जगजीत की खामोशी

15 दिन तक जिंदगी से नजरें चुराकर मौत के आगोश में बैठे जगजीत सिंह ने आखिरकार इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इस महान गायक की मौत के चंद घंटों के भीतर ही कला, संगीत और गजल गायिकी की दुनिया में मातम छा गया। पंडित जसराज से लेकर श्रेया घोषाल, राजनीति से लेकर क्रिकेट और प्रधानमंत्री से लेकर सड़क पर चलते आम भारतीय तक के चेहरे मायूसी हैं, और जिंदगी के फलसफे को संगीत के जरिए दिलों तक पहुंचाने वाली अद्भुत शख्सियत की कमी महसूस कर रहे हैं। किसी इंसान की मौत पर दुख होना आम बात है। मशहूर हस्तियों की मौत पर उन्हें शिद्धत से याद करने का चलन भी बहुत पहले से रहा है, लेकिन जगजीत सिंह जैसे कलाकारों के न रहने की बेचैनी ज्याद बड़ी होती है। जो लोग गम और अफसोस से भरे हुए हैं, वे भी जानते हैं कि जगजीत हाड़-मांस के पुतले के रूप में भले ही हमारे बीच मौजूद न रहें, लेकिन उनका काम, उनकी गायिकी, उनकी आवाज हमेशा रहेंगे। फिर अफसोस किस बात का? क्या जगजीत जो कुछ विरासत में आम हिंदुस्तानी के लिए छोड़ गए हैं, उसमें कुछ और इजाफा होने वाला था, या फिर हमें जगजीत से कुछ और उम्मीदें थीं? इन्हीं सवालों के जवाब में जगजीत के न होने का खालीपन छुपा हुआ है। जगजीत हवा के खिलाफ काम करने वालों में शामिल रहे हैं। जगजीत ने जिस दौर में कामयाबी हासिल की, वह संगीत की गिरावट का दौर था, और वे अकेले दम पर कभी निदा फाजली के कलाम के सहारे, तो कभी सुदर्शन फाकिर की इंसानी सोच के साथ, तो कभी किसी गुमनाम शायर की नज्मों को आवाज देकर संगीत और दर्शन का वह विन्यास रचते रहे, जिसमें हर हिंदुस्तानी खुद को महसूस करता था। जगजीत की खासियत यही है। अपने समय में उन्होंने गजल को महफिलों, कन्सर्ट और अदबी हैसियत से उतारकर आम हिंदुस्तानी के दिल में जगह दिलाई और गुनगुनाने की तौफीक और तमीज भी पैदा की। श्रीगंगानगर (राजस्थान) से वाया जालंधर, मुंबई तक के सफर में जगजीत ने सिर्फ दोस्त बनाए थे। अपने बुरे से बुरे दिनों में भी वे टूटे नहीं। बेटे विवेक की मौत के बाद उनकी पत्नी चित्रा ने गायिकी से नाता तोड़ लिया, लेकिन अंग्रेज कवि शैली की उक्ति को चरितार्थ करते हुए जगजीत ने दर्द को कलात्मक अभिव्यक्ति दी। सही मायनों में जगजीत सिंह भारतीय युवाओं के भावनात्मक गुरु थे, जिन्होंने अपनी गायिकी के सहारे हिंदुस्तान को जिंदा रहने का हौसला दिया और जीवन का नजरिया भी। उनका न रहना एक ऐसी आवाज का खालीपन है, जो पूरी उम्र इंसानियत को राह दिखाती रही। सादर नमन।