सचिन श्रीवास्तव
नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिय़ा ने देश के रोजगार हालात पर बात करते हुए हाल ही में एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि हमारे देश में एम्प्लॉयमेंट के बजाय अंडर एम्प्लॉयमेंट की समस्या है, यानी काम की नहीं, बल्कि कम काम की दिक्कत। कम काम की समस्या से दुनिया का हर देश कभी न कभी पीडि़त रहा है। यह स्थिति किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं कही जा सकती। खासकर तेजी से आगे बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तो यह बड़ा खतरा है। दिलचस्प यह है कि अमरीका में भी अंडर एम्प्लॉयमेंट की बहस इन दिनों तेज है, जो विदेशियों को काम से हटाने के नतीजे के रूप में सामने आ रही है। तो क्या भारत में भी ऐसे हालात बनने वाले हैं?
क्या है अंडर एम्प्लॉयमेंट
अंडर एम्प्लॉयमेंट उस स्थिति को कहते हैं, जब एक व्यक्ति को उसकी क्षमता से कम स्तर का काम मिलता है। यानी ऊपरी तौर पर वह व्यक्ति रोजगार कर रहा होता है, लेकिन उसकी क्षमता से बेहद कम काम उससे लिया जा रहा होता है।
पार्ट टाइम जॉब की मजबूरी
अंडर एम्प्लॉयमेंट को मापने का
एक तरीका देश में पार्ट टाइम जॉब्स की बढ़ती संख्या है। जब किसी व्यक्ति को उसकी शिक्षा, अनुभव और कौशल के मुताबिक काम नहीं मिलता है, तो वह पार्ट टाइम जॉब्स की ओर जाता है। जहां उसकी क्षमता और वक्त का भरपूर इस्तेमाल नहीं हो पाता है।
30.9 प्रतिशत है देश में अनियमित कामकाजी लोगों की संख्या
2 वजह
विस्थापन: स्थानीय लोगों पर संकट
जब देश के भीतर या विदेश से विस्थापित होकर उच्च कौशल वाले कामगार किसी एक जगह काम करते हैं, तो स्थानीय लोगों को क्षमता के मुताबिक काम नहीं मिलता है। इन हालात में वे अंडर एम्प्लॉयमेंट की स्थिति में चले जाते हैं।
उच्च शिक्षा: बाजार में नए शिक्षित
हर साल देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जाती है, लेकिन उनके लिए जरूरी जॉब्स नहीं निकल पाते हैं। इस कारण से बेरोजगार युवक कम क्षमता वाले काम करते हैं। इससे विकास दर प्रभावित होती है।
लेकिन भारत में दोनों ही स्थितियां नहीं हैं?
देखा जाए तो अंडर एम्प्लॉयमेंट की दो बड़ी वजहों में से कोई भी पूरी तरह भारत में लागू नहीं होती है। हमारे देश में विदेशों से आने वाले उच्च कौशल वाले युवकों की संख्या बेहद कम है। इसी तरह देश में उच्च शिक्षा लेने वाले छात्र भी महज 11 प्रतिशत हैं। ऐसे में भारत में यह स्थिति क्यों बन रही है?
कृषि और आबादी हैं कारण
इसलिए भारत में अंडर एम्प्लॉयमेंट के लिए दो अलग और अनूठी वजहें जिम्मेदार हैं।
पहली वजह है कृषि: कृषि देश में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाला क्षेत्र है, लेकिन यहां काम की काफी कमी है। इसलिए कृषि क्षेत्र से जुड़ी आबादी में एक व्यक्ति का काम पांच लोगों में बंटा हुआ है। इस तरह यहां अंडर एम्प्लॉयमेंट 80 प्रतिशत है, जो किसी भी अन्य क्षेत्र के मुकाबले सबसे ज्यादा है।
दूसरी वजह, आबादी: यह सही है कि देश में उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले युवकों की संख्या महज 11 प्रतिशत है, लेकिन इन शिक्षित बेरोजगारों के लिए भी क्षमता के मुताबिक रोजगार बाजार में नहीं हैं। इसलिए ज्यादातर क्षमता से कम काम के दायरे में आते हैं।
बढ़ रहा है कुछ क्षेत्रों में बोझ
देश के रोजगार क्षेत्र में एक और बड़ी समस्या सामने आ रही है। वह है कुछ विशेष क्षेत्रों में काम का दबाव। एक और जहां शिक्षकों, डॉक्टरों आदि पेशों में लोगों की भारी कमी हैं, वहीं सेवा क्षेत्र, इंजीनियरिंग आदि में अतिरिक्त बेरोजगार हैं। इससे क्षेत्रों के आधार पर यह हालात अलग हैं।
8 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट होते हैं देश में हर साल
40% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट को ही मिल पाती है नौकरी
47.5 करोड़ है देश की कुल कामकाजी आबादी
60 प्रतिशत से ज्यादा कामकाजी आबादी की क्षमता का नहीं होता पूरा उपयोग
16.5 प्रतिशत से अधिक लोगों को नहीं मिलता नियमित वेतन या पारिश्रमिक
550 नौकरियां हर रोज हो रहीं कम
1.35 लाख नौकरियां ही आईं 2015 में लेबर ब्यूरो के मुताबिक
4.19 लाख नई नौकरियां 2013 में और 2011 में 9 लाख लोगों को मिली थीं नौकरियां
कहां कितनी नौकरियां
रोजगार क्षेत्र
50 फीसदी कृषि क्षेत्र
40 प्रतिशत लघु एवं मझौले उद्योग
10 प्रतिशत अन्य क्षेत्र
नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिय़ा ने देश के रोजगार हालात पर बात करते हुए हाल ही में एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि हमारे देश में एम्प्लॉयमेंट के बजाय अंडर एम्प्लॉयमेंट की समस्या है, यानी काम की नहीं, बल्कि कम काम की दिक्कत। कम काम की समस्या से दुनिया का हर देश कभी न कभी पीडि़त रहा है। यह स्थिति किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं कही जा सकती। खासकर तेजी से आगे बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तो यह बड़ा खतरा है। दिलचस्प यह है कि अमरीका में भी अंडर एम्प्लॉयमेंट की बहस इन दिनों तेज है, जो विदेशियों को काम से हटाने के नतीजे के रूप में सामने आ रही है। तो क्या भारत में भी ऐसे हालात बनने वाले हैं?
क्या है अंडर एम्प्लॉयमेंट
अंडर एम्प्लॉयमेंट उस स्थिति को कहते हैं, जब एक व्यक्ति को उसकी क्षमता से कम स्तर का काम मिलता है। यानी ऊपरी तौर पर वह व्यक्ति रोजगार कर रहा होता है, लेकिन उसकी क्षमता से बेहद कम काम उससे लिया जा रहा होता है।
पार्ट टाइम जॉब की मजबूरी
अंडर एम्प्लॉयमेंट को मापने का
एक तरीका देश में पार्ट टाइम जॉब्स की बढ़ती संख्या है। जब किसी व्यक्ति को उसकी शिक्षा, अनुभव और कौशल के मुताबिक काम नहीं मिलता है, तो वह पार्ट टाइम जॉब्स की ओर जाता है। जहां उसकी क्षमता और वक्त का भरपूर इस्तेमाल नहीं हो पाता है।
30.9 प्रतिशत है देश में अनियमित कामकाजी लोगों की संख्या
2 वजह
विस्थापन: स्थानीय लोगों पर संकट
जब देश के भीतर या विदेश से विस्थापित होकर उच्च कौशल वाले कामगार किसी एक जगह काम करते हैं, तो स्थानीय लोगों को क्षमता के मुताबिक काम नहीं मिलता है। इन हालात में वे अंडर एम्प्लॉयमेंट की स्थिति में चले जाते हैं।
उच्च शिक्षा: बाजार में नए शिक्षित
हर साल देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जाती है, लेकिन उनके लिए जरूरी जॉब्स नहीं निकल पाते हैं। इस कारण से बेरोजगार युवक कम क्षमता वाले काम करते हैं। इससे विकास दर प्रभावित होती है।
लेकिन भारत में दोनों ही स्थितियां नहीं हैं?
देखा जाए तो अंडर एम्प्लॉयमेंट की दो बड़ी वजहों में से कोई भी पूरी तरह भारत में लागू नहीं होती है। हमारे देश में विदेशों से आने वाले उच्च कौशल वाले युवकों की संख्या बेहद कम है। इसी तरह देश में उच्च शिक्षा लेने वाले छात्र भी महज 11 प्रतिशत हैं। ऐसे में भारत में यह स्थिति क्यों बन रही है?
कृषि और आबादी हैं कारण
इसलिए भारत में अंडर एम्प्लॉयमेंट के लिए दो अलग और अनूठी वजहें जिम्मेदार हैं।
पहली वजह है कृषि: कृषि देश में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाला क्षेत्र है, लेकिन यहां काम की काफी कमी है। इसलिए कृषि क्षेत्र से जुड़ी आबादी में एक व्यक्ति का काम पांच लोगों में बंटा हुआ है। इस तरह यहां अंडर एम्प्लॉयमेंट 80 प्रतिशत है, जो किसी भी अन्य क्षेत्र के मुकाबले सबसे ज्यादा है।
दूसरी वजह, आबादी: यह सही है कि देश में उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले युवकों की संख्या महज 11 प्रतिशत है, लेकिन इन शिक्षित बेरोजगारों के लिए भी क्षमता के मुताबिक रोजगार बाजार में नहीं हैं। इसलिए ज्यादातर क्षमता से कम काम के दायरे में आते हैं।
बढ़ रहा है कुछ क्षेत्रों में बोझ
देश के रोजगार क्षेत्र में एक और बड़ी समस्या सामने आ रही है। वह है कुछ विशेष क्षेत्रों में काम का दबाव। एक और जहां शिक्षकों, डॉक्टरों आदि पेशों में लोगों की भारी कमी हैं, वहीं सेवा क्षेत्र, इंजीनियरिंग आदि में अतिरिक्त बेरोजगार हैं। इससे क्षेत्रों के आधार पर यह हालात अलग हैं।
8 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट होते हैं देश में हर साल
40% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट को ही मिल पाती है नौकरी
47.5 करोड़ है देश की कुल कामकाजी आबादी
60 प्रतिशत से ज्यादा कामकाजी आबादी की क्षमता का नहीं होता पूरा उपयोग
16.5 प्रतिशत से अधिक लोगों को नहीं मिलता नियमित वेतन या पारिश्रमिक
550 नौकरियां हर रोज हो रहीं कम
1.35 लाख नौकरियां ही आईं 2015 में लेबर ब्यूरो के मुताबिक
4.19 लाख नई नौकरियां 2013 में और 2011 में 9 लाख लोगों को मिली थीं नौकरियां
कहां कितनी नौकरियां
रोजगार क्षेत्र
50 फीसदी कृषि क्षेत्र
40 प्रतिशत लघु एवं मझौले उद्योग
10 प्रतिशत अन्य क्षेत्र