भरपूर आंख से रिसते आंसू से
बनता है भरोसा
एक सधे हुए वाक्य के ठोस लगते सच को
पढता है भरोसा
किसी दोस्त का फिसलन भरी राह पर
पकडा गया मजबूत हाथ होता है भरोसा
कभी डगमगाते शरीरों में
पानी बनकर बहता
कभी मवाद रिसते जख्म में
मछली की शक्ल में चोटता
कभी पहले प्रसव की पीढा सा चीखता
अबोले शिशु की तालू चिपकी जुबान सा
ठिनकता है भरोसा
भरोसा कभी टूटता नहीं
भरोसे की नदी का पानी कभी नहीं सूखेगा
जितनी बार बहेगा आंख का पानी
उतनी उतनी बढेगी नदी भरोसे की
इस शंकाग्रस्त समय में
मुनादी हुई है
इसी ओर से
"जिन जिन के सपने टंगे हैं
भरोसे की खूंटी पर
जल्द-अ-जल्द उतार लें
कि भरोसा अब नहीं रहेगा
कि सड चुकी है भरोसे की लकडी
कि बह चुका है सारा पानी"
आपकी आंख का जरा सा पानी चाहिए
हो सके तो
इस नदी को सूखने से बचा लेना दोस्तो!!!