नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव की गर्माहट के बीच गुरुवार को बराक ओबामा ने डेमोक्रेटिक पार्टी के सम्मेलन में अपना बहुचर्चित भाषण दिया। वे लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए नामित होने के लिए शुक्रिया अदा करते हुए बेहद जोश में थे, और यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे कि अमेरिका के लिए वे एकमात्र पसंद और जरूरत हैं। इसके लिए मिट रोमनी पर निशाना साधते हुए उन्होंने रिपब्लिकन विदेश नीति पर भी खासे तीखे सवाल उठाए। ओबामा का यह भाषण साफ करता है कि अपनी चमत्कारिक जीत से चार साल पहले ‘हां मैं कर सकता हूं’, कहने वाले ओबामा अब ‘हां, आप चुन सकते’ के अंदाज में सामने हैं। अपने भाषण में ओबामा का पूरा जोर लुभावनी शैली पर रहा, जिसमें वे महारत भी रखते हैं।
दूसरी पारी के लिए जरूरी जनमत मांगते हुए ओबामा ने रोजगार के नए अवसर पैदा करने, कर्ज में कटौती और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार देने जैसे लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इस दौरान ओबामा लगातार खुद को सामने बैठे समूह का सच्चा प्रतिनिधि बताते रहे। ओबामा जानते हैं कि उनकी आने वाली राह आसान नहीं है, और हालिया सर्वेक्षणों में रोमनी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। जाहिर है देश के आर्थिक हालात बदले हुए हैं, और वैश्विक परिस्थितियां भी 180 के कोण पर घूम चुकी हैं। ईराक और अफगानिस्तान युद्ध में अपनी आर्थिक ताकत को कमजोर कर चुके अमेरिका को नए अवसर की तलाश के साथ कटौती की दोधारी तलवार पर चलना है। इसीलिए ओबामा ने आने वाले चार सालों को बेहद मुश्किल वक्त बताते हुए साफ कर दिया है कि सब कुछ आसान नहीं है, लेकिन साथ ही वे यह कहना भी नहीं भूलते कि चयन आपको करना है। यानी रिपब्लिकन ऊहापोह और डेमोक्रेटिक उत्साह के बीच का चयन। संभवत: चार साल पहले वाले ओबामा इन परिस्थितियों में ‘मुश्किलें हैं, लेकिन हम हल कर सकते हैं’, जैसा जुमला उछालते, लेकिन उन्होंने ज्यादा यथार्थवादी रास्ता अपनाते हुए कहा कि, ‘जब आपके हाथ में मतपत्र होगा, तब आपके पास एक स्पष्ट पसंद होगी’।
आने वाले कुछ वर्षों में बड़े फैसलों की रूपरेखा बताने वाले ओबामा ने रोजगार और अर्थव्यवस्था, कर, वित्तीय घाटे, ऊर्जा, शिक्षा, युद्ध, शांति आदि उन तमाम मसलों पर अपनी बात कही जो अमेरिकी जीवन के साथ-साथ पूरे विश्व पर असर डालने वाली है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को तेज करने की बात कहते हुए उन्होंने रक्षा बजट में कटौती और इस पैसे से निर्माण कार्य में तेजी की ओर इशारा किया है। मिट रोमनी इसके खिलाफ हैं। रिपब्लिकन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी करार देते हैं। वैश्विक समुदाय की दिलचस्पी इसी अमेरिकी हित में है। ओबामा के खाते में ईराक और अफगानिस्तान से सेनाओं की वापसी है, और मिट रोमनी को वे शीत युद्ध की सोच वाला बता चुके हैं। इराक युद्ध खत्म करने की वाहवाही बटोरने के बाद ओबामा ने पूर्व अल कायदा सुप्रीमो ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अफगान युद्ध 2014 तक खत्म करने का वायदा किया है। जाहिर है युद्ध ओबामा के एजेंडे में नहीं है। यह बात महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि हथियार लॉबी से डेमोक्रेटिक नेताओं के संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। ओबामा ने मध्यवर्गीय करों में कटौती की बात तो कही लेकिन उच्च आय वर्ग की कटौती से साफ इनकार किया। जाहिर है ओबामा की नजर ज्यादा बड़े मध्यवर्गीय वोटों पर है। साथ ही उन्होंने बुजुर्गों को लुभाने का पांसा भी फेंका है।
ओबामा का यह भाषण देखने के बाद अमेरिकी जनता के वोट देने वाले विकल्पों पर क्या फर्क पड़ेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन आने वाले समय में अमेरिका की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। चुनावी सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि ओबामा और रोमनी के बीच फिलहाल कांटे की टक्कर है। रक्षा बजट में कटौती पर दोनों धुर विरोधी हैं, इसके अलावा आऊटसोर्सिंग, ऊर्जा और रोजगार के मसलों पर भी दोनों की राय जुदा है। अमेरिका के अतिरिक्त संवेदनशील मध्यवर्ग के लिए यह मामले आर्थिक हितों के साथ भावुकता की चासनी में भी लिपटे हुए हैं। जाहिर है नवंबर तक इन मसलों पर बहसों का लंबा दौर चलेगा और तभी तय हो सकेगा कि पलड़ा किस तरफ झुक रहा है।
आऊटसोर्सिंग का मामला इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की दिशा तय करने का माद्दा रखता है और चीन समेत पूरे दक्षिण एशिया के हित इससे जुड़े हैं। अभी तक ओबामा इसका विरोध करते रहे हैं, लेकिन हाल ही में क्लिंटन प्रशासन में चेयर आॅफ द काउंसिल आॅफ इकोनॉमिक एडवाइजरी रहीं और वर्तमान ओबामा समूह में आर्थिक नीति सलाहकार लॉरा टायसन ने साफ किया है कि, ‘यह जरूरी है कि हम यह मान लें कि इनसोर्सिंग, आऊटसोर्सिंग, सप्लाई चेन कॉम्प्लेक्सिटी, सप्लाई चेन डिसएग्रीगेशन यहां बने रहेंगे।’ इसे ओबामा और क्लिंटन की सार्वजनिक मंच पर हुई मुलाकात से जोड़कर भी देखा जा रहा है। हाल ही में आई एक किताब ‘द एमेच्योर’ के अनुसार तो बिल क्लिंटन ने कहा था कि ओबामा को ‘पता नहीं कि राष्ट्रपति काम कैसे करता है और वो अक्षम हैं’। हालांकि बिल क्लिंटन के प्रवक्ता ने इसका खंडन किया और अब बिल क्लिंटन ओबामा के चुनाव के लिए बेहद सक्रिय हैं।
जहां तक रक्षा बजट की बात है, तो 2011 में अमेकिरी रक्षा बजट में से 78 अरब अमेरिकी डॉलर की कटौती कर उसे घरेलू खर्च में इस्तेमाल किया गया। ओबामा इसे बढ़ाना चाहते हैं। इस मामले में बीते दो साल से ओबामा ने खूब तेजी दिखाई है। अप्रैल 2011 में ही उन्होंने एक साथ 400 अरब अमेरिकी डॉलर की कटौती का निर्देश दिया था, जिसे दूसरे मदों में उपयोग किया गया। रोमनी इस मामले पर ओबामा को घेर रहे हैं, और राष्ट्रीय सुरक्षा के भावुक मंत्र को पूरी शिद्दत से फैला रहे हैं।
इस कांटे की टक्कर के बावजूद यह कहा जा सकता है कि फिलहाल ओबामा व्हाइट हाउस में दूसरे कार्यकाल के लिए मजबूती से कदम बढ़ा रहे हैं। हालिया भाषण के बाद उनकी लोकप्रियता में इजाफा होना तय है। देखा जाए तो 2008 में अपनी जीत के पहले भी आखिरी तीन महीनों में ही ओबामा की लोकप्रियता बढ़ी थी। दूसरी बात कि जहां इन चुनावों का एजेंडा खुद ओबामा तय कर रहे हैं, वहीं मिट रोमनी उनकी बनाए रास्ते पर पीछे-पीछे हमला करते हुए चल रहे हैं। रोमनी ने अब तक अपने एजेंडे को स्पष्ट नहीं किया है। रोमनी भूल रहे हैं कि फिलवक्त अमेरिकी जनता पशोपेश में है, और उसे कुछ महत्वपूर्ण सवालों के ठोस जवाब चाहिए है। जवाब ओबामा भी नहीं दे रहे हैं, लेकिन वे चयन प्रक्रिया के पहले ‘सही नेतृत्व’ को परिभाषित करने का खतरा उठा रहे हैं।
कुल मिलाकर, अभी अमेरिकी जनता अपने नए राष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया से गुजरते हुए दोनों पक्षों को तौल रही है। आने वाले दो महीनों में ओबामा और रोमनी की बहसों से साफ हो जाएगा कि अमेरिकी को कौन नई जमीन पर ले जाने में सक्षम है। उम्मीद करनी चाहिए कि वह शख्स नई वैश्विक परिस्थितियों के भी अनुकूल हो।
दूसरी पारी के लिए जरूरी जनमत मांगते हुए ओबामा ने रोजगार के नए अवसर पैदा करने, कर्ज में कटौती और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार देने जैसे लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इस दौरान ओबामा लगातार खुद को सामने बैठे समूह का सच्चा प्रतिनिधि बताते रहे। ओबामा जानते हैं कि उनकी आने वाली राह आसान नहीं है, और हालिया सर्वेक्षणों में रोमनी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। जाहिर है देश के आर्थिक हालात बदले हुए हैं, और वैश्विक परिस्थितियां भी 180 के कोण पर घूम चुकी हैं। ईराक और अफगानिस्तान युद्ध में अपनी आर्थिक ताकत को कमजोर कर चुके अमेरिका को नए अवसर की तलाश के साथ कटौती की दोधारी तलवार पर चलना है। इसीलिए ओबामा ने आने वाले चार सालों को बेहद मुश्किल वक्त बताते हुए साफ कर दिया है कि सब कुछ आसान नहीं है, लेकिन साथ ही वे यह कहना भी नहीं भूलते कि चयन आपको करना है। यानी रिपब्लिकन ऊहापोह और डेमोक्रेटिक उत्साह के बीच का चयन। संभवत: चार साल पहले वाले ओबामा इन परिस्थितियों में ‘मुश्किलें हैं, लेकिन हम हल कर सकते हैं’, जैसा जुमला उछालते, लेकिन उन्होंने ज्यादा यथार्थवादी रास्ता अपनाते हुए कहा कि, ‘जब आपके हाथ में मतपत्र होगा, तब आपके पास एक स्पष्ट पसंद होगी’।
आने वाले कुछ वर्षों में बड़े फैसलों की रूपरेखा बताने वाले ओबामा ने रोजगार और अर्थव्यवस्था, कर, वित्तीय घाटे, ऊर्जा, शिक्षा, युद्ध, शांति आदि उन तमाम मसलों पर अपनी बात कही जो अमेरिकी जीवन के साथ-साथ पूरे विश्व पर असर डालने वाली है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को तेज करने की बात कहते हुए उन्होंने रक्षा बजट में कटौती और इस पैसे से निर्माण कार्य में तेजी की ओर इशारा किया है। मिट रोमनी इसके खिलाफ हैं। रिपब्लिकन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी करार देते हैं। वैश्विक समुदाय की दिलचस्पी इसी अमेरिकी हित में है। ओबामा के खाते में ईराक और अफगानिस्तान से सेनाओं की वापसी है, और मिट रोमनी को वे शीत युद्ध की सोच वाला बता चुके हैं। इराक युद्ध खत्म करने की वाहवाही बटोरने के बाद ओबामा ने पूर्व अल कायदा सुप्रीमो ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अफगान युद्ध 2014 तक खत्म करने का वायदा किया है। जाहिर है युद्ध ओबामा के एजेंडे में नहीं है। यह बात महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि हथियार लॉबी से डेमोक्रेटिक नेताओं के संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। ओबामा ने मध्यवर्गीय करों में कटौती की बात तो कही लेकिन उच्च आय वर्ग की कटौती से साफ इनकार किया। जाहिर है ओबामा की नजर ज्यादा बड़े मध्यवर्गीय वोटों पर है। साथ ही उन्होंने बुजुर्गों को लुभाने का पांसा भी फेंका है।
ओबामा का यह भाषण देखने के बाद अमेरिकी जनता के वोट देने वाले विकल्पों पर क्या फर्क पड़ेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन आने वाले समय में अमेरिका की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। चुनावी सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि ओबामा और रोमनी के बीच फिलहाल कांटे की टक्कर है। रक्षा बजट में कटौती पर दोनों धुर विरोधी हैं, इसके अलावा आऊटसोर्सिंग, ऊर्जा और रोजगार के मसलों पर भी दोनों की राय जुदा है। अमेरिका के अतिरिक्त संवेदनशील मध्यवर्ग के लिए यह मामले आर्थिक हितों के साथ भावुकता की चासनी में भी लिपटे हुए हैं। जाहिर है नवंबर तक इन मसलों पर बहसों का लंबा दौर चलेगा और तभी तय हो सकेगा कि पलड़ा किस तरफ झुक रहा है।
आऊटसोर्सिंग का मामला इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की दिशा तय करने का माद्दा रखता है और चीन समेत पूरे दक्षिण एशिया के हित इससे जुड़े हैं। अभी तक ओबामा इसका विरोध करते रहे हैं, लेकिन हाल ही में क्लिंटन प्रशासन में चेयर आॅफ द काउंसिल आॅफ इकोनॉमिक एडवाइजरी रहीं और वर्तमान ओबामा समूह में आर्थिक नीति सलाहकार लॉरा टायसन ने साफ किया है कि, ‘यह जरूरी है कि हम यह मान लें कि इनसोर्सिंग, आऊटसोर्सिंग, सप्लाई चेन कॉम्प्लेक्सिटी, सप्लाई चेन डिसएग्रीगेशन यहां बने रहेंगे।’ इसे ओबामा और क्लिंटन की सार्वजनिक मंच पर हुई मुलाकात से जोड़कर भी देखा जा रहा है। हाल ही में आई एक किताब ‘द एमेच्योर’ के अनुसार तो बिल क्लिंटन ने कहा था कि ओबामा को ‘पता नहीं कि राष्ट्रपति काम कैसे करता है और वो अक्षम हैं’। हालांकि बिल क्लिंटन के प्रवक्ता ने इसका खंडन किया और अब बिल क्लिंटन ओबामा के चुनाव के लिए बेहद सक्रिय हैं।
जहां तक रक्षा बजट की बात है, तो 2011 में अमेकिरी रक्षा बजट में से 78 अरब अमेरिकी डॉलर की कटौती कर उसे घरेलू खर्च में इस्तेमाल किया गया। ओबामा इसे बढ़ाना चाहते हैं। इस मामले में बीते दो साल से ओबामा ने खूब तेजी दिखाई है। अप्रैल 2011 में ही उन्होंने एक साथ 400 अरब अमेरिकी डॉलर की कटौती का निर्देश दिया था, जिसे दूसरे मदों में उपयोग किया गया। रोमनी इस मामले पर ओबामा को घेर रहे हैं, और राष्ट्रीय सुरक्षा के भावुक मंत्र को पूरी शिद्दत से फैला रहे हैं।
इस कांटे की टक्कर के बावजूद यह कहा जा सकता है कि फिलहाल ओबामा व्हाइट हाउस में दूसरे कार्यकाल के लिए मजबूती से कदम बढ़ा रहे हैं। हालिया भाषण के बाद उनकी लोकप्रियता में इजाफा होना तय है। देखा जाए तो 2008 में अपनी जीत के पहले भी आखिरी तीन महीनों में ही ओबामा की लोकप्रियता बढ़ी थी। दूसरी बात कि जहां इन चुनावों का एजेंडा खुद ओबामा तय कर रहे हैं, वहीं मिट रोमनी उनकी बनाए रास्ते पर पीछे-पीछे हमला करते हुए चल रहे हैं। रोमनी ने अब तक अपने एजेंडे को स्पष्ट नहीं किया है। रोमनी भूल रहे हैं कि फिलवक्त अमेरिकी जनता पशोपेश में है, और उसे कुछ महत्वपूर्ण सवालों के ठोस जवाब चाहिए है। जवाब ओबामा भी नहीं दे रहे हैं, लेकिन वे चयन प्रक्रिया के पहले ‘सही नेतृत्व’ को परिभाषित करने का खतरा उठा रहे हैं।
कुल मिलाकर, अभी अमेरिकी जनता अपने नए राष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया से गुजरते हुए दोनों पक्षों को तौल रही है। आने वाले दो महीनों में ओबामा और रोमनी की बहसों से साफ हो जाएगा कि अमेरिकी को कौन नई जमीन पर ले जाने में सक्षम है। उम्मीद करनी चाहिए कि वह शख्स नई वैश्विक परिस्थितियों के भी अनुकूल हो।
(आठ सितंबर को जनवाणी में प्रकाशित)