सचिन श्रीवास्तव
दुनिया भर में आज इस बात पर चिंता जाहिर की जा रही है कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजैंस और रोबोटिक तकनीक कैसे हमारी नौकरियां छीन रहे हैं, हमारी आय के स्रोत खत्म कर रहे हैं, आमदानी के स्रोत कम कर रहे हैं और साथ-साथ पारंपरिक अर्थव्यवस्था को खत्म कर दे रहे हैं। इसके असर को फौरी तौर कम करने के लिए भारत समेत कनाडा और फिनलैंड जैसे देश सार्वभौमिक न्यूनतम आय यानी यूनिवर्सल बेसिक इनकम के विचार पर आगे बढ़ रहे हैं। इसमें हर नागरिक को बिना शर्त एक तय राशि देने के विकल्प पर बात की जा रही है। लेकिन इस आपधापी के बीच एक बात पर लोगों की नजर नहीं जा रही है, और वह है जीवनयापन की लागत में कमी। जी हां, यह सच है कि हमारा जीवन यापन सस्ता होता जा रहा है। तकनीक और विकास ने आवास, यातायात, खाना, स्वास्थ्य, मनोरंजन, कपड़े, शिक्षा जैसी बुनियादों जरूरत की लागत में कमी ला दी है। आप माने या न मानें लेकिन यह सच है।
मौजूदा दौर में कैसे खर्च करते हैं हम पैसा
दुनिया भर में इंसान का पैसा खर्च करने का तरीका तकरीबन एक जैसा है। बुनियादी जरूरतों और सेवाओं पर खर्च की यह एकरूपता दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इतनी समान है कि विकासशील
और विकसित देशों का अंतर भी मिट जाता है। तीन उदाहरण से इसे समझते हैं-
अमरीका: 72 प्रतिशत बुनियादी खर्च
एक औसत अमरीकी परिवार अपनी कुल आय का 72 प्रतिशत खर्च बुनियादी सेवा जैसे भोजन, स्वास्थ्य, यातायात, आवास और मनोरंजन पर करता है। इसमें 33 प्रतिशत आवास पर खर्च होता है, चाहे वह ईएमआई हो या फिर किराया या फिर घर की देखभाल। 16 प्रतिशत खर्च यातायात पर, 12 प्रतिशत भोजन पर, 6 प्रतिशत स्वास्थ्य पर और 5 प्रतिशत मनोरंजन पर होता है।
चीन: अमरीकी से ज्यादा खाने और मनोरंजन पर खर्च
गोल्डमन साच्स इन्वेस्टमेंट रिसर्च की ताजा रिपोर्ट बताती है कि खाने, घर, आवागमन और मनोरंजन पर चीनी नागरिक 75 प्रतिशत खर्च करते हैं। खास बात यह है कि चीनी उपभोक्ता मनोरंजन और खाने पर अमरीकी से ज्यादा खर्च करते हैं, क्योंकि यहां आवास खर्च कम है। करीब 50 प्रतिशत कमाई चीन में कपड़ों और खाने पर खर्च की जाती है।
भारत: आवास और स्वास्थ्य पर बराबर खर्च
भारत में भी 75 प्रतिशत खर्च इन्हीं मूल जरूरतों पर होता है। आवास किराये और स्वास्थ्य पर खर्च तकरीबन बराबर है, जबकि यातायात, खाने और अन्य बुनियादी सेवाओं पर खर्च अमरीका और चीन के आसपास ही है।
कम खर्च के कुछ उदाहरण
फोटोग्राफी: मान लीजिए आप आज से 15 साल पहले फोटोग्राफी करना चाहते थे, तो कितना खर्च आता था। आप कैमरा खरीदेंगे, उसके लिए फिल्म और फिल्म की डेवलेपिंग जैसे खर्च। आज कई मेगापिक्सल का कैमरा आपके फोन में मौजूद है और वह भी मुफ्त।
रिसर्च: दो दशक पहले किसी खास जगह की या किसी विषय पर रिसर्च एक मुश्किल और काफी खर्चीला काम था, लेकिन आज गूगल के इस दौर में रिसर्च की लागत बेहद कम हो गई है।
वीडियो और फोन कॉल: विभिन्न एप के जरिये यह बेहद सस्ता हो गया है।
यह भी हुए मुफ्त: इसी तरह विभिन्न साइट्स ने विज्ञापन को मुफ्त कर दिया है। हर तरह का संगीत अब बिल्कुल मुफ्त है, टैक्सी सेवाओं ने यातायात सस्ता किया है, तो होटल में रुकना भी पहले के मुकाबले खासा किफायती है। किताबों की लागत कम हुई है और कीमत भी ग्राहक की पहुंच में है।
लाखों के खर्च से मुफ्त तक का सफर
वीडियो कॉन्फ्रेसिंग: 80 के दशक में एक सामान्य वीसी लैब की कीमत करीब 2.50 लाख डॉलर थी, जो अब घटकर शून्य हो गई है।
जीपीएस: नौवें दशक की शुरुआत में जीपीएस डिवाइस की शुरुआती कीमत 1 लाख डॉलर से ज्यादा थी, जो अब मुफ्त उपलब्ध है।
रिकॉर्डर: एक सामान्य रिकॉर्डर आठवें दशक के आखिर में 10 हजार रुपए में आता था, जो अब फोन में मुफ्त उपलब्ध है।
डिजिटल घड़ी: 1969 में लॉन्चिंग के वक्त डिजिटल घड़ी 20 हजार रुपए की थी, जो अब मुफ्त उपलब्ध है।
5 मेगापिक्सल कैमरा, वीडियो और म्यूजिक प्लेयर, इनसाइक्लोपीडिया या वीडियोगेम का सफर भी बीते तीन दशक में हजारों से मुफ्त तक का रहा है।
आने वाले दशकों में यह जरूरी सेवाएं हो सकती हैं मुफ्त
मौजूदा दौर में एक परिवार का ज्यादातर खर्च 7 मूल जरूरतों पर होता है। इनमें यातायात, खाना, स्वास्थ्य, आवास, बिजली, शिक्षा और मनोरंजन शामिल हैं। इन सभी का खर्च समय के साथ कम होता जा रहा है। तकनीक और विकास के कारण यह सेवाएं पहले के मुकाबले सस्ती और कई जगह शर्तों के साथ मुफ्त भी हो गई हैं। आने वाले दशकों में यह सेवाएं मुफ्त हो सकती हैं।
आवागमन: किराये की कार का दौर
टैक्सी सेवाओं ने कीमतें घटाने की शुरुआत की है। पूरी तरह स्वायत्त सेवा होने पर यह लागत और कम हो सकती है। कार के बीमा, रिपेयरिंग, पार्किंग, पेट्रोल-डीजल जैसी कीमत जोड़ें तो अपनी कार के मुकाबले 5 से 10 गुना सस्ती सेवा तो मिल ही रही है। आने वाले समय में यह ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुंच में होगी।
खानपान: स्थानीय उत्पादन से कीमत होगी कम
खाद्य पदार्थों की कीमत में 70 प्रतिशत हिस्सा ट्रांसपोर्टेशन और रखरखाव का होता है। यानी स्थानीय स्तर पर खाद्य पदार्थों का उत्पादन और पैकेजिंग कीमत को खासा कम कर सकता है। प्रति मीटर उत्पादन क्षमता बढ़ाने और वर्टिकल फार्मिंग से यह संभव भी है।
स्वास्थ्य: बीमारी का पता पहले चलेगा
स्वास्थ्य सेवा में मूलत: चार चरण हैं। पहला, बीमारी का पता लगाना, दूसरा उपचार या सर्जरी, तीसरा, देखभाल और चौथा दवाएं। आने वाले दौर में रोबोट आपकी संभावित बीमारी का पता कई साल पहले लगाकर उसका उपचार कर सकता है। इससे स्वास्थ्य खर्च लगभग शून्य हो जाएगा।
आवास: तकनीक से जॉब होगा घर में
एक ही जगह ज्यादा लोगों के रहने से आवास की कीमत बढ़ती है। लोग अपनी नौकरियों और मनोरंजन की सहूलियत के लिए आवास चुनते हैं। यह दोनों ही जरूरतें तकनीक की मदद से किसी भी हिस्से में रहकर पूरी हो सकेंगी। इससे आवास की कीमत खासी कम हो जाएगी। तकरीबन मुफ्त।
इसी तरह सौर ऊर्जा के कारण बिजली, इंटरनेट के कारण शिक्षा और मनोरंजन अब लगभग मुफ्त होने के कगार पर हैं।
दुनिया भर में आज इस बात पर चिंता जाहिर की जा रही है कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजैंस और रोबोटिक तकनीक कैसे हमारी नौकरियां छीन रहे हैं, हमारी आय के स्रोत खत्म कर रहे हैं, आमदानी के स्रोत कम कर रहे हैं और साथ-साथ पारंपरिक अर्थव्यवस्था को खत्म कर दे रहे हैं। इसके असर को फौरी तौर कम करने के लिए भारत समेत कनाडा और फिनलैंड जैसे देश सार्वभौमिक न्यूनतम आय यानी यूनिवर्सल बेसिक इनकम के विचार पर आगे बढ़ रहे हैं। इसमें हर नागरिक को बिना शर्त एक तय राशि देने के विकल्प पर बात की जा रही है। लेकिन इस आपधापी के बीच एक बात पर लोगों की नजर नहीं जा रही है, और वह है जीवनयापन की लागत में कमी। जी हां, यह सच है कि हमारा जीवन यापन सस्ता होता जा रहा है। तकनीक और विकास ने आवास, यातायात, खाना, स्वास्थ्य, मनोरंजन, कपड़े, शिक्षा जैसी बुनियादों जरूरत की लागत में कमी ला दी है। आप माने या न मानें लेकिन यह सच है।
मौजूदा दौर में कैसे खर्च करते हैं हम पैसा
दुनिया भर में इंसान का पैसा खर्च करने का तरीका तकरीबन एक जैसा है। बुनियादी जरूरतों और सेवाओं पर खर्च की यह एकरूपता दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इतनी समान है कि विकासशील
और विकसित देशों का अंतर भी मिट जाता है। तीन उदाहरण से इसे समझते हैं-
अमरीका: 72 प्रतिशत बुनियादी खर्च
एक औसत अमरीकी परिवार अपनी कुल आय का 72 प्रतिशत खर्च बुनियादी सेवा जैसे भोजन, स्वास्थ्य, यातायात, आवास और मनोरंजन पर करता है। इसमें 33 प्रतिशत आवास पर खर्च होता है, चाहे वह ईएमआई हो या फिर किराया या फिर घर की देखभाल। 16 प्रतिशत खर्च यातायात पर, 12 प्रतिशत भोजन पर, 6 प्रतिशत स्वास्थ्य पर और 5 प्रतिशत मनोरंजन पर होता है।
चीन: अमरीकी से ज्यादा खाने और मनोरंजन पर खर्च
गोल्डमन साच्स इन्वेस्टमेंट रिसर्च की ताजा रिपोर्ट बताती है कि खाने, घर, आवागमन और मनोरंजन पर चीनी नागरिक 75 प्रतिशत खर्च करते हैं। खास बात यह है कि चीनी उपभोक्ता मनोरंजन और खाने पर अमरीकी से ज्यादा खर्च करते हैं, क्योंकि यहां आवास खर्च कम है। करीब 50 प्रतिशत कमाई चीन में कपड़ों और खाने पर खर्च की जाती है।
भारत: आवास और स्वास्थ्य पर बराबर खर्च
भारत में भी 75 प्रतिशत खर्च इन्हीं मूल जरूरतों पर होता है। आवास किराये और स्वास्थ्य पर खर्च तकरीबन बराबर है, जबकि यातायात, खाने और अन्य बुनियादी सेवाओं पर खर्च अमरीका और चीन के आसपास ही है।
कम खर्च के कुछ उदाहरण
फोटोग्राफी: मान लीजिए आप आज से 15 साल पहले फोटोग्राफी करना चाहते थे, तो कितना खर्च आता था। आप कैमरा खरीदेंगे, उसके लिए फिल्म और फिल्म की डेवलेपिंग जैसे खर्च। आज कई मेगापिक्सल का कैमरा आपके फोन में मौजूद है और वह भी मुफ्त।
रिसर्च: दो दशक पहले किसी खास जगह की या किसी विषय पर रिसर्च एक मुश्किल और काफी खर्चीला काम था, लेकिन आज गूगल के इस दौर में रिसर्च की लागत बेहद कम हो गई है।
वीडियो और फोन कॉल: विभिन्न एप के जरिये यह बेहद सस्ता हो गया है।
यह भी हुए मुफ्त: इसी तरह विभिन्न साइट्स ने विज्ञापन को मुफ्त कर दिया है। हर तरह का संगीत अब बिल्कुल मुफ्त है, टैक्सी सेवाओं ने यातायात सस्ता किया है, तो होटल में रुकना भी पहले के मुकाबले खासा किफायती है। किताबों की लागत कम हुई है और कीमत भी ग्राहक की पहुंच में है।
लाखों के खर्च से मुफ्त तक का सफर
वीडियो कॉन्फ्रेसिंग: 80 के दशक में एक सामान्य वीसी लैब की कीमत करीब 2.50 लाख डॉलर थी, जो अब घटकर शून्य हो गई है।
जीपीएस: नौवें दशक की शुरुआत में जीपीएस डिवाइस की शुरुआती कीमत 1 लाख डॉलर से ज्यादा थी, जो अब मुफ्त उपलब्ध है।
रिकॉर्डर: एक सामान्य रिकॉर्डर आठवें दशक के आखिर में 10 हजार रुपए में आता था, जो अब फोन में मुफ्त उपलब्ध है।
डिजिटल घड़ी: 1969 में लॉन्चिंग के वक्त डिजिटल घड़ी 20 हजार रुपए की थी, जो अब मुफ्त उपलब्ध है।
5 मेगापिक्सल कैमरा, वीडियो और म्यूजिक प्लेयर, इनसाइक्लोपीडिया या वीडियोगेम का सफर भी बीते तीन दशक में हजारों से मुफ्त तक का रहा है।
आने वाले दशकों में यह जरूरी सेवाएं हो सकती हैं मुफ्त
मौजूदा दौर में एक परिवार का ज्यादातर खर्च 7 मूल जरूरतों पर होता है। इनमें यातायात, खाना, स्वास्थ्य, आवास, बिजली, शिक्षा और मनोरंजन शामिल हैं। इन सभी का खर्च समय के साथ कम होता जा रहा है। तकनीक और विकास के कारण यह सेवाएं पहले के मुकाबले सस्ती और कई जगह शर्तों के साथ मुफ्त भी हो गई हैं। आने वाले दशकों में यह सेवाएं मुफ्त हो सकती हैं।
आवागमन: किराये की कार का दौर
टैक्सी सेवाओं ने कीमतें घटाने की शुरुआत की है। पूरी तरह स्वायत्त सेवा होने पर यह लागत और कम हो सकती है। कार के बीमा, रिपेयरिंग, पार्किंग, पेट्रोल-डीजल जैसी कीमत जोड़ें तो अपनी कार के मुकाबले 5 से 10 गुना सस्ती सेवा तो मिल ही रही है। आने वाले समय में यह ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुंच में होगी।
खानपान: स्थानीय उत्पादन से कीमत होगी कम
खाद्य पदार्थों की कीमत में 70 प्रतिशत हिस्सा ट्रांसपोर्टेशन और रखरखाव का होता है। यानी स्थानीय स्तर पर खाद्य पदार्थों का उत्पादन और पैकेजिंग कीमत को खासा कम कर सकता है। प्रति मीटर उत्पादन क्षमता बढ़ाने और वर्टिकल फार्मिंग से यह संभव भी है।
स्वास्थ्य: बीमारी का पता पहले चलेगा
स्वास्थ्य सेवा में मूलत: चार चरण हैं। पहला, बीमारी का पता लगाना, दूसरा उपचार या सर्जरी, तीसरा, देखभाल और चौथा दवाएं। आने वाले दौर में रोबोट आपकी संभावित बीमारी का पता कई साल पहले लगाकर उसका उपचार कर सकता है। इससे स्वास्थ्य खर्च लगभग शून्य हो जाएगा।
आवास: तकनीक से जॉब होगा घर में
एक ही जगह ज्यादा लोगों के रहने से आवास की कीमत बढ़ती है। लोग अपनी नौकरियों और मनोरंजन की सहूलियत के लिए आवास चुनते हैं। यह दोनों ही जरूरतें तकनीक की मदद से किसी भी हिस्से में रहकर पूरी हो सकेंगी। इससे आवास की कीमत खासी कम हो जाएगी। तकरीबन मुफ्त।
इसी तरह सौर ऊर्जा के कारण बिजली, इंटरनेट के कारण शिक्षा और मनोरंजन अब लगभग मुफ्त होने के कगार पर हैं।