सचिन श्रीवास्तव
तीन खबरों के शीर्षक देखिए और तारीखों पर नजर डालिये
29 सितंबर: आम आदमी पार्टी की युवा शक्ति के दो नेता छतरपुर में गिरफ्तार
30 सितंबर: आप के प्रदेश उपाध्यक्ष को शांति भंग की आशंका के तहत किया गिरफ्तार
1 अक्टूबर: ग्वालियर में आप के प्रदेश संगठन सचिव समेत 7 गिरफ्तार
क्या यह महज संयोग है कि तीन दिनों के भीतर एक प्रदेश जो चुनावी दौर में है, उसकी एक उभरती हुई ताकत के 30 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाए। या यह संयोगों का भ्रम है।
असल में भारतीय राजनीति इस वक्त जिस मोड़ पर खड़ी हैं, वहां से नैतिकता, मूल्य, वैचारिक निरपेक्षता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया जैसी शब्दावली की बहुत जगह अब आगे दिखाई नहीं देती है। इसके बावजूद एक हल्की सी डोर, एक छीनी सी पर्देदारी महसूस की जाती है। इस पर्देदारी में नैतिकता को तिलांजलि देते हुए, मूल्यों का गला घोंटते हुए, वैचारिक निरपेक्षता को खूंटी पर टांगते हुए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रौंदते हुए भी सत्ता से यह उम्मीद की जाती है कि वह राजनीतिक विरोध के संवैधानिक अधिकार को अक्षुण्य नहीं बनाए रखेगी तो कम से कम भौथरा नहीं होने देगी। अफसोस आज मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं हो रहा है।
जय हिंद
तीन खबरों के शीर्षक देखिए और तारीखों पर नजर डालिये
29 सितंबर: आम आदमी पार्टी की युवा शक्ति के दो नेता छतरपुर में गिरफ्तार
30 सितंबर: आप के प्रदेश उपाध्यक्ष को शांति भंग की आशंका के तहत किया गिरफ्तार
1 अक्टूबर: ग्वालियर में आप के प्रदेश संगठन सचिव समेत 7 गिरफ्तार
क्या यह महज संयोग है कि तीन दिनों के भीतर एक प्रदेश जो चुनावी दौर में है, उसकी एक उभरती हुई ताकत के 30 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाए। या यह संयोगों का भ्रम है।
असल में भारतीय राजनीति इस वक्त जिस मोड़ पर खड़ी हैं, वहां से नैतिकता, मूल्य, वैचारिक निरपेक्षता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया जैसी शब्दावली की बहुत जगह अब आगे दिखाई नहीं देती है। इसके बावजूद एक हल्की सी डोर, एक छीनी सी पर्देदारी महसूस की जाती है। इस पर्देदारी में नैतिकता को तिलांजलि देते हुए, मूल्यों का गला घोंटते हुए, वैचारिक निरपेक्षता को खूंटी पर टांगते हुए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रौंदते हुए भी सत्ता से यह उम्मीद की जाती है कि वह राजनीतिक विरोध के संवैधानिक अधिकार को अक्षुण्य नहीं बनाए रखेगी तो कम से कम भौथरा नहीं होने देगी। अफसोस आज मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं हो रहा है।
30 सितंबर को मैं छतरपुर में था और वहां आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं, लेकिन फिर भी चेहरे दृढ़ थे। उन्हें पता नहीं था कि वे कितनी देर खुली हवा में सांस ले रहे हैं। उनके घरों पर दबिश दी जा रही थी। कई कार्यकर्ताओं ने अपने फोन बंद कर रखे थे। खुद आप के प्रदेश उपाध्यक्ष अमित भटनागर से बातचीत के दौरान कई बार रुकना पड़ रहा था, क्योंकि उनके बोले गए वाक्य का एक हिस्सा पूरा होने से पहले ही एसडीएम, एसपी और अन्य अधिकारियों के फोन आ जाते थे। जैसे तैसे मैंने बतौर पत्रकार अपनी बातचीत पूरी की और अमित बिजावर की ओर निकल गए। दोपहर होते-होते खबर मिली कि उन्हें बिजावर में गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही 14 अन्य साथियों को भी। उनसे पहले दो अन्य युवा नेताओं को 29 तारीख को गिरफ्तार किया गया था।
वजह क्या थी: वह यह कि अमित और उनके साथी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के छतरपुर आगमन पर उनके सामने क्षेत्र के विकास से संबंधित कुछ मुद्दे रखना चाहते थे, और उसके लिए प्रदर्शन कर रहे थे। यानी एक लोकतांत्रिक समाज में शांति पूर्ण प्रदर्शन का हक एक नागरिक, एक राजनीतिक कार्यकर्ता को नहीं है।
अब करते हैं आज की बात। अभी अभी ग्वालियर से खबर आई है कि आप के प्रदेश संगठन सचिव हिमांशु कुलश्रैष्ठ, जोन सचिव शुभम गुप्ता और ग्वालियर पूर्व की प्रत्याशी मनीक्षा तोमर और अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। ये तीनों अपने कुछ अन्य साथियों के साथ लाठीचार्ज से पीडि़त परिवारों को मिलने पहुंचे थे। ग्वालियर की फूटी कॉलोनी हुरावली में पिछले दिनों लाठीचार्ज हुआ था और यहां प्रशासन ने कई घर तोड़े थे।
तो गिरफ्तारी की वजह: जिनके घर तोड़े गए, जिन पर लाठीचार्ज किया गया, उनसे मिलने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता क्यों पहुंचे। यह उनका अपराध था।
तीनों घटनाओं में करीब 30 गिरफ्तारी हुईं। सवाल यह नहीं है कि यह गिरफ्तारी क्यों की गईं। राजनीतिक जमीन पर खड़ा हर व्यक्ति गिरफ्तारी के महत्व और उसके असर को जानता है। फिर भी क्या एक प्रदेश जो चुनाव के दौर में जा रहा है, वहां की उभरती हुई राजनीतिक पार्टी को, जो पिछले पांच साल में देश की सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ती हुई पार्टी है। उसे यह कहीं न कहीं दबाने, मुकदमों में उलझाने, चुनाव प्रचार को धीमा करने की कोशिश नहीं है! सवाल इससे भी बड़ा है कि क्या विधानसभा चुनावों की ओर तेजी से बढ़ रहे प्रदेश में राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए ही सही, अगर कोई प्रदर्शन, विरोध या पीडि़त परिवारों से मुलाकात करता है, तो क्या पुलिस के जरिये उन्हें तोडऩे, डराने, उलझाने की कोशिश की जानी चाहिए?
क्या यह लोकतंत्र के लिए सही है?
जवाब हम सभी जानते हैं। दिक्कत यह है कि किसी पार्टी, किसी विचार, किसी राजनीतिक आंदोलन की आड़ में हम सही जवाब से बचते हैं। यह बचना जारी रहा था तो वह दूर नहीं जब राजनीतिक दल सत्ता की ताकत के साथ बदलाव की हर उम्मीद को उसके शैशवकाल में ही कुचल देंगे।
जय हिंद