अमलतास




यशपाल जी फिर आये हैं . नई इबारतों के साथ . सड़क से गुज़र रहे थे और अमलतास ने उन्हें पकड़ लिया ।



मौसम हुआ मनमौजी
अमलतास के फूल झरे
अल्हड हुई पूरवाई भी
कहती हैं नदिया के पार चलें
यह बस्ती हैं यायावरों की
मिल लें दिल भर कर गले
तू फरेबी, तेरे वादे झूठे
फिर भी मन कहे, प्रीत पले
पटकथा लिखेंगे अश्कों से
बस, स्याही हाथ के साथ चले
वो गाता है शायद मन रोता है
तपती धरती पर जैसे अकेली बूँद जले