इराक के तजुर्बे से हिचकिचाहटइराक पर आजमायी तरकीब को अमेरिका ईरान पर भी आजमाना चाहता है। लेकिन परमाणु हथियारों के निर्माण की कोशिशों का आरोप लगाकर प्रतिबंधों के जरिये ईरान को भीतर से कमजोर कर उसे फौज के दम पर जीत लेने के मंसूबों में इराक का तजुर्बा ही अमेरिका को अनिर्णय की स्थिति में रखे हुए है।
दरअसल 1 ट्रिलियन (1000000000000) डॉलर से ज्यादा फूंक डालने के बावजूद, सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ाने के बावजूद, लाखों मासूम इराकी लोगों, बच्चों, औरतों, बुजुर्गों को लाशों में बदल डालने और अपने सैकड़ों `बहुमूल्य´ सैनिकों की जानें गंवा देने के बावजूद इराक पर पूरी तरह से अमेरिका आज भी कब्जा नहीं कर सका है। अपनी आजादी के छिनने और अपनी दुनिया के उजड़ने के बाद जो इराकी लोग ज़िन्दा बचे हैं, वे चुपचाप मातम नहीं मना रहे हैं। वे जैसे भी मुमकिन है, बन्दूकों, बमों, या आत्मघाती तरीकों की हद तक जाकर भी अमेरिकी फौज से बदला ले रहे हैं। और लाखों की तादाद में मारे जाने के बावजूद अमेरिका के प्रति भयानक गुस्से से भरे ऐसे लोग अगर करोड़ों में न भी हों तो भी लाखों में तो हैं हीं। एक लिहाज से इराक अमेरिकी और अमेरिका के मित्र देशों के फौजियों के लिए गले की हड्डी बन चुका है। शायद ऐसे ही किसी मौके के लिए तुकीZ के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी कवि नाजिम हिकमत ने कहा होगा ``गिरफ्तार हो जाना अलग बात है, खास बात है आत्मसमर्पण न करना।´´
अमेरिकी रणनीतिकार जानते हैं कि ईरान ईराक से तीन गुना बड़ा देश है। ईरान की आबादी ईराक से दोगुनी से भी ज्यादा है। मौलानाओं की धार्मिक सत्ता की वजह से मजहबपरस्ती भी ज्यादा है और इसलिए अमेरिकाविरोधी भावनाएं भी ज्यादा उग्र हैं। ईरान पर सीधा हमला करने जैसा कदम उठाने की हिम्मत अमेरिका के फौजी रणनीतिज्ञों की नहीं हो पा रही है।
इसीलिए परमाणु हथियारों के निर्माण की कोशिशें का आरोप ईरान पर मढ़कर कुछ और प्रतिबंध लगाकर अमेरिका ईरान को या तो इतना कमजोर कर देना चाहता है कि जब उसकी फौजें ईरान में दाखिल हों तो न्यूनतम प्रतिरोध का सामना करना पड़े। या फिर, जैसा कि अनेक अमेरिकी दक्षिणपन्थी बुद्धिजीवी बराक ओबामा को सलाह दे रहे हैं कि वो ईरान को इराक की तरह तहस-नहस करने के मंसूबों को छोड़ वहां अयातुल्ला अली खामैनी और अहमदीनेजाद की हुकूमत का तख्तापलट करवाकर उसकी जगह किसी अमेरिकी फर्माबरदार सरकार को गद्दीनशीन करवाने की हिकमत करें।
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(समाजवाद के यकीनी स्वप्न को आंख में पालने वाले विनीत यांत्रिकी में पत्रोपाधि के बाद बारास्ता पत्रकारिता आंदोलनों में शरीक हुए। नर्मदा बचाओ आंदोलन से गहरा जुडाव। मार्क्सवादी दुनिया के पैरोकार। इन दिनों भारतीय कृषि पर एक विस्तृत अध्ययन करने वाली टीम के कोर मेंबर्स में से एक।)