दुनियाभर की सरकारें विभिन्न कारणों से अपने बुजुर्गों को पेंशन देती हैं। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि एक निश्चित उम्र के बाद बुजुर्गों को सम्मानजक जीवन के लिए कोई काम न करना पड़े। भारत में मासिक पगार पर काम करने वालों के लिए तो यह ठीक है, लेकिन देश में बड़ी आबादी ऐसी भी है, जो रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बावजूद काम करने के लिए बाध्य है। तकलीफदेह यह भी है कि उम्र के आखिरी पड़ाव में इन बुजुर्ग को रोजगार की सामान्य शर्तों के बिना ही काम करना पड़ रहा है।
38 प्रतिशत बुजुर्ग कर रहे हैं काम
राष्ट्रीय सेंपल सर्वे (एनएसएस) के 68वें राउंड के मुताबिक, देश के एक तिहाई से ज्यादा बुजुर्ग लगातार कर रहे हैं काम
पांच वजहें बुजुर्गों के काम की
- आय का कोई जरिया नहीं
- बच्चे साथ नहीं
- बच्चे भी बेरोजगार
- परिवार के लिए अतिरिक्त आय की जरूरत
- अपनी जरूरतों के लिए
सरकारी पेंशन है नाकाफी
केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से बुजुर्गों के लिए पेंशन योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन इनकी राशि इतनी कम है कि इससे बुजुर्ग रोजाना पर्याप्त दूध भी नहीं खरीद सकते हैं। ऐसे में बुजुर्गों के पास काम के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।
सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) का सर्वे
791 बुजुर्गों से की गई बातचीत
07 ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 55 से अधिक उम्र के लोग हुए शामिल
2016 के अगस्त से अक्टूबर के बीच किया सर्वे
57 प्रतिशत महिलाएं
43 प्रतिशत पुरुष
सर्वे के निष्कर्ष
59 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि वे कम से कम एक ऐसा काम जरूर कर रहे हैं जिससे पैसा मिले
सीमित आय और सामाजिक सुरक्षा के अभाव में बुजुर्ग अपने काम की प्रकृति, समय और पैसा नहीं कर पाते तय
विकल्पों का अभाव, फिर भी काम करना मजबूरी
सीईएस के सर्वे में लोगों से पूछा गया कि उन्हें आजीविका के लिए पर्याप्त पेंशन मिले, तब भी क्या वे इतना ही काम करेंगे, जितना कर रहे हैं? इस सवाल के जवाब में 28 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि वे काम जारी रखेंगे। तकरीबन इतने ही यानी 25 प्रतिशत पर्याप्त पेंशन मिलने पर काम नहीं करेंगे, जबकि 23 प्रतिशत ने कहा कि वे मौजूदा काम के मुकाबले कम काम करना पसंद करेंगे। 24 प्रतिशत बुजुर्गों ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया।
कितनी पेंशन की है दरकार
अध्ययन बताते हैं कि मौजूदा समय में ग्रामीण क्षेत्रों में कामकाजी बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है। इन्हें जो पेंशन मिलती है, वह आवश्यकता से करीब तीन गुना कम है। यानी अगर बुजुर्ग पेंशन 500 रुपए है, तो उन्हें कम से कम 1500 रुपए की जरूरत है, जबकि कई जगह यह जरूरत 2000 रुपए के करीब है। हालांकि यह रकम भी देश की प्रति व्यक्ति आय से चार गुना कम है।
महिलाओं के हालात और खराब
हर क्षेत्र की ही तरह कामकाजी बुजुर्गों में भी महिलाओं के हालात ज्यादा खराब हैं। विभिन्न एनजीओ के अध्ययन बताते हैं कि महिला बुजुर्गों को समान और कई बार ज्यादा काम के लिए भी कम भुगतान किया जाता है।
36 प्रतिशत पुरुष काम अधिक होने पर उसे कम करने को कहते हैं
26 प्रतिशत महिलाएं ही कर पाती हैं काम अधिक होने की शिकायत
पूरी दुनिया में बढ़ रहे हैं बुजुर्ग कामगार
ऐसा नहीं है कि बुजुर्ग कामगारों की समस्या सिर्फ भारत में ही है। पूरी दुनिया में रिटायरमेंट की उम्र के बाद भी काम का चलन बढ़ा है। कई बार यह मजबूरी होती है, तो कई बार शौक। आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में बुजुर्गों के काम का प्रतिशत बढ़ा है। अमीर देशों में यह संख्या तेजी से बढ़ी है, लेकिन इसमें पार्ट टाइम काम करने वाले ज्यादा हैं।
101 प्रतिशत बढ़ी है कामकाजी बुजुर्गों की संख्या पूरी दुनिया में 1977 के मुकाबले
172 प्रतिशत ज्यादा बुजुर्ग करने लगे हैं काम, शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में
स्रोत: यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिस्टिक्स
बच्चों की तरह बुजुर्गों से काम की भी हों सीमाएं
दुनियाभर में कामकाजी उम्र के जो कानून हैं, वे बच्चों के लिए विशेष रियायतें देते हैं। कई देशों में 13 साल की उम्र के बच्चों को भी काम का अधिकार है, लेकिन उनके काम का दायरा सीमित है और इसके लिए सख्त नियम है। इसी तरह कई देशों में महज एक्टिंग या आसान काम ही बच्चे कर सकते हैं। बुजुर्गों के लिए ऐसे कोई नियम नहीं हैं। हालांकि अब इसकी मांग उठने लगी है।