इतनी तो बदली दुनिया इतना तो हुए बेहतर मारकाट के वीभत्स इतिहास लूट के शातिरपन और शोषण के कई तरीकों कर ही दिया बेनकाब
बैलगाडी से हवाईजहाज का सफर यूं तो तय नहीं किया अब तो कुछ ही दूर है चांद रहेंगे वहां, चकमक चांदनी के दरीचों पर कुंलाचे भरते हुए करेंगे प्रेम इसी दुनिया से जिसका चौथाई हिस्सा डूबा है लबालब पानी में जैसे डूबे हैं हम प्रेम में
पहुंच बढ रही है सुविधाओं तक लोगों की चमकते शहरों में रह रही है दुनिया की 30 फीसदी आवाम गांवों में भी पहुंच चुके हैं मोबाइल
कितना अच्छा होता अगर होती बदलाव की यह बयार इतनी ही सीधी, सपाट और सम्मोहित करने वाली अभी अभी आई रपटें दुनिया की 40 फीसदी आवाम के भूखे पेट दिखा रही हैं गुजरती हुई हवा अहसास दिला रही है अपनी गर्मी का कोपनहेगन में जुटी भीड को ठेंगा दिखा दिया शांति के सबसे बडे पुरस्कार से सम्मानित किए गए राष्ट्रपति ने
इतना ही होता तो कर लेते यकीन कि विरोध की आवाजें हैं तो बदल ही जाएगा वक्त लेकिन देखिए तो किस निर्लज्जता से डिस्को थेक में नाच रहे हैं लिपे पुते अधनंगे जिस्म किस शान से गुजर रही हैं भारी भरकम कारें जबकि बिल्कुल इसी वक्त दो जून की रोटी के लिए उडीसा से लेकर मोजाम्बिक तक और ठंड से कंपकपाते साइबेरिया से लेकर पसीने से लथपथ तमिलनाडु तक पेट और पीठ एक हो गये हैं जैसे सारी की सारी तीसरी दुनिया
अब इसे यकीन कहें या भोलापन बदलाव की हल्की आहट से चीख पडते हैं हम खुशी से भर उठते हैं चेहरे कि उम्मीद बाकी है कि और बेहतर होगी दुनिया बस जो चुप बैठे हैं उनकी आवाज का इंतजार है!!!!
सचिन श्रीवास्तव
मूलत: घुमक्कड़। इतिहास, दर्शन, सामाजिक सैद्धांतिकी, तकनीक, सोशल मीडिया, कला, साहित्य, फिल्म और क्रिकेट के अध्ययन में गहरी दिलचस्पी। संविधान, न्याय, लोकतंत्र के साथ तकनीक की राजनीति की परतें खोलने की कोशिश। मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के ओंडेर गांव में जन्म। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मुंगावली और गंज बासौदा में। किशोरवय में भारतीय जन नाट्य मंच (इप्टा) से जुड़ाव। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि, भोपाल से स्नातक। जालंधर, रांची, मेरठ, कानपुर, लुधियाना, भोपाल, इंदौर, गाजियाबाद, मुंबई, नोएडा आदि शहरों में विभिन्न मीडिया संस्थानों में नौकरियां। डायरी से कविता और कहानी से रिपोर्ताज तक विभिन्न विधाओं में फुटकर लेखन। इन दिनों अपने शहर भोपाल में बतौर सामाजिक—राजनीतिक कार्यकर्ता उम्र को तुक देने की कोशिश... More