यशपाल जीँ हमारे अग्रज हैं, पत्रकारीय भी और सामाजिक भी. यूं उनका मन खेल मैं रमता है लेकिन अपने निजी क्षणों में वे कविताई भी करते हैँ । वे ना तो शौकिया कवि हैं और ना ही आनंदवादी लिख्खाड. उन्हें कविता के पास जाते हुए किसी विशिष्ठ आलंबन कि जरूरत भी नहीं होती है . राह चलते..सड़क पर..बिस्तर पर या फिर किसी स्टोरी पर ही काम करते हुये कहीँ भी कभी भी वे कविता से आंखें चार कर लेते हैं. ज्यादा क्या कहें आप ही पढिये-
अहसान वफ़ा दोस्ती सब भूल गए हैं हम
जिन्दगी की तलाश में जिन्दगी को भूल गए हैं हम
घर छोड़कर रोज़ी तो मिल गई
पर अपने घर का पता भूल गए हैं हम
तारों कि तरह गिनता हूँ नोटों कि गड्डियाँ
घर बीमार मां हैं, यह भूल गए हैं हम
इतने नकाब ओढ लिए हैं यश तुमने
कौन सा चेहरा असली है, यह भूल गए हैं हम
फांककाशी मैं मेरा था जो हमसफ़र
उस दोस्त को भी कभी का भूल गए हैं हम
हूक सी उठती है अब भी तेरे नाम की
कब छूट था तेरा हाथ, यह भूल गए हैं हम