​कविता नहीं

सचिन श्रीवास्तव

जब अपराधी बेलगाम हैं
और सत्ताएं खुद को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए रच रही हैं नित नए प्रपंच
नायकों ने खुद को शामिल कर लिया दरबारियों में
कवि, कलमकार, संस्कृतिकर्मी, पत्रकारों की जमात का बड़ा हिस्सा डाल चुका है हथियार
खेतों की मिट्टी खो रही है लगातार अपनी ताकत
और 
युवा सपनों की खाली जगह में भरा जा रहा है हथियारों का जहर

तब आप ही बताएं श्रीमान
कविता की भाषा में विचार की किस छौंक को मानते हैं आप कला का अपमान
लोया, गौरी, कलबुर्गी, दाभोलकर की हत्याओं का सच अब आप ही लिख दीजिए 11—13 की युति में और बनाइये सत्ता की साजिश का सोरठा ताकि जनता तक पहुंच जाए कविता की आवाज
और ठीक उलट इसके
भीड़ की हिंसा के शिकार 56 शवों को सजाइये 13—11 की युति में ताकि कविता पहुंचे जनता तक लय में
पत्रकारों, एक्टिविस्टों, आरटीआई कार्यकर्ताओं से लेकर निर्भयाओं तक की हत्या को
अनुप्रास में सजाएं या यमक, श्लेष में लपेटकर परोसें आपकी मर्जी
16—16 के समय में बनाएं अर्थव्यवस्था को गर्त में मिलाने की साजिशों की चौपाई 
सूर शैली के पदों में लिखेंगे शर्मसार हरकतों को 
या सवालों की लंबी फेहरिश्त को रोला और कुंडलियों में पहुंचाएंगे जनता तक 
आपकी मर्जी

पड़ोस का दुख नहीं समझ पा रहे हैं आप
भूख का रुदन से नजरें चुरा रहे हैं
तो आप ही बताएं जनता के जानकार 
मेण्डोलिन या ल्यूट किस पर बजाएं सॉनेट की धुन 
कि पसीज जाए आपका हृदय

इस दौर में भी आपको कला की बारीकियों की पड़ी है
सत्ता के दरबार में व्याकरण की बहसों से ही जीवन चलाना है
और अनुशासन की आड़ में अपनी कलाकारी बचानी है
तो 
आप बस तुकें जोड़िये 

असल में
भरे पेट आपको 
न 86 करोड़ लोगों के दुख दिखने हैं, न दिखेंगे
लेकिन यकीन जानिये
बंदूकों—चाकुओं की खेती करेंगे
तो सत्ता के दरवाजे पर ही सही
भूखे आप भी मरेंगे