सस्ती दवा : मजबूरी से मिलता मुनाफा

सचिन श्रीवास्तव
भारतीय दवा बाजार देश के उन चुनिंदा उद्योगों में शुमार है, जहां बेतहाशा मुनाफे पर लगाम की कोई प्रभावी नीति नहीं बनी है। इस बाजार में एक सिरे पर जानी-अनजानी बीमारियों से पीडि़त मरीजों के परिजन होते हैं, और दूसरे सिरे पर इस मजबूरी को मुनाफे में बदलने को बेताव दवा कारोबारी। अब केंद्र सरकार एक बार फिर ऐसे कानून पर विचार कर रही है, जब डॉक्टर किसी मरीज के लिए केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखेंगे। यानी सामान्य दवाएं जो ब्रांडेड, बड़ी कंपनियों की दवाओं के मुकाबले काफी सस्ती होती हैं। लेकिन सस्ती दवाओं का दूसरा पक्ष यह है कि ये ग्राहक को मूल कीमत से हजार गुना ज्यादा दाम पर
मिलती हैं।
अच्छी पहल, लेकिन अमल में मुश्किल

डॉक्टरों को सस्ती दवाएं लिखने के लिए प्रेरित करना अच्छी पहल हो सकती है, लेकिन इस मकसद को जमीन पर उतारना खासा मुश्किल है। ब्रांडेड दवाओं के मुकाबले जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने की बात लंबे समय से हो रही है। औषधि केंद्र आदि खोलने की बात भी हुई, लेकिन कोई खास बदलाव नहीं हुआ। नतीजतन गरीब परिवार दवाओं का खर्च वहन करने के हालात में नहीं हैं।

ऐसे बनती है जेनेरिक दवा
- किसी बीमारी के लिए कई शोधों के बाद रसायनों के सटीक मिश्रण के आधार पर एक विशेष दवा तैयार करने का निर्णय लिया जाता है।
- इस विशेष मिश्रण को विभिन्न कंपनियां अलग-अलग नामों से बेचती हैं।
- इसी मिश्रण की जेनेरिक दवाओं का नाम एक विशेषज्ञ समिति निर्धारित करती है।
- किसी भी दवा का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही होता है।

सख्ती के कारण हैं सस्ती
जेनेरिक दवाओं को भी बाजार में लाने का लाइसेंस मिलने से पहले गुणवत्ता मानकों की सभी सख्त प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। इनके प्रचार-प्रसार पर कंपनियां कुछ भी खर्च नहीं करतीं। जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी अंकुश होता है, इसलिए वे सस्ती होती हैं। पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं।

70 प्रतिशत कम हो जाएगा अमीर देशों में लोगों का इलाज पर खर्च यदि डॉक्टर मरीज को जेनेरिक दवाओं की सलाह देने लगें। गरीब देशों के चिकित्सा खर्च में यह कमी और भी ज्यादा होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक।

05 गुना सस्ती होती हैं औसतन जेनेरिक दवाएं, ब्रांडेड दवाओं की तुलना में

कितना फर्क
90 प्रतिशत तक का फर्क होता है ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में
जैसे
ब्रांडेड: 10 गोलियों का एक पत्ता 780 रुपए का है, तो एक गोली की कीमत 78 रुपए हुई।
जेनेरिक: इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता महज 59 रुपए में ही उपलब्ध हो सकता है, यानी एक गोली करीब 6 रुपये की।

ब्लड कैंसर का एक उदाहरण
डॉक्टर ब्लड कैंसर के मरीज को एक विशेष ब्रांड की दवा लिखता है। इसकी महीने भर की कीमत 1,14,400 रुपए होगी। जबकि उसी दवा का दूसरा ब्रांड 11,400 रुपए में उपलब्ध है। यही नहीं इसी दवा के जैसी जेनेरिक दवा 8,000 से 5,720 रुपए में उपलब्ध है।

खास बात
किडनी, यूरिन, बर्न, दिल संबंधी रोग, न्यूरोलोजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों में ब्रांडेड व जेनेरिक दवा की कीमत का फर्क बहुत ज्यादा होता है।

यह है मजबूरी
दवा कंपनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा कमाती हैं। ये कंपनियां अपने प्रतिनिधियों के जरिए डॉक्टरों को ब्रांडेड दवा लिखने के लिए खासे लाभ देती हैं। डॉक्टरों के नजदीकी मेडिकल स्टोर को इन दवाओं की आपूर्ति की जाती है। कई डॉक्टर कंपनियों के झांसे में आ जाते हैं और जेनेरिक दवा लिखते ही नहीं हैं। जानकारी होने पर कोई शख्स अगर केमिस्ट की दुकान से जेनेरिक दवा मांगता भी है, तो विक्रेता इनकी उपलब्धता से ही मना कर देता है।

एनपीपीए तय करता है कीमत
दवा (कीमत नियंत्रण) संशोधन आदेश 2016 के तहत समय-समय पर दवा कीमत नियामक एनपीपीए जरूरी दवाओं की अधिकतम कीमत तय करता है। जैसे अगस्त 2016 में सरकार ने कैंसर, एचआईवी, मलेरिया और जीवाणु संक्रमण समेत कई इलाज में काम आने वाली 22 जरूरी दवाओं की अधिकतम कीमत 10 से 45 प्रतिशत तक कम की थी। साथ ही एनपीपीए ने 13 यौगिकों (फार्मूलेशन) के लिए भी खुदरा कीमत तय की।
662 दवाओं के अधिकतम मूल्य तय किए हैं अब तक एनपीपीए ने
1997 में की गई एनपीपीए की स्थापना। जरूरी दवाओं के दाम तय करने और उनमें बदलाव के लिए।
509 जरूरी दवाओं की कीमत बढ़ाने की भी इजाजत दी सरकार ने पिछले साल फार्मा कंपनियों को। इनमें डायबीटीज, हेपेटाइटिस और कैंसर की दवाएं शामिल हैं।

जन औषधि केंद्र

300 अमृत और 3,000 जन औषधि केंद्र खोलने की घोषणा की थी सरकार ने बीते साल सस्ती दवाएं मुहैया कराने के लिए
69 प्रतिशत तक औसत छूट मिलती है ऐसे स्टोर पर ब्रांडेड दवाओं पर
23 करोड़ रुपए की दवाएं बिकी थीं बीते साल देश के कुल 9 अमृत स्टोर पर
07 जन औषधि केंद्र खोलने का लक्ष्य है हर जिले में

जेनेरिक दवाओं में भारत अव्वल
भारत जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करने वाले देशों में अव्वल है। हम अमरीका तक को जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करते हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि हमारे अपने मरीजों के लिए यह उपलब्ध नहीं हैं। अस्पतालों से लेकर विभिन्न बाजारों तक सस्ती जेनेरिक दवाएं पहुंचाने की घोषणाएं विभिन्न सरकारें समय-समय पर करती रही हैं। लेकिन ठोस पहल के अभाव में अब तक यह संभव नहीं हुआ है।

जरूरी जानकारियां
- ज्यादातर बड़े शहरों में विशेष जेनेरिक मेडिकल स्टोर हैं, लेकिन इनका व्यापक प्रचार नहीं है। इस कारण इन तक लोगों की पहुंच नहीं हो पाती।
- देश में लगभग सभी नामी दवा कंपनियां ब्रांडेड के साथ कम कीमत वाली जेनेरिक दवाएं भी बनाती हैं, लेकिन ज्यादा लाभ के लिए इनका प्रसार नहीं किया जाता।