मैं अपनी लंबी कविता को थोडा सा रोकता हूं. असल में ये रोकना भी उस कविता को आगे बढाने की तरह ही है. मैं कविता में जिस लडके की बात कर रहा हूं. उसकी डायरी मेरे हाथ लगी है. उसकी डायरी मे कई शब्द उलझे हुए हैं और कई बार एक ही शब्द के ऊपर दूसरा शब्द लिखा गया है. और काफी सारे पेज बीच में खाली छोड दिए गए हैं. फिर भी एक तरतीब है. उनमें से जनवरी 2008 में लिखे गए कुछ पन्नों को मैं आपके सामने रख रहा हूं. बीच बीच में अब हम उसकी डायरी के पन्ने पढते रहेंगे. जिससे शायद उसके मन की कुछ गांठें खुलेंगी. यह कविता से अलग यथार्थ को नए सिरे जानने की पडताल भी होगी और आपको एक ही रंग की बोरियत से छुटकारा भी मिल जाएगा. फिलहाल पढिए जनवरी की किन्ही तारीखों के ये पन्ने...
मौत कैसी होती होगी. खामोश. या फिर संगीत से भरी हुई. जैसे किसी दूसरी दुनिया में जाने की खुशी या फिर अपनी दुनिया छोडने का दुख. नहीं जानता. हम जिन अनुभवों से गुजरे नहीं है उनके बारे में महज एक कल्पना कर सकते हैं जिसमें कोई न कोई रंग खाली छूट जाएगा. फिर भी लुभाती है मौत. और उसका लुभाना भी कभी कभी कितना खूबसूरत होता है कि आदमी चला ही जाता है अपनों को छोडकर एक अनजानी दुनिया में. और भी बहुत से कारण होंगे कि लोग क्यों खुद खत्म कर लेते हैं अपना जीवन. लेकिन मुझे लगता है कि हमारी दुनिया की बदसूरती और दूसरी दुनिया में खूबसूरती का भ्रम ही वह केंद्र है जहां से लोग मरने की तरफ जाते हैं.
अपने देश में देखें तो 15 से 19 साल के युवाओं की मौत का सबसे बडा कारण खुदकुशी है और 15 से 29 साल की उम्र में हुई हर तीसरी मौत के पीछे सुसाइड है. फिर एक दूसरा तथ्य भी कि भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में खुदकुशी का औसत ज्यादा है. आखिर क्या है कि दक्षिण भारत को सुसाइड कैपिटल ऑफ इंडिया कहा जाता है? और हर 15वें मिनिट में भारत में एक जीवन का अंत खुदकुशी के चलते हो जाता है? सवाल और भी हैं कि देश का सबसे पढा लिखा राज्य क्यों खुदकुशी के मामले में भी सबसे अव्वल है?
भारत में हर एक लाख मौत में 103 मौतें खुदकुशी के कारण होती हैं. दुनियाभर के 14.5 के औसत से तुलना करने पर यह आंकडा भयावह लगता है. तमिलनाडु में तो स्थिति और भी भयानक है. यहां 50 से 75 फीसदी महिलाओं की मौत के पीछे आत्महत्या है, वहीं पुरुषों में यह 25 फीसदी की मौत का कारण है. पुरुषों और स्त्रियों में यहां भी असमानता साफ मिलती हैं जहां देश के एक लाख पुरुषों की मौत में से 58 की मौत का कारण आत्महत्या है वहीं स्त्रियों में यह आंकडा 148 का है. क्या वे ज्यादा भावुक होती है इसलिए? या फिर उनके पास जीवन से जद्दोजहद करने के हथियार कम हैं? या फिर उनके लिए ऐसे हालात पैदा किए जाते हैं कि उनके लिए और कोई रास्ता न बचे?
कम उम्र की लडकियों और लडकों में भी यह असमानता है. विभिन्न कारणों से लडकियों में आत्महत्या की दर ज्यादा है बनिस्वत लडकों के. लडकियों में ज्यादातर की मौत के पीछे परीक्षा में फेल होना, पारिवारिक विवाद और पसंद के लडके से शादी न कर पाना बडे कारण हैं. यहां पारिवारिक विवादों में लडकियों को बोझ समझने की प्रवृत्ति भी शामिल है.
मुझे ऊपरी तौर पर पारिवारिक विवाद, जिसमें घरेलू हिंसा बच्चों और महिलाओं दोनों के साथ होने वाली घरेलू हिंसा और दबाव मुझे बडा कारण लगता है आत्महत्या का. क्या एकल परिवारों की और जाता भारतीय समाज इसके पीछे कारण हो सकता है. संयुक्त परिवारों में पारिवारिक मसले एक साथ बैठकर सुलझाए जाते थे. अब व्यक्ति जिसे परिवार का मुखिया कहा जाना चाहिए अकेले झेलता है. वह अपनी दिक्कतों को ठीक से न समझ पाने के बाद घर में गुस्सा उतारता होगा और नतीजतन पूरा परिवार परेशान होता होगा.
दूसरा बडा कारण आर्थिक तंगी भी है. नए समाज ने हमें जो दिक्कतें बख्शी हैं उनमें यह सबसे शानदार है. जब देखो तब हाथ जेबों में कोलंबस हुए जाते हैं. बडे सपनों को भरने वाली छोटी आंखों में तैरने वाला यथार्थ भी इसमें अपनी तरह से काम करता है और नतीजा सांस रुक जाती है.
किशोरों में तो निर्विवाद रूप से पढाई का प्रेशर और असफल प्रेम ही वे कारण हैं, जो एक संभावनाशील जीवन का अंत कर देते हैं. इसके आगे कुछ कहा जाना बचता है क्या?
इस मसले पर सोचते हुए मुझे राजेश जोशी की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं.
मैं चाहता हूं /आत्महत्या करता हुआ आदमी दौड पडे /जीवन की ओर /कहता हुआ- कुछ नहीं है जीवन से ज्यादा सुंदर, अमर और प्यारा /जब आए वह मेरी कविता में...
क्या ऐसी कविता लिखी जा सकती है दोस्तो?.... लिखी जानी चाहिए.
इसके बाद कुछ नाम लिखें हैं. इनमें कई नाम एक के ऊपर एक लिखे हैं और एक जगह लिखा है तारीखों में साथ छोड गए जो. जो नाम पढने में आ रहे हैं उनके बीच में कुछ चेहरे बनाने की कोशिश भी की गई है. इससे पता चलता है कि हमारी कविता का लडका चित्रकला में अपनी दखल रखता था. उसके कई शब्द भी चित्रकला के ही नमूने हैं. फिलहाल इतना ही.