सचिन श्रीवास्तव
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने हाल ही में एक बयान देकर बरसों पुरानी बहस को छेड़ दिया है। प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों और आईआईटी संस्थानों में 40 प्रतिशत शिक्षकों की कमी है। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की मांग के बीच आधारभूत ढांचे की कमी पर हमेशा से हमला होता रहा है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े उच्च शिक्षा तंत्र की यह ऐसी खामी है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। बेहतर शिक्षक और पर्याप्त बजट के अभाव से जूझ रही भारतीय उच्च शिक्षा कब अपने स्वर्णिम युग को देखेगी, यह कोई नहीं जानता।
दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में नहीं कोई संस्थान
हाल ही में भारत सरकार की ओर से देश के उच्च शिक्षा संस्थानों की रेटिंग जारी की गई है। असल में 2015 के पहले देश का कोई भी विश्वविद्यालय दुनिया के श्रेष्ठ संस्थानों में शुमार नहीं था। 2015 में भी महज दो भारतीय संस्थान शीर्ष 200 में जगह बना सके। ऐसे में अपनी रेटिंग के जरिये केंद्र सरकार ने देश की उच्च शिक्षा में प्रतिस्पर्धा का भाव तो जगाने की कोशिश की है, लेकिन आधारभूत सुविधाओं का अभाव सभी
संस्थानों में एक जैसा है।
कॉलेज नामांकन कम
11 फीसदी छात्र ही पहुंच पाते हैं कॉलेज तक भारत में।
83 प्रतिशत है अमरीका में कॉलेज पहुंचने वाले स्कूली छात्रों का आंकड़ा।
800 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं देश में
40 हजार से ज्यादा कॉलेज हैं देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से संबद्ध
2.26 लाख करोड़ रुपए के निवेश की दरकार है उच्च शिक्षा क्षेत्र को तत्काल
33 प्रतिशत पैसा ही मिल पाता है उच्च शिक्षा क्षेत्र को जरूरत का
02 प्रतिशत उच्च शिक्षा में आने वाले छात्रों को ही मिल पाता है देश में शोध का मौका
10 में से 04 भारतीय इंजीनियरिंग छात्र ही है नौकरी पाने के योग्य। नैसकॉम और मैकिन्से के मुताबिक।
90 प्रतिशत कॉलेजों और 70 प्रतिशत विश्वविद्यालयों का शैक्षणिक स्तर खस्ता। राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद का अध्ययन।
30 प्रतिशत से ज्यादा शिक्षकों की कमी है देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में
05 से 10 साल में बदला जाता है भारतीय विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम। इसलिए पिछड़ जाते हैं छात्र।
30 साल से नहीं बदला देश के कई विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम
अच्छे कॉलेजों यूनिवर्सिटी की कमी
देश की उच्च शिक्षा का बोझ बेहद कम संस्थानों पर है। इस कारण से इनमें प्रतिस्पर्धा का स्तर कड़ा है। आईआईटी संस्थानों में प्रवेश के लिए प्रति सीट 3 से 4 हजार छात्र होड़ लगाते हैं। यहां तक की सामान्य कॉलेजों में दाखिले के लिए 99 प्रतिशत तक अंक की दरकार होती है। इस कारण से छात्रों में निराशा का स्तर भी बढ़ रहा है।
43 हजार करोड़ रुपए खर्च विदेशों में पढ़ाई पर
भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों के खस्ता हाल के कारण छात्रों ने विदेशी संस्थानों में दाखिले लेना शुरू किया। अब आलम यह है कि हर साल देश के छात्र करीब 43 हजार करोड़ रुपए विदेशी संस्थानों में पढ़ाई के लिए खर्च करते हैं। दूसरी तरफ देश के 80 प्रतिशत छात्रों की पहुंच विदेशी संस्थानों तक नहीं है। ऐसे में शैक्षणिक खाई लगातार चौड़ी हो रही है।
शोध की कमी भारत में
उच्च शिक्षा में शोध का महत्व सबसे ज्यादा है। लंबे समय से भारत में शोध का बजट बढ़ाए जाने की मांग की जाती रही है। इस मांग के विपरीत भारत सरकार ने हाल ही में शोध पर लगाम कसनी शुरू कर दी है। एमफिल और पीएचडी की सीटों पर नियंत्रण के अलावा शोधों की संख्या में भी कमी की गई है।
33 प्रतिशत शोध विज्ञान और इंजीनियरिंग क्षेत्र में अमरीका में होते हैं।
03 प्रतिशत हिस्सेदारी है शोध प्रकाशन में भारत की।
12 करोड़ आबादी को दरकार उच्च शिक्षा की
देश में इस वक्त 18 से 23 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 12 करोड़ से ज्यादा है। जबकि देश के संस्थान मिलकर इनमें से महज 5 प्रतिशत युवाओं को ही उच्च शिक्षा मुहैया करा सकते हैं। ऐसे में एक बड़ी आबादी को अपने हुनर और प्रतिभा को निखारने का मौका ही मिलने की उम्मीद ही बेहद कम है।
हर स्कूली छात्र को कैसे मिले उच्च शिक्षा
स्कूल से निकलने वाला हर भारतीय छात्र उच्च शिक्षा हासिल करे इसके लिए जरूरी है कि देश में विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाई जाए। देश के 15 प्रतिशत स्कूलों छात्रों को पढ़ाने के लिए 1500 नए विश्वविद्यालयों की जरूरत होगी। इस तरह सभी छात्रों के लिए करीब 9000 उच्च शिक्षण संस्थानों की जरूरत है।
2003 की सिफारिशें नहीं हुईं पूरी
देश में उच्च शिक्षा को संचालित करने वाले सबसे बड़े निकाय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 2003 में उच्च शिक्षा के संबंध में कुछ जरूरी सिफारिशें की थीं। इनमें देश की जीडीपी का 3 प्रतिशत हिस्सा उच्च शिक्षा पर खर्च करने से लेकर प्रबंधन और रोजगारपरक शिक्षा तक के कई सुझाव शामिल थे। इन पर अब तक अमल नहीं हुआ है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने हाल ही में एक बयान देकर बरसों पुरानी बहस को छेड़ दिया है। प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों और आईआईटी संस्थानों में 40 प्रतिशत शिक्षकों की कमी है। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की मांग के बीच आधारभूत ढांचे की कमी पर हमेशा से हमला होता रहा है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े उच्च शिक्षा तंत्र की यह ऐसी खामी है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। बेहतर शिक्षक और पर्याप्त बजट के अभाव से जूझ रही भारतीय उच्च शिक्षा कब अपने स्वर्णिम युग को देखेगी, यह कोई नहीं जानता।
दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में नहीं कोई संस्थान
हाल ही में भारत सरकार की ओर से देश के उच्च शिक्षा संस्थानों की रेटिंग जारी की गई है। असल में 2015 के पहले देश का कोई भी विश्वविद्यालय दुनिया के श्रेष्ठ संस्थानों में शुमार नहीं था। 2015 में भी महज दो भारतीय संस्थान शीर्ष 200 में जगह बना सके। ऐसे में अपनी रेटिंग के जरिये केंद्र सरकार ने देश की उच्च शिक्षा में प्रतिस्पर्धा का भाव तो जगाने की कोशिश की है, लेकिन आधारभूत सुविधाओं का अभाव सभी
संस्थानों में एक जैसा है।
कॉलेज नामांकन कम
11 फीसदी छात्र ही पहुंच पाते हैं कॉलेज तक भारत में।
83 प्रतिशत है अमरीका में कॉलेज पहुंचने वाले स्कूली छात्रों का आंकड़ा।
800 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं देश में
40 हजार से ज्यादा कॉलेज हैं देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से संबद्ध
2.26 लाख करोड़ रुपए के निवेश की दरकार है उच्च शिक्षा क्षेत्र को तत्काल
33 प्रतिशत पैसा ही मिल पाता है उच्च शिक्षा क्षेत्र को जरूरत का
02 प्रतिशत उच्च शिक्षा में आने वाले छात्रों को ही मिल पाता है देश में शोध का मौका
10 में से 04 भारतीय इंजीनियरिंग छात्र ही है नौकरी पाने के योग्य। नैसकॉम और मैकिन्से के मुताबिक।
90 प्रतिशत कॉलेजों और 70 प्रतिशत विश्वविद्यालयों का शैक्षणिक स्तर खस्ता। राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद का अध्ययन।
30 प्रतिशत से ज्यादा शिक्षकों की कमी है देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में
05 से 10 साल में बदला जाता है भारतीय विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम। इसलिए पिछड़ जाते हैं छात्र।
30 साल से नहीं बदला देश के कई विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम
अच्छे कॉलेजों यूनिवर्सिटी की कमी
देश की उच्च शिक्षा का बोझ बेहद कम संस्थानों पर है। इस कारण से इनमें प्रतिस्पर्धा का स्तर कड़ा है। आईआईटी संस्थानों में प्रवेश के लिए प्रति सीट 3 से 4 हजार छात्र होड़ लगाते हैं। यहां तक की सामान्य कॉलेजों में दाखिले के लिए 99 प्रतिशत तक अंक की दरकार होती है। इस कारण से छात्रों में निराशा का स्तर भी बढ़ रहा है।
43 हजार करोड़ रुपए खर्च विदेशों में पढ़ाई पर
भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों के खस्ता हाल के कारण छात्रों ने विदेशी संस्थानों में दाखिले लेना शुरू किया। अब आलम यह है कि हर साल देश के छात्र करीब 43 हजार करोड़ रुपए विदेशी संस्थानों में पढ़ाई के लिए खर्च करते हैं। दूसरी तरफ देश के 80 प्रतिशत छात्रों की पहुंच विदेशी संस्थानों तक नहीं है। ऐसे में शैक्षणिक खाई लगातार चौड़ी हो रही है।
शोध की कमी भारत में
उच्च शिक्षा में शोध का महत्व सबसे ज्यादा है। लंबे समय से भारत में शोध का बजट बढ़ाए जाने की मांग की जाती रही है। इस मांग के विपरीत भारत सरकार ने हाल ही में शोध पर लगाम कसनी शुरू कर दी है। एमफिल और पीएचडी की सीटों पर नियंत्रण के अलावा शोधों की संख्या में भी कमी की गई है।
33 प्रतिशत शोध विज्ञान और इंजीनियरिंग क्षेत्र में अमरीका में होते हैं।
03 प्रतिशत हिस्सेदारी है शोध प्रकाशन में भारत की।
12 करोड़ आबादी को दरकार उच्च शिक्षा की
देश में इस वक्त 18 से 23 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 12 करोड़ से ज्यादा है। जबकि देश के संस्थान मिलकर इनमें से महज 5 प्रतिशत युवाओं को ही उच्च शिक्षा मुहैया करा सकते हैं। ऐसे में एक बड़ी आबादी को अपने हुनर और प्रतिभा को निखारने का मौका ही मिलने की उम्मीद ही बेहद कम है।
हर स्कूली छात्र को कैसे मिले उच्च शिक्षा
स्कूल से निकलने वाला हर भारतीय छात्र उच्च शिक्षा हासिल करे इसके लिए जरूरी है कि देश में विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाई जाए। देश के 15 प्रतिशत स्कूलों छात्रों को पढ़ाने के लिए 1500 नए विश्वविद्यालयों की जरूरत होगी। इस तरह सभी छात्रों के लिए करीब 9000 उच्च शिक्षण संस्थानों की जरूरत है।
2003 की सिफारिशें नहीं हुईं पूरी
देश में उच्च शिक्षा को संचालित करने वाले सबसे बड़े निकाय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 2003 में उच्च शिक्षा के संबंध में कुछ जरूरी सिफारिशें की थीं। इनमें देश की जीडीपी का 3 प्रतिशत हिस्सा उच्च शिक्षा पर खर्च करने से लेकर प्रबंधन और रोजगारपरक शिक्षा तक के कई सुझाव शामिल थे। इन पर अब तक अमल नहीं हुआ है।