उसके कुछ दोस्तों और करीबियों ने प्रेम किया/ और उसने भी किया किताबी नहीं हकीकत का प्रेम किया/ उसकी आंखों में सपने तो तैरते ही थे/ इनमें एक और सपना साथ साथ तैरने लगा/ वह उन दोस्तों के प्रेम के रंगों को देखकर चमत्कृत होता/ फिर अपने प्रेम को देखता/ धीरे धीरे उसके दोस्तों के प्रेम सफल होते गए/ वह अकेला खडा देखता रहा प्रेम की मंजिलों को थमते कदमों के साथ/ सुखी संसारों के घटाटोप मेंवह मनमौज पर सवार एक हिरन की सवारी करता हर रात/ और सुबह तक चांद से बातें करते हुए अपने
प्रेम के छूट जाने की कल्पना पर सिहर उठता/ वह बार बार पहुंचा उन दोस्तों के संसार में जिनके प्रेम सफल हुए थे/ उन्होंने आत्मीयता दिखाई/ उसे समझाया/ उसे बताया/ पुचकारा/ फिर संवारा/ वह धीरे धीरे अपने प्रेम के अकेलेपन से बाहर आने लगा.
जिंदगी की लंबाई उसे कचोटती थी बहुत पहले से उसे जिंदगी को बीच में से मोड लिया/ अब वह अपनी ही जिंदगी को एक साथ दोहरा करके जीने लगा/ इस तरह उसे लगता था वक्त जल्दी कट जाएगा/ वह स्वार्थी था और अव्वल दर्जे का स्वार्थी था/ जिंदगी का पूरा का पूरा हिस्सा किसी को देना नहीं चाहता था/ और खुद उसे जीना आ नहीं रहा था/ वह अपनी सांसों की कीमत पर सिर्फ अपना हक जताते हुए भूलने लगा था/ कि मां ने कितनी रातें उसके लिए आंखों में काटी/ पिता ने कितनी सडकों की खाक छानी/ बहन ने कितनी बलाएं टाली/ और भाई ने कितने दुखों को खुद पर झेला/ वह दिल्ली में था, वह कल्कत्ता में था/ वह घाटमपुर में था/ वह हिरौली में था/ वह वहीं नहीं था जहां उसे होना चाहिए था/ वह उन सभी जगहों पर था जहां उसके अलावा सबको होना चाहिए था.