।
साढ़े चार बजे जैसे ही फैसला आया हर चैनल पर यही बे्रकिंग न्यूज थी। पहले खबर चली 'सुन्नी वक्फ बोर्ड का केस खारिज किया गया।' बाद में बैलेंस करते हुए जो इबारतें लिखी गई वे थीं, 'तीन हिस्सों में बंटेगा विवादित परिसर', 'वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बांटा गया परिसर', 'सुप्रीम कोर्ट जाएगा वक्फ बोर्ड' आदि आदि। खबर फैल चुकी थी कि विवादित मस्जिद का इलाका और राम चबूतरा हिंदू पक्षकारों को दिया गया था। बाद में सामने आया कि यह फैसला तीन जजों की पीठ ने बहुमत के आधार पर दिया है। यानी हर जज ने अपना फैसला रखा और जिस बिंदू पर दो की राय समान थी, उसे फैसला माना गया। प्रभावित पक्ष, यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड के सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के पहले कयास लगाये गये, फिर जफरयाब जिलानी साहब ने यह पुख्ता कर दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। चूंकि फैसला करीब 10 हजार पन्नों का है, सो उन्होंने एक माह बाद जाने का फैसला किया है। यूं भी सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए तीन माह का समय है।
जी न्यूज पर पुण्य प्रसून वाजपेयी, आज तक पर सुमित अवस्थी और प्रभु चावला, एनडीटीवी पर पंकज पचौरी और फील्ड में रवीश, मनोरंजन व कमाल खान, स्टार पर सिद्धार्थ और दीपक जो कह रहे थे उससे कुछ बातें छनकर आती रहीं। वकीलों ने कहा कि फैसला पढऩे में चूंकि वक्त लगेगा इसलिए अगले तीन महीने तक यथास्थिति रहेगी। रघुवर दास के वकील रविशंकर प्रसाद कोर्ट से निकलते चीखे कि 'जहां रामलला विराजमान हैं वह हिंदूओं के लिए देवतुल्य है ऐसा कोर्ट ने कहा है।'
खबरें कह रही थीं कि तीन हिस्से होंगे- रामलला जहां विराजमान हैं वो हिंदुओं को, बाहर का परिसर- मुस्लिम गुटों को और तीसरा इलाका निर्मोही अखाड़ा को। जस्टिस धर्मवीर शर्मा और एस अग्रवाल की राय थी कि जहां रामलला विराजमान थे, वो हिंदुओं को मिलना चाहिए। धर्मवीर शर्मा की राय में पूरा परिसर हिंदुओं को दिया जाना चाहिए। जस्टिस अग्रवाल की राय थी कि रामलला जहां विराजमान थे वो हिंदुओं को दिया जाए, जहां सीता की रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़ा और जहां मुस्लिम नमाज पढ़ते थे वो मुस्लिमों को दिया जाए। जस्टिस खान की राय में दोनों पक्षों को एक तिहाई एक तिहाई जमीन मिले और इसमें ध्यान रखा जाए कि जहां रामलला हैं वो हिंदुओं को मिले। दो जजों की राय में मुस्लिमों को एक तिहाई जमीन मिलनी चाहिए। कोर्ट से बाहर आते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा है कि वो आंशिक रूप से असंतुष्ट हैं। हिंदू महासभा के वकील एचएस जैन ने भी कहा कि 'हम सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे क्योंकि हमें तीन भागों में जमीन बांटना सही नहीं लगा है।'
कोर्ट ने जिन मुख्य बिंदुओं पर फैसला दिया है वे अब सामने आ चुके हैं कि
- परिसर में यथास्थिति तीन महीने तक बरकरार रखी जाए।
- बाबर ने ढांचा बनवाया, लेकिन ये इस्लाम के उसूलों के खिलाफ था, इसलिए इसे मस्जिद नहीं माना जा सकता।
- विवादित ढांचे के नीचे एक पुराना ढांचा है, जिसे तोड़कर नया ढांचा या मस्जिद बनाई गई।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार ढांचे के नीचे एक बड़ा हिंदू धार्मिक ढांचा था।
- राम लला की मूर्तियां ढांचे में 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात रखी गईं थीं।
- हिंदू धर्म के लोग, जहां रामलला है, उसे ही राम की जन्मभूमि मानते हैं।
- सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज की गई।
इसके बाद लोगों के बयान शुरू हो गये। हाशिम अंसारी ने कहा कि 'हम फैसले का स्वागत करते हैं। आगे लंबी लड़ाई है।' संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि 'ये किसी की जीत या हार नहीं है। जो कटुता उत्पन्न हुई है उसे भूल कर राम मंदिर के निर्माण में एकत्र होकर सभी को जुटना चाहिए। किसी के दिल को ठेस पहुंचाने वाली बात नहीं की जाए। विजय पराजय की बात नहीं है।' उन्होंने मुसलमानों से भी पिछली बाते भूलने का आह्वान किया। बीजेपी ने इसे सकारात्मक कदम बताया। कांग्रेस प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि 'हर व्यक्ति कोर्ट के फैसले को पूरे मन से स्वीकार करे और इसकी अनुचित व्याख्या न हो।' कानून मंत्री वीरप्पा माइली ने कहा कि 'पहले हम फैसले की पूरी कॉपी पढ़ेंगे फिर अपनी राय दे सकेंगे। क्योंकि चैनलों पर अलग अलग खबरें हैं।' माकपा ने कहा कि इस मसले को सुलझाने के लिए लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट का प्रावधान है और इसका सहारा लिया जाना चाहिए। यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने लोगों से शांति बनाए रखने और अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील की। मायावती ने अपन पल्ला झाड़ते हुए कहा कि 'विवादित जमीन केंद्र के कब्जे में है इसलिए फैसले के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी भी केंद्र की।'
बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के घर पर जो प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई उसमें उन्होंने कहा कि कोर कमिटी की बैठक में अयोध्या फैसले पर चर्चा हुई। यह राम जन्मभूमि के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आज के निर्णय से राष्ट्रीय एकता का नया अध्याय शुरू होगा। इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देशवासियों से शांति की अपील की। वहीं बाल ठाकरे ने उम्मीद जताई कि फैसले के बाद दशकों पुराने विवाद का अंत होगा।
विहिप के अध्यक्ष गिरिराज किशोर ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि 'अब मुसलमानों को गुड-विल का परिचय देते हुए मशुरा और काशी को भी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए।' मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कासिम रसूल इलियास ने कहा कि 'ये फैसला बैलेंसिंग एक्ट है। मस्जिद का बंटवारा नहीं हो सकता। मुस्लिम भाई सब्र करें। हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।' नरेंद्र मोदी ने कहा कि 'जहां तक अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद का जजमेंट आया है, इस बात की ख़ुशी है कि इस जजमेंट से भव्य राम मंदिर बनाने का रास्ता प्रशस्त हुआ है।' प्रवीण तोगडिय़ा ने इस फैसले का देश के सौ करोड़ हिंदुओं की श्रद्धा का सम्मान बताते हुए स्वागत किया।
एक राजनीतिक फैसला : प्रशांत भूषण
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण इसे अदालती नहीं, राजनीतिक फैसला मानते हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में ये फैसला शायद ही ठहर पाएगा। सामाजिक सरोकारों से जुड़े मामलों को अदालत के जरिए उठाने वाले श्री भूषण इस फैसले से नाखुश हैं। इस मामले में अदालत के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौती देते हुए वह कहते हैं कि आस्था से जुड़े काल्पनिक मामलों पर कोर्ट सुनवाई नहीं कर सकती। बीबीसी पर उन्होंने कहा कि यह आस्था और पौराणिक महत्व से जुड़ा मामला है। आस्था से किसी के कानूनी हक तय नहीं होते, इस आधार पर अदालत का ऐसे मामलों को सुनने का क्षेत्राधिकार ही नहीं है। टीवी पर उन्होंने कहा कि राम एक मिथिकीय पात्र हैं और उनके जन्म स्थान के बारे कोई भी कैसे फैसला सुना सकता है। कानून ऐसा कोई सिद्धांत नहीं मानता, जो आस्था के आधार पर किसी जगह को किसी समुदाय विशेष को देने का अधिकार देता हो। इसलिए अदालत को यह मामला स्वीकार ही नहीं करना था, क्योंकि इस मामले में विवाद का मूल विषय ही पौराणिक और काल्पनिक है कि भगवान राम का जन्म विवादित स्थल पर हुआ था या नहीं। या 500 साल पहले उस जगह पर मंदिर तोड़, कर मस्जिद बनाई गई या नहीं। ऐसे मामलों पर अदालत कैसे फैसला कर सकती है।
उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल को लेकर जो फैसला दिया है वह राजनीतिक है, कानूनी नहीं। सुप्रीम कोर्ट में यदि यह फैसला जाता है, तो खासी संभावना है कि यह फैसला उलट जाएगा। इस फैसले का कोई आधार नहीं है।
उन्होंने कहा कि विवादित जमीन के मालिकना या कानूनी हक किसके पास हैं वह इस बात से तय नहीं किया जा सकता कि रामचंद्र जी का जन्म कहाँ हुआ था? जन्म को लेकर लोगों में आस्था है या नहीं? चार सौ या पाँच सौ साल पहले वहां मंदिर था या नहीं? उन्होंने कहा कि आज इन बातों से मालिकाना हक का सवाल तय नहीं किया जा सकता। चार सौ, पाँच सौ साल पहले मंदिर था या नहीं उस बात से मालिकाना हक नहीं तय किया जा सकता। कानून ये कहता है कि 30 साल से यदि किसी और का उस जमीन पर कब्जा है और 30 साल तक आप उस पर अपना हक नहीं जता पाए तो आपका हक उस पर से खत्म हो जाता है। ये सब सवाल कानून के नजरिये से अप्रासंगिक हैं। अदालत में ये सारे सवाल उठने ही नहीं चाहिए थे। किसी की भावना के नजरिये से यह एक सवाल भले हो, लेकिन अदालत की नजर में यह सवाल नहीं है। रामचंद्र जी का जन्म वहाँ हुआ था या नहीं इसका जमीन के मालिकाना हक से क्या लेना देना? यदि राजनीतिक फैसला होता तो वे भले ही इस बात का ध्यान रखते, लेकिन जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला आधारहीन है।
वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा फैसले को
बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि 'हम विवादित भूमि को तीन हिस्सों में विभाजित किए जाने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलफ अपील करेंगे।' उनका कहना है कि यह फैसला वक्फ बोर्ड को मंजूर नहीं है। जफरयाब जिलानी का कहना है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड इस जमीन को नहीं छोडऩे वाला है। हालांकि उन्होंने कहा है कि बोर्ड इस मामले को सुलझाने के लिए किसी भी प्रकार के समझौते के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि 'यदि कोई प्रस्ताव आता है, तो बातचीत हो सकती है। अगले 90 दिनों तक अयोध्या में यथास्थिति बरकार रहेगी और इस बीच बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।'
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से चर्चा के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी। वे व्यक्तिगत रूप से तीन न्यायाधीशों के फैसले से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 'बाबरी मस्जिद मामले में जो फैसला सुनाया गया है वह एक हद तक निराश करने वाला है और यह कानून के सिद्धांतों और मुसलमानों की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों के खिलाफ है।' उनका कहना था कि चूंकि उन्होंने पूरा निर्णय नहीं पढ़ा है इसलिए वे इस समय इससे अधिक कुछ नहीं कह सकते।