30 बरस पहले लिखी गई थी आम आदमी पार्टी के लिए पहली गजल

सचिन श्रीवास्तव
वैसे तो आम आदमी पार्टी को बने हुए अभी महज 5 साल ही हुए हैं, लेकिन तथ्य बताते हैं कि आम आदमी पार्टी का पहला जिक्र साहित्य में करीब तीन दशक पहले मिलता है। जी हां, यह सच है। विश्वास (अरे वो वाला विश्वास नहीं, यकीन वाला विश्वास) नहीं होता तो सुनिये।

पयाम सईदी का नाम सुना है न। वही पयाम साहब जिनकी कई उम्दा नज्मों और गजलों के सहारे चंदन दास से लेकर जगजीत सिंह तक कई गायक युवाओं के बीच पैठ बनाते चले गए। नहीं जानते। अरे भाई
"हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं..."
"काँटों से दामन उलझाना मेरी आदत है..."
"तेरा चेहरा है आईने जैसा...."
"इंतहा आज इश्क़ की कर दी....."
ये गजलें पयाम साहब की ही हैं। चंद हिंदी फिल्मों के लिए भी बीती सदी के आखिरी दशक में उन्होंने नगमे लिखे थे। तो पयाम साहब की एक गजल है, जिसमें पहली बार आम आदमी पार्टी का जिक्र आता है। इस गजल से ये बात भी साबित होती है कि साहित्यकार, शायर, ​कवि भविष्य दृष्टा होते हैं। तभी तो पयाम साहब ने भविष्य के गर्भ में रही एक पार्टी के लिए उस वक्त गजल लिख दी।

गजल कुछ यूं हैं---

साथ छूटेगा कैसे मेरा आप का
जब मेरा दिल ही घर बन गया आप का
(देखिए किस खूबसूरती से पयाम साहब कह रहे हैं कि जो आम आदमी पार्टी का हो गया वह हो गया, फिर उसके दिल में आप बस जाती है।)

लीजिए दूसरा मिसरा पढ़िए

आप आए बड़ी उम्र है आप की
बस अभी नाम मैंने लिया आप का
(आम आदमी पार्टी को बस लोगों तक जाने की जरूरत है। जहां भी आप कार्यकर्ता जाते हैं, उन्हें यही जिक्र मिलता है, कि साहब हम तो बस आपका ही इंतजार कर रहे थे।)

डर है मुझको न बदनाम कर दे कहीं
इस तरह प्यार से देखना आप का
(यह मिसरा पयाम साहब ने आज के हालात का अंदाजा लगाते हुए तीस बरस पहले लिख डाला था। यानी जिसको आप ज्यादा प्यार से दे​खेगी, उसे केंद्र सरकार के कोप का सामना करना पड़ेगा। शायर की सोच का जवाब नहीं, भविष्य को पहले ही देख लिया था।)

अगला शेर देखिए
आपकी इक नजर कर गई क्या असर
मेरा दिल था मेरा हो गया आपका
(यह भविष्य के भी भविष्य की सोच है। यानी एक बार आप ने जिसको अपना बना लिया, फिर उसका सब कुछ आप का।)

तो यह गीत आम आदमी पार्टी के लिए तीन दशक पहले लिखा गया था। चंदन दास के "तमन्ना" नामक एलबम में आपमें से जो मौसिकी के शौकीन हैं, उन्होंने सुना होगा। और जो उम्र के चौथे दशक में कुलांचे भर रहे हैं, वे तो गजल में आए आप के जिक्र को अपना मेहबूब ही मानते होंगे।
तो जरा अपना इतिहास ज्ञान दुरुस्त कीजिए और आज की एक पार्टी के लिए लिखी गई तीन दशक पहले की इस नज्म को सुनिये और दूसरों को भी सुनाइये।