सचिन श्रीवास्तव
हाल ही में भारत की सौर ऊर्जा क्षमताओं में बढ़ोतरी की सराहना करते हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुटरर्स ने कहा था कि दुनिया ग्रीन इकॉनोमी यानी हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है। एक ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन दुनिया के सामने बड़ा खतरा है, विकास की यह नई राह तसल्ली ओर उम्मीद देती है। बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन और बढ़ते प्रदूषण के कारण अब वक्त आ गया है कि दुनिया ग्रीन इकॉनोमी में पैसा लगाए। यानी ऐसे ईंधन का इंतजाम जो धरती की सेहत के लिए खतरा न बने।
130 देश ग्रीन इकॉनोमी पर हो चुके हैं सैद्धांतिक तौर पर सहमत
13 ट्रिलियन डॉलर (884 लाख अरब रुपए) की रकम हर साल वैश्विक
अर्थव्यवस्था में लगाई जाए तो कॉर्बन उत्सर्जन कम हो सकेगा
80 लाख से ज्यादा रोजगार दे रहा है रीन्यूएबल एनर्जी सेक्टर
700 मेगावॉट की सौर और पवन ऊर्जा इकाई लगाने की घोषणा की है इस साल सऊदी अरब ने
02 गुना हो जाएगी 2017 में भारत की सौर ऊर्जा क्षमता
18 गीगावॉट तक सौर ऊर्जा उत्पादन होने लगेगा भारत में इस साल के अंत तक
50 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से संबंधित हैं दुनिया भर की नई बिजली उत्पादन योजनाएं
90 प्रतिशत हिस्सेदारी है यूरोप में ऐसी योजनाओं की
दुनियाभर में नए बिजली उत्पादन के उपायों में आधे स्रोत अक्षय ऊर्जा
से संबंधित हैं। यूरोप में तो पुनर्चक्रण वाली ऊर्जा की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत तक है। अमरीका और चीन में रीन्यूएबल एनर्जी में ऑयल और गैस क्षेत्र से ज्यादा रोजगार हैं। पूरी दुनिया में 80 लाख से ज्यादा लोग रीन्यूएबल क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
एंटोनियो गुटेरर्स, महासचिव, संयुक्त राष्ट्र
एकदूसरे से जुड़ी है पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की सेहत
वैश्विक माहौल में सरकारें और कारोबारी समुदाय इस बात पर एकमत हो गए हैं कि पर्यावरण की सेहत से देशों और दुनिया की अर्थव्यवस्था और बाजार सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। बेहतर पर्यावरण ही अच्छी और मजबूत अर्थव्यवस्था की राह खोल सकता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि पर्यावरण को जितना खतरा बढ़ेगा दुनिया की शांति, समृद्धि और विकास भी उतने ही प्रभावित होंगे।
बदल रहे सामाजिक हालात और पर्यावरण
2016 दुनिया का सबसे गर्म साल रहा है। इस दौरान समुद्री बर्फ में ऐतिहासिक कमी आई है, नतीजतन जलस्तर ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया है। पर्यावरण में हुए इस बदलाव का नतीजा इंसानी जीवन पर पड़ा है और खाद्य सुरक्षा, पानी की कमी, गरीबी और विस्थापन जैसी समस्याएं बढ़ी हैं।
दो फीसदी जीडीपी की दरकार
कीनिया की राजधानी नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी की पहली बैठक के दौरान ग्रीन इकॉनोमी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण विचार रखे गए। यूएनईपी की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर पूरी दूनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की महज दो फीसदी रकम 10 मुख्य क्षेत्रों में लगा दी जाए तो दुनिया ग्रीन इकॉनोमी के रास्ते पर चल पड़ेगी।
सबका साथ चलना है जरूरी
यूएनईपी के अर्थव्यवस्था और व्यापार विभाग के मुखिया स्टीव स्टोन के अनुसार सभी देशों को ग्रीन इकॉनोमी की ओर एक साथ चलना होगा, तभी हकीकत में लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा। इससे संसाधनों का इंतजाम करने में भी आसानी होगी और ज्यादा लोगों को फायदा भी मिल सकेगा। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर एक देश ग्रीन इकॉनोमी का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन उसका पड़ोसी देश नहीं कर रहा है, तो पहले देश का खर्च तीन से चार गुना ज्यादा हो जाएगा।
कई क्षेत्रों में निवेश पर लगानी होगी लगाम
ग्रीन इकॉनोमी की ओर जाने में एक बड़ी बाधा विभिन्न क्षेत्रों में निवेश है। ग्रीन इकॉनोमी को अपनाने के लिए देशों का निवेश नियंत्रित होगा। इनमें जीवाश्म ईंधन, कृषि और जल क्षेत्र, मछली व्यवसाय आदि में निवेश का तरीका बिल्कुल बदल जाएगा। इन क्षेत्रों में गलत निवेश से हरित अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
जंगलों को संरक्षण की जरूरत
ग्रीन इकॉनोमी की पहली शर्त जंगलों को संरक्षण और संवर्धन है। वनों और वन्य जीवों के गैरकानूनी कारोबार पर नकेल कसने के बाद ही ग्रीन इकॉनोमी की ओर बढ़ा जा सकता है।
राजनीति नहीं विज्ञान है ग्रीन इकॉनोमी
एक दशक पहले ग्रीन इकॉनोमी के बारे में जब बात शुरू हुई थी, तब यह माना गया था कि यह एक नई तरह की राजनीति को प्रेरित करेगी और दुनिया के देशों के नए धड़े बनेंगे। हालांकि अब यह साफ हो चुका है कि यह विज्ञान के ज्यादा नजदीक है और जो देश ग्रीन इकॉनोमी की ओर नहीं बढ़ेंगे वे भविष्य की दौड़ में पिछड़ जाएंगे।
हाल ही में भारत की सौर ऊर्जा क्षमताओं में बढ़ोतरी की सराहना करते हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुटरर्स ने कहा था कि दुनिया ग्रीन इकॉनोमी यानी हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है। एक ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन दुनिया के सामने बड़ा खतरा है, विकास की यह नई राह तसल्ली ओर उम्मीद देती है। बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन और बढ़ते प्रदूषण के कारण अब वक्त आ गया है कि दुनिया ग्रीन इकॉनोमी में पैसा लगाए। यानी ऐसे ईंधन का इंतजाम जो धरती की सेहत के लिए खतरा न बने।
130 देश ग्रीन इकॉनोमी पर हो चुके हैं सैद्धांतिक तौर पर सहमत
13 ट्रिलियन डॉलर (884 लाख अरब रुपए) की रकम हर साल वैश्विक
अर्थव्यवस्था में लगाई जाए तो कॉर्बन उत्सर्जन कम हो सकेगा
80 लाख से ज्यादा रोजगार दे रहा है रीन्यूएबल एनर्जी सेक्टर
700 मेगावॉट की सौर और पवन ऊर्जा इकाई लगाने की घोषणा की है इस साल सऊदी अरब ने
02 गुना हो जाएगी 2017 में भारत की सौर ऊर्जा क्षमता
18 गीगावॉट तक सौर ऊर्जा उत्पादन होने लगेगा भारत में इस साल के अंत तक
50 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से संबंधित हैं दुनिया भर की नई बिजली उत्पादन योजनाएं
90 प्रतिशत हिस्सेदारी है यूरोप में ऐसी योजनाओं की
दुनियाभर में नए बिजली उत्पादन के उपायों में आधे स्रोत अक्षय ऊर्जा
से संबंधित हैं। यूरोप में तो पुनर्चक्रण वाली ऊर्जा की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत तक है। अमरीका और चीन में रीन्यूएबल एनर्जी में ऑयल और गैस क्षेत्र से ज्यादा रोजगार हैं। पूरी दुनिया में 80 लाख से ज्यादा लोग रीन्यूएबल क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
एंटोनियो गुटेरर्स, महासचिव, संयुक्त राष्ट्र
एकदूसरे से जुड़ी है पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की सेहत
वैश्विक माहौल में सरकारें और कारोबारी समुदाय इस बात पर एकमत हो गए हैं कि पर्यावरण की सेहत से देशों और दुनिया की अर्थव्यवस्था और बाजार सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। बेहतर पर्यावरण ही अच्छी और मजबूत अर्थव्यवस्था की राह खोल सकता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि पर्यावरण को जितना खतरा बढ़ेगा दुनिया की शांति, समृद्धि और विकास भी उतने ही प्रभावित होंगे।
बदल रहे सामाजिक हालात और पर्यावरण
2016 दुनिया का सबसे गर्म साल रहा है। इस दौरान समुद्री बर्फ में ऐतिहासिक कमी आई है, नतीजतन जलस्तर ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया है। पर्यावरण में हुए इस बदलाव का नतीजा इंसानी जीवन पर पड़ा है और खाद्य सुरक्षा, पानी की कमी, गरीबी और विस्थापन जैसी समस्याएं बढ़ी हैं।
दो फीसदी जीडीपी की दरकार
कीनिया की राजधानी नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी की पहली बैठक के दौरान ग्रीन इकॉनोमी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण विचार रखे गए। यूएनईपी की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर पूरी दूनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की महज दो फीसदी रकम 10 मुख्य क्षेत्रों में लगा दी जाए तो दुनिया ग्रीन इकॉनोमी के रास्ते पर चल पड़ेगी।
सबका साथ चलना है जरूरी
यूएनईपी के अर्थव्यवस्था और व्यापार विभाग के मुखिया स्टीव स्टोन के अनुसार सभी देशों को ग्रीन इकॉनोमी की ओर एक साथ चलना होगा, तभी हकीकत में लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा। इससे संसाधनों का इंतजाम करने में भी आसानी होगी और ज्यादा लोगों को फायदा भी मिल सकेगा। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर एक देश ग्रीन इकॉनोमी का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन उसका पड़ोसी देश नहीं कर रहा है, तो पहले देश का खर्च तीन से चार गुना ज्यादा हो जाएगा।
कई क्षेत्रों में निवेश पर लगानी होगी लगाम
ग्रीन इकॉनोमी की ओर जाने में एक बड़ी बाधा विभिन्न क्षेत्रों में निवेश है। ग्रीन इकॉनोमी को अपनाने के लिए देशों का निवेश नियंत्रित होगा। इनमें जीवाश्म ईंधन, कृषि और जल क्षेत्र, मछली व्यवसाय आदि में निवेश का तरीका बिल्कुल बदल जाएगा। इन क्षेत्रों में गलत निवेश से हरित अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
जंगलों को संरक्षण की जरूरत
ग्रीन इकॉनोमी की पहली शर्त जंगलों को संरक्षण और संवर्धन है। वनों और वन्य जीवों के गैरकानूनी कारोबार पर नकेल कसने के बाद ही ग्रीन इकॉनोमी की ओर बढ़ा जा सकता है।
राजनीति नहीं विज्ञान है ग्रीन इकॉनोमी
एक दशक पहले ग्रीन इकॉनोमी के बारे में जब बात शुरू हुई थी, तब यह माना गया था कि यह एक नई तरह की राजनीति को प्रेरित करेगी और दुनिया के देशों के नए धड़े बनेंगे। हालांकि अब यह साफ हो चुका है कि यह विज्ञान के ज्यादा नजदीक है और जो देश ग्रीन इकॉनोमी की ओर नहीं बढ़ेंगे वे भविष्य की दौड़ में पिछड़ जाएंगे।