ढाई सदी का इतिहास : 250 साल पूरे किए भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने

सचिन श्रीवास्तव
मौजूदा समय में हम देश के विभिन्न इलाकों के बीच की दूरी से लेकर पहाड़ों, नदियों आदि की सटीक जानकारी रखते हैं। लेकिन यह कैसे संभव हुआ और आधुनिक उपकरणों के बगैर सैकड़ों साल पहले कैसे विकास के विभिन्न काम किए जाते होंगे? यह सोचना ही अपने आप में हैरत में डालने वाला है। किसी भी देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए सटीक नक्शों की अहमियत से किसी को इनकार नहीं। प्रशासन से लेकर सुरक्षा और उद्योग धंधों से लेकर संचार आदि नक्शे पहली जरूरत हैं। इस काम को बीते 250 सालों से भारतीय सर्वेक्षण विभाग सटीकता और खामोशी के साथ अंजाम दे रहा है...

क्या है भारतीय सर्वेक्षण विभाग

देश की नक्शे बनाने और सर्वेक्षण करने वाली केंद्रीय एजेंसी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन। देश के सबसे पुराने तकनीक और इंजीनियरिंग विभागों में से एक।
- 1767 में हुई थी स्थापना
- कैप्टन टीजी मोंटोगोमरी के निर्देशन में की गई थी इसकी स्थापना
- 03 संस्थानों सर्वे ऑफ इंडिया ट्राइगोनोमेट्रीकल सर्वे, रेवेन्यू
सर्वे और मैपिंग सर्वे के जरिये करता है यह काम
1845 से देहरादून में स्थित है सर्वे ऑफ इंडिया का मुख्यालय। उपमहाद्वीप को दो हिस्सों में बांटने वाला 78 डिग्री द. देशांतर यहां से गुजरता है।

नक्शा निर्यात पर है पाबंदी
सर्वे ऑफ इंडिया देश के नक्शे प्रकाशित करता है और अप्रतिबंधित वर्ग के नक्शे भी यहां से बेहद कम दाम पर हासिल किए जा सकते हैं। हालांकि प्रतिबंधित नक्शे खरीदने के लिए सक्षम सरकारी अधिकारी की अनुमति जरूरी है। केवल भारतीय नागरिक ही टोपोग्राफिकल नक्शा खरीद सकते हैं। वे भी इसका निर्यात किसी भी सूरत में नहीं कर सकते।

साल-दर-साल
1750
में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई, कोलकाता और चैन्नई (तत्कालीन नाम बंबई, कलकत्ता और मद्रास) के आसपास सर्वे शुरू किया
1767 में मेजर रेनेल बंगाल के पहले महासर्वेक्षक नियुक्त हुए। इनकी नियुक्ति का उद्देश्य प्रशासनिक और व्यापारिक प्रचार के लिए बंगाल का विस्तृत नक्शा तैयार करना था
1776 में पूरे बंगाल के नक्शे इंग्लैंड में ढाले गए। अगले 60 साल तक बंगाल के यही नक्शे काम में आए

234 साल पहले बना देश का पहला नक्शा
1782 में तथ्यात्मक अभिलेखों और सर्वेक्षणों के आधार पर बना रेनेल का पहला 'हिंदुस्तान का नक्शा' इंग्लैंड में बना। इसका ज्यादातर हिस्सा यात्रियों के रोजनामचों के आधार पर बना था। हुआ था। समुद्र-तट-रेखा तो नौचालकों के निरीक्षणों के आधार पर कुछ हद तक शुद्ध अंकित हुई थी लेकिन देश के भीतरी भाग का रेखांकन शुद्ध नहीं कहा जा सकता था।

1800 में देश के सर्वेयर नियुक्त हुए कैप्टन लैंबटन ने सटीक नक्शों के लिए अक्षांश और देशांतर का पता लगाने के लिए आधाररेखा और त्रिकोणीय ढांचे पर त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण किया।
1815 तक बंगाल, मद्रास और बंबई में अलग-अलग महासर्वेक्षक स्थानीय सरकार के अधीन काम करते थे। 1815 में पद मिलाकर एक किया गया। तब कर्नल मैकेंजी भारत के महासर्वेक्षक बने। उनका काम देश का प्रामाणिक मानचित्र तैयार करना था।
1818 में लैंबटन के निधन के बाद इस सर्वेक्षण का नाम 'भारत का महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण रखा गया
1825 में चौथाई इंच एटलस शुरू होने पर भारत का मानचित्र सामने आया
1827 में इस सीरीज का पहला नक्शा मुद्रित हुआ। यह नक्शा केवल महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के आधार पर बना
1840 के बाद इस काम को कर्नल एवरेस्ट ने उत्तर में हिमालय की ओर बढ़ाया
1868 तक छपाई भारत में होने लगी, तब तक देश के आधे से ज्यादा हिस्से के नक्शे सामने आ चुके थे
1905 में चौथाई इंच एटलस के बजाय नए विन्यास एक इंच नक्शों की शुरुआत हुई

1905 से नक्शों का आधुनिकीकरण
1905 तक सर्वे आधुनिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे थे। तब 1904-1905 में इंडियन सर्वे कमेटी का गठन किया गया। इस तरह आधुनिक सर्वे 1905 में शुरू हुआ। इस समिति ने विस्तृत योजना बनाकर सर्वे नीति बनाई और कई रंगों के आधार पर नक्शों की नई सीरीज (जंगलों के नक्शे सहित) तैयार करना शुरू किया।

राजस्व संबंध नक्शे राज्यों का काम
शुरुआत में राजस्व संबंधी नक्शे भी सर्वे ऑफ इंडिया ही बनाता था। बीती सदी के शुरुआती दशक में नक्शों के आधुनिकीकरण के बाद राजस्व नक्शों की जिम्मेदारी राज्यों को दी गई। इससे सर्वेक्षण विभाग को देश का नक्शा जल्द तैयार करने में काफी मदद मिली।

सर्वे में इस्तेमाल की गईं पांच ऐतिहासिक मशीनें
250 साल की अपनी यात्रा में भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने कई किस्म की दिक्कतें देखी हैं। अपने काम में विभाग ने कई मशीनों का इस्तेमाल भी किया। इनमें से पांच खास मशीनों पर एक नजर....
1- द ग्रेड थियोडोलाइट
650 पाउंड वजनी इस मशीन का इस्तेमाल 1866 के महान थ्रियोनोमेट्रिकल सर्वे
में किया गया। हालांकि यह 1802 में भारत आ गई थी। इसकी खासियतों में क्षैतिज (हॉरीजेंटल) और उध्र्वाधर (वर्टिकल) कोणों का सटीक आकलन शामिल था।
2- मर्चेंट कैलकुलेटर
50 साल पहले तक सर्वे ऑफ इंडिया में इस तरह के कैलकुलेटर का चलन था। हालांकि शुरुआत में इसका आकार बेहद भिन्न था। यह प्रति मिनट 1300 टंकण की स्पीड का था, जो अपने समय में सबसे बेहतर था। 
3- सेक्सटैंट
दो वस्तुओं के बीच की दूरी के कोण को मापने के लिए इसका इस्तेमाल किया ताजा है। इसका मूल काम क्षैतिज कोण निर्धारित करने में होता है।
4- 8 इंच का थियोडोलाइट
क्षैतिज कोण मापने की यह पुरानी पद्धति है। 36 इंच वो ग्रेट थियोडोलाइट और इस 8 इंच के थियोडोलाइट के बीच करीब 100 साल का फासला है।
5- डिप सर्किल
इसे डिप नीडल्स के नाम से भी जाना जाता है। इसका काम धरती के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज कोण मापने के लिए किया जाता था।