रांची मेरी रांची : बंदे भी हो गए हैं खुदा तेरे शहर में



दो हजार तीन का 17 सितंबर। यह एक दिन था. या किसी पहाडी से लुडकता सूरज का गोला. किसी भैंस की पीठ पर बैठा बगुला या फिर टिटहरी की दो टांगों पर आसमान टिकाने का जज्बा, जो भी हो यह रांची में मेरा पहला दिन दिन था, जिसे शुरुआत कहने की गलती नहीं की जा सकती. अमूमन चीजें एक दूसरे से इतनी गुंथीं होती हैं कि हम उन्हें एक बार में देखकर कह ही नहीं सकते इनमें कोई अलग अलग जैसी चीज है.
दीपा टोली के एक दो मंजिला मकान में बैठा में जागरण, हिंदुस्तान और प्रभात खबर को खबरों में तोलने की धुरंधरों की अदा सीख रहा था। रंजीत जी अलसाए से जाग चुके थे और अखिलेश जी ने चाय के लिए पानी चढा दिया था. पीछे से विजय झा जी झांक रहे थे. पहली बार में वे पुष्य मित्र की तरह लगे. कोर्स खत्म हुए अभी चार महीने ही हुए थे, सो हम लोगों में समानता ही तलाश कर पाते थे और उसे पत्रकारिये आंख का लेबल देकर फूलकर कुप्पा होना जानते थे. संतोष को मैंने टांग मारी और अपनी आंख से देखी जादूगरी धीरे से कह डाली. चेहरे पर छपी औचकता को भांपते हुए अखिलेश ने विजय जी से मिलवाया वे उस दिन दिनेश की छुट्टी होने के कारण कारोबार पेज पर थे और वर्ल्ड बैंक के आर्थिक विशेषज्ञ की सी शक्ल में खबरों को चीर रहे थे. उनके हाथ भाषा का पूरा साथ दे रहे थे और प्रभावित कर रहे थे. इस समय तक हम दोनों को भूख लग चुकी थी. 24 घंटे की मजेदार यात्रा में हमने रेलवे के वेंडर की दया से खूब खाया था लेकिन शरीर के लिए पर्याप्त मात्रा में उर्जा नहीं मिली थी. सो केले और ब्रेड का नाश्ता हमने भरपूर किया.
यहां पहली बर चिनिया केला खाया। यह आम केले से साइज में बेहद छोटा और हलका खट्टापन लिए होता है. रांची की यह पहली विशेषता थी यानी पूरब की विशेषता जिससे में वाकिफ हुआ. उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद से आगे के पूरब में मैंने पहली बार कदमबोशी की थी. 12 बजे का समय हरिवंश जी से मिलने का तय हुआ. इससे पहले नहाने की ऊबाउ रस्म को मैंने लाल लकीर से काट डाटा और मुंह धोकर ही तीन दिन की गर्द चेहरे से पोंछ ली. अब हमें निकल पडना था संपादक जी के सामने हाजिर होने के लिए जहां विनय भूषण एक ट्रांसलेशन से हमारी अंग्रेजी जांचने वाले थे और बैजनाथ मिश्र जी निजीकरण पर लेख लिखवाकर राजनीतिक समझ के साथ भाषा की जादूगरी का खाका खींचने को कमर कसे थे. यही श्रीनिवास जी भी होंगे एडिटोरियल की गलतियों पर लाल घेरा बनाते खाना खाने का काम करने वाले श्रीनिवास समाजवादी न होते हो शर्तिया किसी झील के किनारे कविता लिखने में मशरूफ होते.
यह है इंट्रो। अब आप बताईये कि इन सभी नामों का जो उल्लेख आया है उनमें से किसके बारे में सुनना चाहेंगे. किसके चहरे की गर्द पोंछ दूं. यहां जानबूझकर सत्यप्रकाश नाम के जीव का जिक्र नहीं किया है रांची के कोकर में पाए जाने वाले इस प्राणी के गुण पाए जाने का स्थान इसकी इटिंग हैविट और खिलंदडे अंदाज के अलावा सिगरेट के कश से सत्तू की चाय तक का मजमून तो आप फ्री गिफ्ट की तरह पा लेंगे.
कमेंट कीजिए की इन नामों में से किसके बारे में कल सुबह पढना चाहेंगे
विदा।
सचिन श्रीवास्तव
09780418417