सचिन श्रीवास्तव
सोशल नेटवर्किंग साइट पर अफवाहों और नफरत फैलाने वाली पोस्ट्स से पूरी दुनिया परेशान है। इसके खिलाफ सख्त कानून की मांग भी होती रही है। अब तक विभिन्न सरकारें पुराने और आम कानूनों के आधार पर ही ऐसे मामलों से निपट रही हैं, लेकिन वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। जर्मनी ने नफरत फैलाने वाली पोस्ट के खिलाफ नया कानून लाकर एक पहल की है। इस कानून से जुड़े प्रस्ताव को सरकार ने मंजूरी दे दी है और अब संसद की मंजूरी मिलना बाकी है। जर्मनी में कानून प्रभावी होने के बाद दुनिया के अन्य हिस्सों में भी ऐसे कानून सामने आएंगे। इस बीच विभिन्न सोशल साइट्स ने हेट स्पीच के मामले में अपनी नीतियों को पहले ही सख्त करना शुरू कर दिया है।
शिकायतों पर कार्रवाई
39 फीसदी शिकायतों पर आपत्तिजनक सामग्री हटाई फेसबुक ने जनवरी-फरवरी 2017 में
01 प्रतिशत पोस्ट डिलीट किए ट्विटर ने इस दौरान
90 प्रतिशत मामलों में कार्रवाई की यूट्यूब ने इस
अवधि में
31 मई 2016 को फेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और ट्विटर ने यूरोपियन यूनियन के 24 घंटे के भीतर नफरत संबंधी पोस्ट हटाने के प्रस्ताव पर सहमति जताई थी
15 कंपनियों ने फेसबुक से हटाए थे विज्ञापन महिला हिंसा और नफरत संबंधी पोस्ट को लेकर चलाए गए अभियानों के बाद
स्वतंत्रता और कानून का टकराव
नफरत फैलाने वाली पोस्ट के खिलाफ सख्त कानून के आड़े अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आती रही है। सख्त कानून की मांग करने वालों का मानना है कि अभिव्यक्ति के नाम पर किसी तरह की नफरत के प्रसार को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है। वहीं दूसरे वर्ग का मानना है कि यह कानून अभिव्यक्ति को नियंत्रित करेगा, जो लोकतंत्र को तानाशाही में बदल देगा। बहरहाल, जर्मनी के न्याय मंत्री हाइको मास ने इस बहस में महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि सड़क की तरह सोशल मीडिया पर भी आपराधिक उफान के लिए बहुत कम सहनशीलता होनी चाहिए। जर्मनी सरकार ने कानून के पक्ष में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहां खत्म हो जाती है, जहां आपराधिक कानून शुरू होता है।
यूट्यूब भी हुआ सख्त
यूट्यूब ने नफरत फैलाने वाली पोस्टों के लिए अपनी विज्ञापन पॉलिसी में बदलाव किए हैं। यूट्यूब को विज्ञापन देने वाली कंपनियों ने इस मामले में शिकायत दर्ज कराई थी। कंपनियों का कहना था कि नफरत फैलाने वाले वीडियो से पहले या इसके दौरान विज्ञापन से उनके ब्रांड की छवि प्रभावित हो रही है। विज्ञापन कंपनियों ने यूट्यूब से नाता तोड़ा तो सोशल साइट ने अपनी नीति बदली है।
भारत में नए कानून की कवायद
अप्रैल के पहले सप्ताह में ही लॉ कमीशन की 267वीं रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 153 और 505 में बदलाव की सिफारिश की गई है। इसके पहले भारत में सोशल मीडिया पर नफरत भरी पोस्टों पर लगाम कसने के लिए अलग से नीति बनाने और सख्ती करने की मांग भी अलग-अलग मंचों से उठती रही है।
सोशल साइट्स और सरकारों के बीच खींचतान
दुनियाभर में कोई भी सोशल साइट्स नहीं चाहती कि उस पर किसी भी तरह का कानून लागू हो। इसकी एक वजह यह भी है कि नफरत भरी पोस्ट पर नजर रखने के लिए एक पूरे तंत्र की जरूरत होती है, जिस पर सोशल साइट्स काम नहीं करना चाहतीं। दूसरी तरफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट का मसला भी है। गूगल, फेसबुक से लेकर ट्विटर और इंस्टाग्राम तक सभी कंपनियां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पक्षधर रही हैं। ऐसे में कानून को लेकर इनका सरकारों से टकराव है।
खतरे का आकार
400 घंटे के वीडियो हर मिनट अपलोड किए जाते हैं यूट्यूब पर
50 करोड़ ट्वीट होते हैं हर रोज
35 करोड़ फोटो डाली जाती हैं हर रोज फेसबुक पर
नफरत से हार जाती है तकनीक
नफरत फैलाने वाली पोस्ट का आकलन तकनीक के जरिये करना संभव नहीं है। इसके लिए अल्गोरिदम विकसित करना अब तक संभव नहीं हुआ है। असल में यह किसी इंसान को ही तय करना होता है कि कौन सी पोस्ट नफरत के दायरे में आती है, और कौन सी सामान्य अभिव्यक्ति है। ऐसे में जाहिर है कि कानून का इस्तेमाल सरकार और सोशल कंपनियां अपने-अपने हितों के लिए कर सकती हैं।
कानून का वैश्विक होना है जरूरी
सोशल मीडिया पर नफरत संबंधी पोस्ट के लिए कानून का वैश्विक होना भी खासा जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे मुल्क में बैठकर कोई पोस्ट करता है, और वह घृणा फैलाने वाली है, तो उस पर संबंधित देश का ही कानून लागू होगा। साथ ही कंपनी का दफ्तर किस देश में है इससे भी फर्क पड़ेगा। इस तरह ऐसे में मामलों में तीन या तीन से ज्यादा देश शामिल हो सकते हैं। एक पीडि़त पक्ष, दूसरा आरोपी और तीसरा पक्ष संबंधित सोशल कंपनी का। ऐसे में किसी एक देश के कानून से नफरत संबंधी पोस्ट को काबू करना संभव नहीं है।
गूगल के क्वालिटी रेटर्स
गूगल ने भी अपमानजनक पोस्टों के खिलाफ अपनी कार्रवाई शुरू कर दी है। गूगल इसके लिए अल्गोरिदम के अलावा इंसानी मदद भी लेगा। इससे अधिक सटीक नतीजों की संभावना होगी। गूगल ने इसके लिए 10 हजार यूजर्स को जिम्मेदारी सौंपी है। इन्हें गूगल क्वालिटी रेटर्स कहता है। ये गूगल के दिशानिर्देशों पर काम करते हैं। यह क्वालिटी रेटर्स हिंसा या नफरत फैलाने वाली बातें, नस्लीय या अपमानजनक टिप्पणी, हिंसा जैसे कि पशु क्रूरता या बाल शोषण या मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों पर नजर रखते हैं।
सोशल नेटवर्किंग साइट पर अफवाहों और नफरत फैलाने वाली पोस्ट्स से पूरी दुनिया परेशान है। इसके खिलाफ सख्त कानून की मांग भी होती रही है। अब तक विभिन्न सरकारें पुराने और आम कानूनों के आधार पर ही ऐसे मामलों से निपट रही हैं, लेकिन वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। जर्मनी ने नफरत फैलाने वाली पोस्ट के खिलाफ नया कानून लाकर एक पहल की है। इस कानून से जुड़े प्रस्ताव को सरकार ने मंजूरी दे दी है और अब संसद की मंजूरी मिलना बाकी है। जर्मनी में कानून प्रभावी होने के बाद दुनिया के अन्य हिस्सों में भी ऐसे कानून सामने आएंगे। इस बीच विभिन्न सोशल साइट्स ने हेट स्पीच के मामले में अपनी नीतियों को पहले ही सख्त करना शुरू कर दिया है।
शिकायतों पर कार्रवाई
39 फीसदी शिकायतों पर आपत्तिजनक सामग्री हटाई फेसबुक ने जनवरी-फरवरी 2017 में
01 प्रतिशत पोस्ट डिलीट किए ट्विटर ने इस दौरान
90 प्रतिशत मामलों में कार्रवाई की यूट्यूब ने इस
अवधि में
31 मई 2016 को फेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और ट्विटर ने यूरोपियन यूनियन के 24 घंटे के भीतर नफरत संबंधी पोस्ट हटाने के प्रस्ताव पर सहमति जताई थी
15 कंपनियों ने फेसबुक से हटाए थे विज्ञापन महिला हिंसा और नफरत संबंधी पोस्ट को लेकर चलाए गए अभियानों के बाद
स्वतंत्रता और कानून का टकराव
नफरत फैलाने वाली पोस्ट के खिलाफ सख्त कानून के आड़े अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आती रही है। सख्त कानून की मांग करने वालों का मानना है कि अभिव्यक्ति के नाम पर किसी तरह की नफरत के प्रसार को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है। वहीं दूसरे वर्ग का मानना है कि यह कानून अभिव्यक्ति को नियंत्रित करेगा, जो लोकतंत्र को तानाशाही में बदल देगा। बहरहाल, जर्मनी के न्याय मंत्री हाइको मास ने इस बहस में महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि सड़क की तरह सोशल मीडिया पर भी आपराधिक उफान के लिए बहुत कम सहनशीलता होनी चाहिए। जर्मनी सरकार ने कानून के पक्ष में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहां खत्म हो जाती है, जहां आपराधिक कानून शुरू होता है।
यूट्यूब भी हुआ सख्त
यूट्यूब ने नफरत फैलाने वाली पोस्टों के लिए अपनी विज्ञापन पॉलिसी में बदलाव किए हैं। यूट्यूब को विज्ञापन देने वाली कंपनियों ने इस मामले में शिकायत दर्ज कराई थी। कंपनियों का कहना था कि नफरत फैलाने वाले वीडियो से पहले या इसके दौरान विज्ञापन से उनके ब्रांड की छवि प्रभावित हो रही है। विज्ञापन कंपनियों ने यूट्यूब से नाता तोड़ा तो सोशल साइट ने अपनी नीति बदली है।
भारत में नए कानून की कवायद
अप्रैल के पहले सप्ताह में ही लॉ कमीशन की 267वीं रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 153 और 505 में बदलाव की सिफारिश की गई है। इसके पहले भारत में सोशल मीडिया पर नफरत भरी पोस्टों पर लगाम कसने के लिए अलग से नीति बनाने और सख्ती करने की मांग भी अलग-अलग मंचों से उठती रही है।
सोशल साइट्स और सरकारों के बीच खींचतान
दुनियाभर में कोई भी सोशल साइट्स नहीं चाहती कि उस पर किसी भी तरह का कानून लागू हो। इसकी एक वजह यह भी है कि नफरत भरी पोस्ट पर नजर रखने के लिए एक पूरे तंत्र की जरूरत होती है, जिस पर सोशल साइट्स काम नहीं करना चाहतीं। दूसरी तरफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट का मसला भी है। गूगल, फेसबुक से लेकर ट्विटर और इंस्टाग्राम तक सभी कंपनियां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पक्षधर रही हैं। ऐसे में कानून को लेकर इनका सरकारों से टकराव है।
खतरे का आकार
400 घंटे के वीडियो हर मिनट अपलोड किए जाते हैं यूट्यूब पर
50 करोड़ ट्वीट होते हैं हर रोज
35 करोड़ फोटो डाली जाती हैं हर रोज फेसबुक पर
नफरत से हार जाती है तकनीक
नफरत फैलाने वाली पोस्ट का आकलन तकनीक के जरिये करना संभव नहीं है। इसके लिए अल्गोरिदम विकसित करना अब तक संभव नहीं हुआ है। असल में यह किसी इंसान को ही तय करना होता है कि कौन सी पोस्ट नफरत के दायरे में आती है, और कौन सी सामान्य अभिव्यक्ति है। ऐसे में जाहिर है कि कानून का इस्तेमाल सरकार और सोशल कंपनियां अपने-अपने हितों के लिए कर सकती हैं।
कानून का वैश्विक होना है जरूरी
सोशल मीडिया पर नफरत संबंधी पोस्ट के लिए कानून का वैश्विक होना भी खासा जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे मुल्क में बैठकर कोई पोस्ट करता है, और वह घृणा फैलाने वाली है, तो उस पर संबंधित देश का ही कानून लागू होगा। साथ ही कंपनी का दफ्तर किस देश में है इससे भी फर्क पड़ेगा। इस तरह ऐसे में मामलों में तीन या तीन से ज्यादा देश शामिल हो सकते हैं। एक पीडि़त पक्ष, दूसरा आरोपी और तीसरा पक्ष संबंधित सोशल कंपनी का। ऐसे में किसी एक देश के कानून से नफरत संबंधी पोस्ट को काबू करना संभव नहीं है।
गूगल के क्वालिटी रेटर्स
गूगल ने भी अपमानजनक पोस्टों के खिलाफ अपनी कार्रवाई शुरू कर दी है। गूगल इसके लिए अल्गोरिदम के अलावा इंसानी मदद भी लेगा। इससे अधिक सटीक नतीजों की संभावना होगी। गूगल ने इसके लिए 10 हजार यूजर्स को जिम्मेदारी सौंपी है। इन्हें गूगल क्वालिटी रेटर्स कहता है। ये गूगल के दिशानिर्देशों पर काम करते हैं। यह क्वालिटी रेटर्स हिंसा या नफरत फैलाने वाली बातें, नस्लीय या अपमानजनक टिप्पणी, हिंसा जैसे कि पशु क्रूरता या बाल शोषण या मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों पर नजर रखते हैं।