ओशो को पढ रहा था। युद्ध और शांति-गीता का विश्लेषण. टीवी चल रही थी, बताया जा रहा है कि लेफ्ट न्यूक्लियर डील पर सवाल खडे कर रहा है. प्रकाश करात चश्मा ठीक करते हुए कह रहे हैं - न्यूक्लियर समझौता हमें कतई मंजूर नहीं सरकार को इस पर आगे नहीं बढना चाहिए. डी राजा बात आगे बढाते हैं -सरकार और लेफ्ट के बीच सहयोग अब पहले से कम हो जाएगा. असर समन्वय पर भी पडेगा. कांग्रेस अपना पक्ष रख रही है, उसकी तरफ से अभिषेक मनु कहते हैं- सारे मामले में सरकार की नीति राष्ट्रीय हितों को ही सबसे ज्यादा तवज्जोह देने की रहेगी. उधर, भाजपा है वह कहती है सरकार गिर जाएगी. मध्यावधि चुनाव होंगे। वैसे यह लेफ्ट की गीदड भभकी है.
ओशो देख रहे हैं कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं। अर्जुन का द्वंद्व है, उसे खत्म करने के लिए तर्क दे रहे हैं. द्वंद्व अर्जुन के यहां है. वह सोचता हैं. इसलिए द्वंद्व है. दुर्योधन को कोई दिक्कत नहीं है. वह सिर्फ युद्ध चाहता हैं. कोई मरे जिये फर्क नहीं पडता. उसे युद्ध से मतलब. अर्जुन को दिक्कत है, कुटुंब के लोग मर जाएंगे. कृष्ण समझा रहे हैं अर्जुन द्वंद्व छोड, जो आज तेरे पितामह हैं, वे कभी तेरे बेटे थे, शरीर कुछ नहीं होता.
मुझे समझ नहीं आता कृष्ण यह क्यों नहीं कहते कि अर्जुन तू लड बाकी मैं देख लूंगा। अर्जुन मान लेता कहता केशव तुम कहते हो तो लड लेता हूं. मुझे तुम पर भरोसा है. लेकिन कृष्ण समझा रहे हैं. वक्त बरवाद कर रहे हैं. एक ही सवाल को घुमा फिराकर पूछ रहा है अर्जुन. फिर भी जवाब दे रहे हैं. कोई इरीटेशन नहीं है.
न्यूक्लियर डील पर भी लेफ्ट में सवाल हैं यानी द्वंद्व है, उसे दिक्कत है। यह डील होगी तो इसका फायदा किसे पहुंचेगा. किसके हित में है यह डील. भारत को क्या मिल जाएगा इससे. भाजपा में द्वंद्व डील का नहीं है, उसमें सरकार गिरने की चिंता है. क्या वामदल समर्थन वापस लेंगे. यहां भी सवाल है, लेकिन भिन्न किस्म का सवाल है. अपना हित है. बहस में नहीं पडना चाहती भाजपा.
सवाल महज सवाल का है। जहां सवाल होंगे वहां कहीं पहुंचने. कोई तार्किक स्थिति पा जाने के आसार होंगे. सवाल की दिशा क्या है यह भी देखना जरूरी है. अर्जुन का सवाल मारकाट के विरोध में नहीं है फिर भी सकारात्मक है. वह अपनों को मारने से हिचक रहा है. बाकी कोई और तो महज गाजर मूली हैं. कृष्ण इसी भ्रम को दूर कर रहे हैं.
सवाल होना प्रश्नाकुलता होना जीवंत होने सोचने की निशानी है। दुर्योधन के पास सवाल नहीं है. उसे शकुनी, कर्ण ने समझा दिया है. हम हैं न. तुम चिंता मत करो. जीत जाएंगे. अर्जुन बेमन से नहीं लडना चाहता। वह सारी शंकाएं दूर कर लेना चाहता है. मनुष्य ही है वह. दुर्योधन को शंका नहीं है. वह नहीं सोचता आगे क्या होगा. बस लडना है तो लडना है. यह पशुता है. अच्छा बुरा सोचे बिना कुछ भी करते जाना.
तो सवाल हैं लेफ्ट के पास, चिंताएं हैं लेफ्ट के पास, पर कोई कृष्ण नहीं है वहां सिर्फ सवाल है। उनका जवाब किसी के पास नहीं है. कांग्रेस कोई जवाब नहीं देगी वह तो यथास्थितिवादी है. उसे बचाना है. जो कर दिया उसे प्रोटेक्ट करना है. अच्छा बुरा जैसा भी. कर दिया सो कर दिया. अब सवाल होंगे तो भी जाहिर नहीं करना चाहती. दुर्योधन की स्थिति से थोडा बेहतर पर अर्जुन के करीब नहीं.
दिक्कत यहीं हैं सबको राह दिखाने वाला कोई कृष्ण ही नहीं है. इसलिए महाभारत नहीं है यह यह नूराकुश्ती है. कोई कुछ नहीं करेगा सवाल उठेंगे और खो जाएंगे गर्द में. फिर सब मिलकर गाएंगे -देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान. क्योंकि सब जानते हैं भगवान तो कहीं है ही नहीं तो सुनेगा क्यों बस यूं ही खेलते रहो - चक दे इंडिया.