अब उसे एसएमएस नहीं करना था। एक ठंडी बातचीत के बाद गुंजाइश नहीं बची थी कि वे बात करते. बहिरंग की सीढियों पर बैठकर उसने आखिरी एसएमएस किया था. जो दूसरे सेल के इनबॉक्स में पहुंचने तक सारी दुनिया की सैर कर चुका था. उसने एसएमएस पढा, थोडा मुस्कुराई और फिर उदास हो गई. अब किसी एसएमएस की जरूरत नहीं थी. दोनों के ही अपने अपने निजी कमरे थे, जिनमें चुपचाप सिसकते हुए वे कभी आंखें न मिलाने की जिद के साथ बहुत गहरे में खुश थे. अब उनके पास एकांत था. एकांत का संगीत था और बहुत सारे काम थे जिन्हें निपटाया जाना जरूरी था. यह खाली समय की जरूरत थी. एक दिन उसने बातचीत के दौरान कहा था कि हम काम इसलिए करते हैं, ताकि खुद से बचे रहें, कुछ करेंगे नहीं तो खुद से लडेंगे. फिर उसने इस बात को हालिया दुनिया की राजनीति से जोडा था, जिसमें आदमी को ज्यादा से ज्यादा देर तक उलझाये रखा जाता है. बात और बढती अगर वह न कहती कि तुम हर चीज में राजनीति क्यों घुसेड देते हो. वह जवाब देना चाहता था कि राजनीति ही वह धुरी है जिस पर सब कुछ घूम रहा है. फिर वह अचानक हंस दिया. हंसते हुए उसका दाडी से भरे चेहरे पर आंखें जलने बुझने लगती थीं और लडकी को यह बेहद मासूम लगती थीं. लडकी उसकी आंखों में झांकती रही. दोनों चुप थे, यानी बोल नहीं रहे थे. लडका सोच रहा था कि दुनिया में अगर सभी कुछ बेहद आदिम होता तो यह कुर्सी कोई पत्थर होती और यहां जो सीलन भरे कमरे में वे दोनों हैं उसकी जगह खुले मैदान की हवाएं होती या फिर कोई पहाडी का समतल हिस्सा. जबकि ठीक इसी वक्त लडकी अपने ऑफिस के कामों के बारे में सोच रही थी. उसका ख्याल था नौकरी उस पर हावी होती जा रही है और कुछ वक्त निकालने के लिए नौकरी छोड देनी चाहिए. हालांकि ये बात उसने लडके को नहीं बताई थी. लडके को इसमें दिलचस्पी भी नहीं थी. वह इसे लडकी की निजी दुनिया मानता था जिसमें उसकी दखलंदाजी ठीक नहीं थी. आपको अंदाजा हो गया होगा कि दोनों ही एक दूसरे की कद्र करने और एक दूसरे की समझने की जल्दबाजी में माहिर थे. ..... जारी